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एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक तालाब था। यह तालाब इतना बड़ा था कि इसमें कई तरह के जीव रहते थे। एक किनारे पर एक बूढ़ा और समझदार मगरमच्छ रहता था, जो अपनी दुनिया में खुश था। तालाब के दूसरे किनारे पर एक धूर्त और चालाक लोमड़ी रहती थी, जिसका नाम था फुर्ती। फुर्ती अपनी चालाकी के लिए पूरे जंगल में बदनाम थी। वह अक्सर अपनी कुबुद्धि का इस्तेमाल करके दूसरे जानवरों को परेशान करती थी।
मगरमच्छ और लोमड़ी की पहली मुलाकात
एक दिन फुर्ती लोमड़ी बहुत भूखी थी। उसे तालाब के पार एक बहुत बड़ा और रसीला तरबूज का खेत दिखाई दिया। "वाह! क्या बात है!" फुर्ती ने सोचा। "अगर मैं किसी तरह उस पार पहुँच जाऊँ, तो मेरी तो दावत हो जाएगी।"
पर समस्या यह थी कि तालाब बहुत गहरा था और लोमड़ी को तैरना नहीं आता था। वह निराश होकर सोचने लगी कि कैसे उस पार जाया जाए। तभी उसकी नज़र तालाब के किनारे धूप सेंक रहे बूढ़े मगरमच्छ पर पड़ी।
फुर्ती के दिमाग में एक शैतानी विचार आया। वह धीरे-धीरे मगरमच्छ के पास गई और मीठी आवाज़ में बोली, "नमस्ते मगरमच्छ दादा! आप कितने शांत और बड़े दिख रहे हैं। क्या आप इस तालाब के राजा हैं?"
मगरमच्छ ने आँखें खोलीं और फुर्ती को देखकर बोला, "तुम कौन हो? मैं कोई राजा-वाजा नहीं हूँ, बस यहाँ शांति से रहता हूँ।"
फुर्ती ने कहा, "अरे दादा! मुझे तो लगा कि आप ही यहाँ के सबसे बुद्धिमान जीव हैं। मैंने सुना है कि आप इस तालाब में सबसे ज़्यादा जानते हैं। क्या आप मेरी एक छोटी-सी मदद कर सकते हैं?"
मगरमच्छ, जो फुर्ती की बातों में आ गया था, बोला, "बताओ, क्या मदद चाहिए?"
फुर्ती बोली, "मैं उस पार जाना चाहती हूँ, पर मुझे तैरना नहीं आता। क्या आप मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर उस पार ले चलेंगे?"
मगरमच्छ पहले तो हिचकिचाया, पर फुर्ती की चापलूसी से खुश होकर मान गया। मगरमच्छ ने फुर्ती को अपनी पीठ पर बैठाया और धीरे-धीरे उस पार ले जाने लगा।
लोमड़ी की कुबुद्धि और मगरमच्छ का धोखा
जब वे बीच तालाब में पहुँचे, तो फुर्ती का मन फिर से शैतानी से भर गया। उसने मगरमच्छ से कहा, "अरे दादा! आपकी पीठ तो बहुत खुरदरी है। मैं तो सोच रही थी कि आपकी पीठ बहुत मुलायम होगी।"
यह सुनकर मगरमच्छ को गुस्सा आ गया। "तुम मुझे धोखा दे रही हो!" मगरमच्छ ने सोचा। "इसने पहले मेरी चापलूसी की, और अब मेरी पीठ का मज़ाक उड़ा रही है।"
मगरमच्छ ने अपनी धीमी गति को तेज़ कर दिया। फुर्ती डर गई। "अरे दादा! क्या हुआ? आप इतने तेज़ क्यों चल रहे हैं?"
"अब तुम्हें पता चलेगा कि मेरी पीठ कितनी खुरदरी है!" मगरमच्छ ने कहा और अचानक अपनी पीठ को पानी में डुबाना शुरू कर दिया।
फुर्ती बुरी तरह डर गई। "दादा, दादा! मुझे बचाओ! मैं डूब जाऊँगी! मैंने मज़ाक किया था! माफ कर दो!" वह चिल्लाई।
पर मगरमच्छ ने उसकी एक न सुनी। वह फुर्ती को पानी के अंदर खींचने लगा। फुर्ती ने मगरमच्छ की पीठ को जोर से पकड़ रखा था, पर मगरमच्छ की ताकत के आगे वह कुछ नहीं कर पाई।
"तुमने मेरा मज़ाक क्यों उड़ाया?" मगरमच्छ ने पूछा।
फुर्ती ने रोते हुए कहा, "मुझे माफ कर दो, दादा! मुझे लगा कि मैं आपसे ज़्यादा चालाक हूँ। मैं अपनी मूर्खता के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ।"
मगरमच्छ ने देखा कि फुर्ती सच में डर गई है और उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मगरमच्छ दयालु था। उसने फुर्ती को वापस अपनी पीठ पर बैठाया और सुरक्षित उस पार पहुँचा दिया।
कुबुद्धि का फल और पछतावा
जब वे दूसरे किनारे पर पहुँचे, तो फुर्ती बहुत शर्मिंदा थी। उसने तरबूज के खेत की तरफ देखा भी नहीं। वह सीधा मगरमच्छ के सामने झुक गई और बोली, "मगरमच्छ दादा, आपने मुझे एक बड़ा सबक सिखाया है। मैंने सोचा था कि मेरी चालाकी ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन आज मुझे पता चला कि यह मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी है।"
मगरमच्छ ने मुस्कुराते हुए कहा, "फुर्ती, जीवन में बुद्धि और विवेक का सही इस्तेमाल करना ज़रूरी है। दूसरों को धोखा देने या उन्हें नीचा दिखाने के लिए अपनी चालाकी का इस्तेमाल करना कुबुद्धि कहलाता है। और कुबुद्धि का फल हमेशा बुरा होता है।"
उस दिन के बाद से, फुर्ती लोमड़ी ने अपनी आदतों को सुधार लिया। वह अब दूसरों की मदद करती थी और अपनी चालाकी का इस्तेमाल केवल अच्छे कामों के लिए करती थी। उसने मगरमच्छ से दोस्ती कर ली और जब भी उसे तरबूज का खेत जाना होता, तो वह ईमानदारी से मगरमच्छ से मदद माँगती थी।
मगरमच्छ और फुर्ती की दोस्ती पूरे जंगल में मशहूर हो गई, और सबने सीखा कि बुद्धि का सही इस्तेमाल ही हमें महान बनाता है, न कि हमारा अहंकार।
इस कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कुबुद्धि का फल हमेशा बुरा होता है। हमें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल सही कामों के लिए करना चाहिए, न कि दूसरों को धोखा देने या परेशान करने के लिए। सच्ची खुशी और सफलता दूसरों को मदद करने और ईमानदारी से काम करने में है।
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