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जंगल कहानी - डांटना भी जरूरी है:- जंगल में रहने वाली नटखट गिलहरी चिया और उसके भाई बनी को अपनी चीज़ें इधर-उधर फेंकने की आदत थी। उनकी माँ ने कई बार समझाया, लेकिन जब बच्चों ने नहीं सुना, तो उन्होंने सख्ती से डांटकर उनके सारे फल-मेवे एक टोकरे में बंद कर दिए और एक दिन के लिए उन्हें खाने से रोक दिया। इससे चिया और बनी को अपनी गलती का एहसास हुआ। अगले दिन, उन्होंने अपनी जगह साफ की और माँ से वादा किया कि वे अब अनुशासन में रहेंगे। माँ ने उन्हें प्यार से समझाया कि डांट का उद्देश्य सिर्फ़ उन्हें सही रास्ता दिखाना है।
एक हरे-भरे जंगल में, जहाँ सूरज की किरणें पत्तों से छनकर नीचे आती थीं, चिया नाम की एक नन्ही गिलहरी रहती थी। चिया बहुत चंचल थी और उसे नटखट शरारतें करने में खूब मज़ा आता था। उसके साथ उसका छोटा भाई, बनी, भी रहता था। बनी को भी अपनी चीज़ें इधर-उधर फेंकने की आदत थी। उनकी माँ, बहुत समझदार और प्यार करने वाली थीं, लेकिन कभी-कभी उन्हें समझ नहीं आता था कि इन नन्हें बच्चों को कैसे सुधारा जाए।
एक सुहानी सुबह, चिया और बनी अपने पेड़ के बिल के बाहर खेल रहे थे। उन्होंने अपने इकट्ठे किए हुए सारे फल और मेवे आसपास बिखेर दिए थे – अखरोट जड़ों के पास थे, जामुन पत्तों में दबे थे, और स्वादिष्ट चेरी झाड़ियों पर लटकी थीं।
तभी माँ वहाँ आईं। उन्होंने देखा कि पूरा इलाका अस्त-व्यस्त है। उन्होंने गहरी साँस ली और उनकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हो गई, "चिया! बनी! यह क्या है? मैंने कितनी बार कहा है कि खेलने के बाद अपने खाने की चीज़ें सही जगह पर रखो!"
चिया ने फुर्ती से अपनी पूँछ हिलाई, "लेकिन माँ, हम तो खेल रहे थे!"
बनी ने अपने कान फड़फड़ाते हुए कहा, "हाँ, माँ! अभी हमें और खेलना है!"
माँ ने अपनी आवाज़ थोड़ी और ऊँची की, "बस बहुत हुआ! तुम लोग मेरी बात बिल्कुल नहीं सुनते। अगर तुम लोग अभी अपने फल और मेवे नहीं समेटते, तो मैं ये सारे एक बड़े टोकरे में बंद कर दूंगी और तुम्हें एक दिन के लिए कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा।"
चिया और बनी की आँखें डर से बड़ी हो गईं। उन्हें लगा कि माँ मज़ाक कर रही हैं, लेकिन माँ का चेहरा बता रहा था कि वह गंभीर थीं।
बनी ने धीमी आवाज़ में कहा, "एक दिन? नहीं माँ!"
चिया ने मुँह बनाते हुए कहा, "लेकिन माँ, यह तो बहुत ज़्यादा है!"
माँ ने दृढ़ता से कहा, "ज़रूरी है, क्योंकि तुम दोनों मेरी बात नहीं सुनते। तुम्हें समझना होगा कि चीज़ों को व्यवस्थित रखना कितना ज़रूरी है। और सबसे बड़ी बात, तुम्हें बड़ों की बात माननी चाहिए।"
माँ ने उन्हें वहीं खड़ा रखा और खुद सारे फल और मेवे एक बड़े, खाली टोकरे में डालना शुरू कर दिये। चिया और बनी उदास होकर देख रहे थे। जब टोकर भर गया, तो माँ ने उसे उठाकर एक घने पेड़ के नीचे रख दिया।
माँ ने प्यार से उनकी तरफ देखा और कहा, "मुझे तुम्हें डांटना अच्छा नहीं लगता, लेकिन कभी-कभी यह ज़रूरी होता है ताकि तुम सही और गलत में फर्क समझ सको। अगर तुम अपनी चीज़ों का ध्यान नहीं रखोगे, तो वे खराब हो जाएंगी और तुम्हें फिर नई चीज़ें नहीं मिलेंगी। और जब तुम अपने आसपास को साफ नहीं रखते, तो उसमें खेलना भी मुश्किल हो जाता है।"
चिया ने कहा, "माँ, मुझे मेरे मेवे वापस चाहिए!"
बनी ने कहा, "मैं अगली बार से सब साफ रखूँगा, पक्का!"
माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे पता है तुम रखोगे, लेकिन अभी तुम्हें अपनी गलती का एहसास होना ज़रूरी है। एक दिन तक तुम्हें अपने मेवों के बिना रहना पड़ेगा। इस दौरान, तुम सीखोगे कि व्यवस्था और सफाई कितनी ज़रूरी है।"
अगला दिन चिया और बनी के लिए मुश्किल था। वे अपने मेवों को बहुत याद कर रहे थे। उन्हें अहसास हुआ कि अगर वे माँ की बात मान लेते, तो उन्हें डांट नहीं पड़ती और उनके मेवे भी उनसे दूर नहीं होते।
एक दिन, जब माँ जंगल में भोजन की तलाश में थीं, चिया और बनी ने मिलकर अपने रहने की जगह की सफाई की। उन्होंने गिरी हुई पत्तियों को एक ढेर में इकट्ठा किया, टहनियों को एक तरफ रखा, और अपनी बिल को चमका दिया। जब माँ वापस लौटीं और उन्होंने अपनी जगह को साफ-सुथरा देखा, तो वह बहुत खुश हुईं।
उन्होंने दोनों को गले लगाया और कहा, "देखो, कितनी सुंदर लग रही है हमारी जगह! जब तुम अपनी चीज़ों का ध्यान रखते हो, तो सब कितना अच्छा लगता है।"
तुरंत ही माँ ने खुशी-खुशी मेवों का टोकर वापस दे दिया। चिया और बनी ने खुशी से कूदते हुए अपने मेवे निकाले और तुरंत उन्हें व्यवस्थित करना शुरू कर दिया।
चिया ने कहा, "माँ, हमने सीख लिया। अब हम खेलने के बाद हमेशा अपने मेवे रखेंगे।"
बनी ने कहा, "और हम आपकी बात भी मानेंगे!"
माँ मुस्कुराईं और कहा, "यही तो मैं चाहती थी। डांटना तब ज़रूरी होता है जब तुम्हें सही रास्ता दिखाना हो, ताकि तुम भविष्य में अच्छी आदतें अपना सको। याद रखना, अनुशासन तुम्हें बेहतर प्राणी बनाता है।"
उस दिन के बाद, चिया और बनी ने अपनी आदतों में सुधार किया। वे अब समझ गए थे कि माँ का डांटना उनके भले के लिए था, और प्यार के साथ थोड़ी डांट भी ज़रूरी होती है, ताकि बच्चे ज़िम्मेदार और समझदार बन सकें।
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