/lotpot/media/media_files/2025/03/17/GssbZmHNUNyikrYqTTJ7.jpg)
Jungle Story Chunnu Rabbit Surprise
चुन्नू खरगोश: गाँव के बाहर बने तालाब के किनारे एक घना जंगल था। वहीं पर खरगोशों का एक समूह रहता था। सभी खरगोश आपस में बहुत ही मेलजोल से रहते थे। अगर कभी किसी एक खरगोश को तकलीफ हो जाए तो अनेक साथी खरगोश उसकी देखभाल के लिए सदा तैयार रहते।
दिन में सभी बड़े खरगोश अपने खाने-पीने का सामान जुटाने के लिए निकल जाते और शाम तक लौट आते। उधर बच्चे आपस में उछल-कूद करते, खेलते और मस्त रहते। बूढ़े खरगोश भी अपनी शक्ति के अनुसार थोड़ा बहुत घरेलू काम करते और आराम करते। एक बार एक मोटू नाम का खरगोश दूसरे जंगल से घूमता हुआ उधर आ निकला। वहां की खुशहाली और खरगोशों के आपसी मेलजोल को देखकर मोटू की आँखें फटी रह गईं और उसने इतनी अच्छी हरियाली अपने जीवन में कभी नहीं देखी थी।
मोटू खरगोश तब मन ही मन सोचने लगा कि यदि किसी तरह यहां रहने का हिसाब बैठ जाए तो जीवन का मजा आ जाएगा। मोटू देखने में भोला-भाला और बुद्धू सा लगता था।
अभी मोटू अपने विचारों में ही खोया हुआ था कि एक बूढ़े खरगोश ने पास आकर उसे आवाज दी -
'तुम कौन हो बेटा और कहां से आये हो?'
इस पर मोटू पलटकर कराहने लगा।
'क्या कहूं बाबा, पिछले दिनों कितनी ही लोमड़ियों ने मिलकर हमारे घरों पर हमला बोल दिया। मेरे कई साथी तो मारे गए और कई अपनी जान बचाकर भागने में सफल हो गए। मैं भी बड़ी कठिनाई से वहां से निकल पाया हूँ। उनके हमले में मेरे परिवार के सभी सदस्य मारे गए।'
मोटू की बात सुनकर बूढ़े खरगोश को उस पर बड़ी दया आई। वह प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, 'चिंता मत करो बेटा। भगवान सब ठीक करेंगे।'
बूढ़े खरगोश की प्यार भरी बात सुनकर मोटू जोर जोर से रोने लगा। 'लगता है भागते समय मेरी एक टांग भी टूट गई। अब मेरे बस का कुछ भी नहीं रहा। मैं तो अपने खाने का इंतजाम भी नहीं कर सकता। भगवान जाने मेरा क्या होगा?'
'नहीं नहीं... तुम अपना दिल छोटा मत करो। तुम यहीं हमारे साथ रहो। हम तुम्हारे लिए भी एक मांद अलग से बना देंगे। जहां इतने लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था होती है वहां एक और के बढ़ने से क्या अंतर पड़ेगा।'
बूढ़े खरगोश का इतना कहना था कि मोटू की बांछे खिल गईं।
शाम को जब युवक खरगोश वापस लौटे तो उन्हें मोटू खरगोश के बारे में पता चला। किसी भी खरगोश ने मोटू के वहां रहने पर आपत्ति नहीं की। उन्होंने मिलकर मोटू के लिए रहने का अलग प्रबंध भी कर दिया।
अब तो मोटू बड़े आराम से वहां अपना जीवन व्यतीत करने लगा। सुबह शाम उसे मुफ्त में बिना मेहनत किए ही भोजन मिल जाता। दिन में भी कई बार छोटे तथा बूढ़े खरगोश उसके पास मिलने आते रहते थे जिससे मोटू का मन लगा रहता था।
एक शाम को जब सभी खरगोश लौट आए तो चुन्नू खरगोश तालाब की ओर से दौड़ा-दौड़ा आया-
'भागो... जल्दी करो... वहां मोटू की मांद में आग लग गई है।'
आग की खबर सुनते ही सभी खरगोश मोटू की मांद की ओर दौड़े।
वहां जाकर देखा तो मोटू की मांद के आसपास घास में आग लगी हुई थी।
धीरे-धीरे आग मांद के अंदर की ओर फैलती जा रही थी। "हे भगवान, अब क्या होगा? बेचारा मोटू तो वैसे ही लंगड़ा है," एक बूढ़े खरगोश ने चिंतित स्वर में कहा।
इस पर चुन्नू खरगोश धीरे-धीरे मुस्कराने लगा।
"उस बेचारे की जान पर बनी है और तू हंस रहा है? शर्म नहीं आती तुझे?" एक अन्य खरगोश ने उसे डांटा।
चुन्नू ने फिर हंसते हुए कहा, "अभी देखते जाओ काका, इस बेचारे मोटू की क्या हालत होगी।"
तभी सभी खरगोश आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने देखा कि मोटू खरगोश अपनी मांद से छलांग लगाकर आग को पार करके बाहर निकल गया। बाहर खड़ी भीड़ को देखकर वह दौड़ने लगा।
तब चुन्नू खरगोश चिल्लाने लगा, "पकड़ो, पकड़ो... इस मक्कार को। भागने न पाए। अब तक यह हमें मूर्ख बनाकर यहां आराम से पड़ा मस्ती मार रहा था।"
मोटू खरगोश ने दौड़ने की बहुत कोशिश की, पर अनेक युवा खरगोशों ने उसे पकड़ लिया। हाँ, भागा दौड़ी में अब अवश्य ही मोटू की पिछली टांग टूट गई थी। अन्य खरगोशों के पूछने पर चुन्नू ने बताया कि मोटू की मांद के बाहर आग उसी ने लगाई थी। वह आगे कहने लगा, "अंकल! मैं आज दोपहर को जब इस मोटू की मांद में गया तो इसे कसरत करते देखकर आश्चर्य में पड़ गया। एक ओर तो यह अपना भोजन जुटाने के लायक भी नहीं था और दूसरी ओर उछल-उछल कर कसरत भी कर रहा था। बस इसी से मैंने अनुमान लगाया कि अवश्य ही यह मोटू का बच्चा हमें मूर्ख बना रहा है। इसके बाद ही मैंने यह आग लगाने वाली पूरी योजना बनाई थी।"
सभी खरगोश छोटे से चुन्नू की बुद्धिमत्ता का लोहा मान गए। सभी उसकी प्रशंसा करने लगे। कुछ बूढ़े खरगोशों के कहने पर, मोटू खरगोश द्वारा की गई धोखेबाजी के बाद भी उसे वहां से जाने की अनुमति दे दी गई।