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"मूर्ख बकबक और समझदार तेजदृष्टि की बहस" कहानी में बकबक गीदड़ और तेजदृष्टि बाज़ के बीच सूरज के रंग को लेकर बहस होती है। जंगल के राजा ज्ञानेंद्र बकबक की बात मान लेते हैं, लेकिन तेजदृष्टि को सजा दे देते हैं। सजा का कारण यह है कि तेजदृष्टि ने मूर्ख बकबक से बहस करके समय बर्बाद किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि मूर्खों से बहस करना बेकार है। (Gadha Aur Bagh Ki Kahani Summary, Hindi Moral Tale)
कहानी: एक व्यर्थ का विवाद (The Story: A Meaningless Dispute)
कई साल पहले की बात है, एक विशाल जंगल में कई तरह के जानवर रहते थे। उस जंगल का राजा था एक बुद्धिमान शेर, जिसका नाम था ज्ञानेंद्र। ज्ञानेंद्र का नाम उसकी गहरी बुद्धि और निष्पक्ष फैसलों की वजह से रखा गया था। एक दिन जंगल में एक मूर्ख गीदड़, जिसका नाम था बकबक, और एक चतुर बाज़, जिसका नाम था तेजदृष्टि, के बीच एक अजीब सा विवाद शुरू हो गया। बकबक नाम इसलिए रखा गया क्योंकि वह हमेशा बेमतलब की बातें करता रहता था, और तेजदृष्टि का नाम उसकी तेज़ नज़र और समझदारी के लिए मशहूर था।
बकबक ने तेजदृष्टि से कहा, "अरे तेजदृष्टि, मैं कहता हूँ कि सूरज का रंग काला है।" तेजदृष्टि ने हैरानी से बकबक की ओर देखा और बोला, "क्या बकवास कर रहा है, बकबक? सूरज का रंग तो सुनहरा-नारंगी है। यह हर कोई देख सकता है।"
बकबक अपनी बात पर अड़ा रहा और चिल्लाकर बोला, "नहीं, सूरज काला है। तू गलत है!" तेजदृष्टि ने उसे समझाने की कोशिश की, "बकबक, ज़रा ऊपर देख। सूरज चमक रहा है, और उसका रंग सुनहरा है। तू गलत है।" लेकिन बकबक ने एक न सुनी। दोनों की बहस इतनी बढ़ गई कि उन्होंने फैसला किया कि वे ज्ञानेंद्र के पास जाएँगे और उनसे फैसला करवाएँगे।
ज्ञानेंद्र के दरबार में सुनवाई (The Hearing in Gyanendra’s Court)
दोनों ज्ञानेंद्र के दरबार में पहुँचे। ज्ञानेंद्र एक बड़े पेड़ की छाँव में अपने सिंहासन पर बैठे थे, और उनके आसपास जंगल के अन्य जानवर भी मौजूद थे। ज्ञानेंद्र को देखते ही बकबक जोर-जोर से चिल्लाने लगा, "महाराज, मेरी मदद करें! मैं कहता हूँ कि सूरज का रंग काला है। क्या मैं सही हूँ?"
ज्ञानेंद्र ने बकबक की बात सुनी और शांत स्वर में कहा, "हाँ, बकबक। सूरज का रंग काला ही है।" यह सुनकर तेजदृष्टि हैरान रह गया। उसने सोचा, "महाराज यह क्या कह रहे हैं? सूरज का रंग तो सुनहरा है।" लेकिन उसने चुप रहना बेहतर समझा।
बकबक ने खुशी से उछलते हुए कहा, "देखा, तेजदृष्टि! मैंने कहा था ना कि सूरज काला है। तू गलत था। महाराज, यह तेजदृष्टि मुझसे बहस करता है और मुझे परेशान करता है। इसे सजा दीजिए।" ज्ञानेंद्र ने गंभीर होकर घोषणा की, "तेजदृष्टि को दो साल तक चुप रहने की सजा दी जाती है। उसे इस दौरान किसी से बहस नहीं करनी है।"
बकबक यह सुनकर बहुत खुश हुआ। वह बार-बार कहता हुआ जंगल में चला गया, "सूरज काला है! सूरज काला है!"
सजा का असली मकसद (The True Purpose of the Punishment)
तेजदृष्टि ने सजा को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया, लेकिन जाने से पहले उसने ज्ञानेंद्र से अकेले में बात करने की अनुमति माँगी। उसने कहा, "महाराज, मैं आपकी सजा को मानता हूँ, लेकिन मेरा एक सवाल है। आपने मुझे सजा क्यों दी? आप तो जानते हैं कि सूरज का रंग सुनहरा है। फिर आपने बकबक की बात क्यों मानी?"
