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जंगली भैंसा की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में मानी जाती है, और यह एक समय दक्षिण-पूर्व एशिया के बड़े हिस्से में पाया जाता था। आज यह मुख्य रूप से भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों में सीमित क्षेत्रों में देखा जाता है। भारत में काजीरंगा नेशनल पार्क (असम) और मानस नेशनल पार्क इसके प्रमुख आवास हैं। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ के रायपुर और बस्तर क्षेत्रों में भी इसकी थोड़ी बहुत मौजूदगी दर्ज की गई है। एक सदी पहले इसकी संख्या लाखों में थी, लेकिन अब यह 4000 से भी कम रह गई है।
शारीरिक विशेषताएं
ये अपने विशाल आकार के लिए प्रसिद्ध है। इसका वजन 600 से 1200 किलोग्राम तक हो सकता है, और ऊंचाई 1.5 से 1.8 मीटर तक होती है। इसके सींग लंबे और घुमावदार होते हैं, जो नर में अधिक प्रभावशाली दिखाई देते हैं। इनका रंग गहरा भूरा या काला होता है, और शरीर पर मोटी चमड़ी होती है जो इसे कीचड़ और कीटों से बचाती है। ये जानवर पानी और दलदली इलाकों में रहना पसंद करते हैं, जहां वे कीचड़ में लोटकर अपनी त्वचा को ठंडा रखते हैं और परजीवियों से बचाव करते हैं।
व्यवहार और जीवन शैली
ये जंगली भैंसा सामाजिक प्राणी है और आमतौर पर झुंड में रहता है। मादाएं और उनके शावक एक साथ रहते हैं, जबकि नर अक्सर अलग-थलग या छोटे समूहों में देखे जाते हैं। मादा अपने जीवनकाल में लगभग 5 शावकों को जन्म देती है, और शावक का जन्म आमतौर पर बारिश के मौसम के अंत में होता है। नर शावक दो साल की उम्र में झुंड छोड़ देते हैं। इनका प्राकृतिक शत्रु बाघ है, लेकिन कमजोर या बीमार भैंसों को जंगली कुत्ते और तेंदुए भी शिकार बना सकते हैं।
संकट के कारण
ये भैंसा की घटती संख्या के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। सबसे बड़ा खतरा पालतू मवेशियों से होने वाली बीमारियां, जैसे फुट एंड माउथ डिजीज और रिंडरपेस्ट, हैं। इसके अलावा, जेनेटिक प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है, क्योंकि जंगली भैंसा पालतू भैंसों के साथ संभोग कर लेता है, जिससे इसकी शुद्ध प्रजाति पर असर पड़ता है। जंगलों की कटाई, खेती के लिए जमीन का अतिक्रमण, और ग्रामीणों के साथ टकराव भी इसके विलुप्त होने का कारण बने हैं। खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाने के कारण ग्रामीण अक्सर इनका शिकार कर देते हैं।
संरक्षण के प्रयास
जंगली भैंसा को बचाने के लिए भारत सरकार और वन्यजीव संगठन कई कदम उठा रहे हैं। काजीरंगा और मानस जैसे राष्ट्रीय उद्यानों में इनके लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं। प्रजनन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, और जेनेटिक प्रदूषण को रोकने के लिए शोध जारी है। साथ ही, स्थानीय समुदायों को जागरूक किया जा रहा है ताकि वे वन्यजीवों के साथ सहअस्तित्व बनाए रखें।
रोचक तथ्य
जंगली भैंसा अपने सींगों से शेर जैसे शक्तिशाली शिकारियों को भी चुनौती दे सकता है।
ये पानी में घंटों तक रह सकते हैं और कीचड़ में लोटकर अपनी त्वचा की देखभाल करते हैं।
एक समय यह प्रजाति मध्य प्रदेश के जंगलों में भी पाई जाती थी, जहां इसके मस्तक पर सफेद निशान वाली प्रजाति थी।
निष्कर्ष
ये न केवल एक शानदार जानवर है, बल्कि भारतीय वन्यजीव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इसके संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इसे देख सकें और प्रकृति के इस अनमोल उपहार को संजोए रखें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
जंगली भैंसा कहां पाया जाता है?
जंगली भैंसा मुख्य रूप से भारत के काजीरंगा और मानस नेशनल पार्क, नेपाल, भूटान, म्यांमार और थाईलैंड में पाया जाता है।
जंगली भैंसा कितने साल तक जीवित रहता है?
जंगली भैंसा की औसत आयु लगभग 9 साल होती है, हालांकि अच्छी देखभाल में यह अधिक समय तक जीवित रह सकता है।
जंगली भैंसा को कौन सा खतरा है?
इसके मुख्य खतरे पालतू मवेशियों की बीमारियां, जेनेटिक प्रदूषण, जंगलों की कटाई, और ग्रामीणों के साथ टकराव हैं।
जंगली भैंसा और पालतू भैंसा में क्या अंतर है?
जंगली भैंसा स्वाभाविक रूप से जंगलों में रहता है और अधिक आक्रामक होता है, जबकि पालतू भैंसा मनुष्यों द्वारा पाला जाता है और शांत स्वभाव का होता है।
जंगली भैंसा को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है?
इसके संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यानों में सुरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं, प्रजनन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, और स्थानीय समुदायों को जागरूक किया जा रहा है।
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