Jungle World: पूरे हिमालय में पाया जाता है पहाड़ी गिद्ध

बड़े आकार का भूरे रंग का पहाड़ी गिद्ध पूरे हिमालय में पाया जाता है। नीचे से देखने में यह हल्का खाकी लगता है और इसके पंखों के पिछले किनारे और दुम का रंग काला होता है। आकाश में उड़ते समय यह वायुयान की तरह दिखलाई पड़ता है। 

By Lotpot
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पूरे हिमालय में पाया जाता है पहाड़ी गिद्ध

Jungle World पूरे हिमालय में पाया जाता है पहाड़ी गिद्ध:- बड़े आकार का भूरे रंग का पहाड़ी गिद्ध पूरे हिमालय में पाया जाता है। नीचे से देखने में यह हल्का खाकी लगता है और इसके पंखों के पिछले किनारे और दुम का रंग काला होता है। आकाश में उड़ते समय यह वायुयान की तरह दिखलाई पड़ता है। (Jungle World)

खाकी रंग के रोएं सिर और गर्दन पर होते हैं। पहाड़ी गिद्ध की लंबाई सामान्यतः 4 फुट होती है। नर और मादा दोनों एक समान दिखाई देते हैं। सिर और गर्दन पर हल्के रंग के रोएं होते हैं। पीठ का ऊपरी रंग भूरा होता है, जिस पर धारियां पड़ी रहती हैं। 

हिमालय क्षेत्र में पहाड़ों पर आने-जाने वाले लोग पहाड़ी गिद्ध को अच्छी तरह पहचानते हैं। आकाश में काफी ऊंचाई पर उड़ते और चक्कर काटते हुए इस गिद्ध को कभी भी देखा जा सकता है। इसके पंख कड़े और पीठ एकदम सीधी होती है, इसी वजह से यह वायुयान की तरह दिखाई देता है। (Jungle World)

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अन्य गिद्धों की तरह इसके आराम करने की जगह भी निश्चित होती है, जो प्रायः किसी चट्टान के ऊपर अथवा पहाड़ के किसी ऊंचे स्थान होते हैं। यहां यह खाए हुए भोजन को पचाने के लिए बैठ जाता है। इनके बैठने के प्रिय स्थानों का प्रयोग सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है इसलिए इन जगहों पर बड़े-बड़े सफेद धब्बे 2-3 मील दूर से ही दिखाई देते हैं। (Jungle World)

मरे हुए जानवरों को खाने के तुरंत बाद यह पास के पेड़ों पर जाकर बैठ जाते हैं...

मरे हुए जानवरों को खाने के तुरंत बाद यह पास के पेड़ों पर जाकर बैठ जाते हैं और पाचन शुरू होते ही अपने विश्राम स्थलों की ओर मुड़ जाते हैं। इनका मुख्य भोजन मरे हुए पशुओं का सड़ा मांस है। यह कभी खुद शिकार नहीं करते। पहाड़ी गिद्ध सामान्यतः 4-6 जोड़े मिलकर किसी पहाड़ या जलमग्न चट्टान पर एक साथ अपने घोंसले बनाते हैं। 

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इनके घोंसले छोटी-छोटी टहनियों और घासफूस के बने होते हैं, जो देखने में बिलकुल भद्दे होते हैं। मादा एक समय में एक ही अंडा देती है, जो लंबा और नुकीला होता है। इन अंडों की औसत लंबाई 4 इंच होती है। (Jungle World)

यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पायी जाती थी। 1990 के दशक में इस जाति का 17 प्रतिशत से 19 प्रतिशत तक पतन हो गया है। इसका मूल कारण पशु दवाई ‘डाइक्लोफिनॅक’ है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको भारतीय गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई ‘मॅलाॅक्सिकॅम’ आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे गिद्ध बच जायें।

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आज भारतीय गिद्धों का प्रजनन बंदी हालत में किया जा रहा है। इसका कारण यह है कि खुले में यह विलुप्ति की कगार में पहुँच गये हैं। शायद इनकी संख्या बढ़ जाये। गिद्ध दीर्घायु होते हैं लेकिन प्रजनन में बहुत समय लगाते हैं। गिद्ध प्रजनन में 5 वर्ष की अवस्था में आते हैं। एक बार में एक से दो अण्डे पैदा करते हैं लेकिन अगर समय खराब हो तो एक ही चूजे को खिलाते हैं। यदि परभक्षी इनके अण्डे खा जाते हैं तो यह अगले साल तक प्रजनन नहीं करते हैं। यही कारण है कि भारतीय गिद्ध अभी भी अपनी आबादी बढ़ा नहीं पा रहा है। (Jungle World)

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