ज्ञानेंद्र ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "तेजदृष्टि, तुम बिल्कुल सही हो। सूरज का रंग सुनहरा ही है। लेकिन तुम्हारी सजा का सूरज के रंग से कोई लेना-देना नहीं है। सजा इसलिए दी गई है क्योंकि तुम जैसे समझदार और तेज़ नज़र वाले जानवर ने एक मूर्ख गीदड़ के साथ बहस करके अपना कीमती समय बर्बाद किया। इतना ही नहीं, तुमने मुझे भी इस बेकार की बहस में खींच लिया। यह तुम्हारी सबसे बड़ी भूल थी।"
तेजदृष्टि को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कहा, "महाराज, आपने मुझे बहुत बड़ा सबक सिखाया। अब मैं समझ गया कि मूर्खों से बहस करना बेकार है। मैं अपनी सजा पूरी करूँगा और भविष्य में ऐसी गलती नहीं करूँगा।" ज्ञानेंद्र ने सिर हिलाकर कहा, "जाओ, तेजदृष्टि। इस सबक को याद रखना और अपनी समझदारी का सही इस्तेमाल करना।" तेजदृष्टि सिर झुकाकर चला गया।
तेजदृष्टि का बदलाव (Tejdristi’s Transformation)
दो साल बाद, जब तेजदृष्टि की सजा खत्म हुई, वह जंगल में अपने दोस्तों के बीच लौटा। लेकिन अब वह पहले से कहीं ज्यादा समझदार हो गया था। उसने फैसला किया कि वह कभी भी मूर्खों से बहस नहीं करेगा। एक दिन उसकी मुलाकात फिर से बकबक से हुई। बकबक ने फिर वही बात दोहराई, "सूरज काला है, है ना तेजदृष्टि?"
तेजदृष्टि ने शांतिपूर्वक मुस्कुराकर कहा, "हाँ, बकबक। जैसा तू कहे।" और वह चुपचाप आगे बढ़ गया। बकबक हैरान रह गया, लेकिन तेजदृष्टि को अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसने ज्ञानेंद्र की सलाह को अपने दिल में बिठा लिया था कि मूर्खों से बहस करने का कोई फायदा नहीं।
जंगल में नई बातचीत (A New Conversation in the Jungle)
जंगल के एक और जानवर, एक मोर ने तेजदृष्टि से पूछा, "तेजदृष्टि भाई, तुमने बकबक को जवाब क्यों नहीं दिया? वह तो गलत बोल रहा था।" तेजदृष्टि ने हँसते हुए कहा, "मोर भाई, मैंने एक बार बकबक से बहस करके दो साल की सजा काट ली। अब मैंने सीख लिया है कि जो सच्चाई को समझना ही नहीं चाहता, उससे बहस करके समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। मेरी शांति मेरे लिए सबसे कीमती है।" मोर ने सिर हिलाया और बोला, "वाह, तेजदृष्टि! तुमने तो मुझे भी एक बड़ा सबक सिखा दिया।"
जंगल में शांति की बहार (A Wave of Peace in the Jungle)
इस घटना के बाद, तेजदृष्टि ने जंगल के छोटे जानवरों को एक सलाह दी। उसने कहा, "दोस्तों, कभी भी मूर्खों से बहस मत करना। अगर कोई सच्चाई को न मानना चाहे, तो उसे उसकी बात पर छोड़ दो। अपनी शांति और समय को बचाओ।" जंगल के जानवरों ने तेजदृष्टि की बात को गंभीरता से लिया, और धीरे-धीरे जंगल में बेकार की बहसें कम होने लगीं। ज्ञानेंद्र भी तेजदृष्टि की इस समझदारी से बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे "जंगल का शांतिदूत" की उपाधि दी। (Murkha Gidad Ki Kahani, Wisdom Moral Tale)
सीख (Moral of the Story)
बच्चों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मूर्खों से बहस करना समय की बर्बादी है। तेजदृष्टि ने बकबक से बहस करके अपनी शांति खो दी और सजा पाई। हमें अपनी बुद्धि का सही इस्तेमाल करना चाहिए और उन लोगों से बहस नहीं करनी चाहिए जो सच्चाई को समझना ही नहीं चाहते। हमारी शांति और समय सबसे कीमती है। (Lesson on Wisdom, Motivational Story for Kids)
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