गुस्से पर विजय: एक प्रेरक बाल कहानी

"गुस्से पर विजय" एक मोटिवेशनल बाल कहानी है, जो रमेश नाम के एक छोटे लड़के की यात्रा को दर्शाती है, जो अपने गुस्से से परेशान रहता था। उसके पिता ने उसे कील ठोकने का अनोखा तरीका सिखाया, जिससे रमेश

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"गुस्से पर विजय" एक मोटिवेशनल बाल कहानी है, जो रमेश नाम के एक छोटे लड़के की यात्रा को दर्शाती है, जो अपने गुस्से से परेशान रहता था। उसके पिता ने उसे कील ठोकने का अनोखा तरीका सिखाया, जिससे रमेश ने धीरे-धीरे अपने गुस्से को नियंत्रित करना सीखा। जब उसने सारी कीलें निकाल दीं, तो पिता ने उसे दीवार के छेद दिखाकर समझाया कि गुस्सा दूसरों को चोट पहुंचाता है, जो माफी से भी ठीक नहीं होता।

कहानी में रमेश अपने दोस्त सुनील के साथ गुस्से को शांति में बदलता है और गांव के बच्चों को भी यह सबक सिखाता है। यह हिंदी की बेस्ट मोटिवेशनल स्टोरी बच्चों को गुस्सा प्रबंधन, सहानुभूति, और दूसरों के प्रति सम्मान सिखाती है। यह कहानी नन्हें पाठकों के लिए प्रेरणा और जीवन के मूल्यों का पाठ है, जो उन्हें बेहतर इंसान बनने की राह दिखाती है।

गुस्से पर विजय: एक प्रेरक कहानी

एक छोटे से गांव में रहता था एक नन्हा लड़का, जिसका नाम था रमेश। रमेश का स्वभाव थोड़ा चंचल था और उसे गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता था। कभी छोटी-सी बात पर वह चिल्लाने लगता, तो कभी अपने दोस्तों से झगड़ लेता। उसकी यह आदत उसके पिता को चिंता में डाल देती थी। एक दिन पिता ने सोचा कि रमेश को यह सिखाना जरूरी है कि गुस्से से नुकसान ही होता है। उन्होंने एक दिन उसे बुलाया और हाथ में कुछ कीलें थमाते हुए कहा, "बेटा, जब भी तुम्हें गुस्सा आए, तो एक कील लेकर दीवार में ठोक देना। इससे शायद तुम्हें अपनी भावनाओं पर काबू पाने में मदद मिले।"

रमेश को यह अनोखा तरीका पसंद आया। पहले दिन तो वह इतना गुस्सा हुआ कि उसने 37 कीलें दीवार में ठोक दीं। अगले कुछ हफ्तों में उसने देखा कि जब वह गहरी सांस लेता और कील ठोकने से पहले थोड़ा रुकता, तो उसका गुस्सा कम हो जाता। धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी। एक दिन रमेश ने अपने पिता से कहा, "पिताजी, मुझे लगता है कि गुस्से को रोकना कील ठोकने से ज्यादा आसान है।" पिता ने मुस्कुराकर कहा, "बहुत अच्छा, बेटा। अब जब तुम्हें पूरा दिन गुस्सा न आए, तो एक कील दीवार से निकाल देना।"

दिन बीतते गए, और रमेश ने मेहनत से अपने गुस्से पर काबू पाना सीख लिया। एक सुबह वह खुशी-खुशी अपने पिता के पास दौड़ा और बोला, "पिताजी, देखो, मैंने सारी कीलें निकाल दी हैं! अब मुझे गुस्सा नहीं आता।" पिता ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, "चलो, मेरे साथ आओ।" उन्होंने रमेश का हाथ पकड़ा और उसे दीवार के पास ले गए। वहां दीवार पर छोटे-छोटे छेद साफ दिख रहे थे। पिता ने गंभीर स्वर में कहा, "बेटा, तुमने वाकई कमाल कर दिखाया, लेकिन इन छेदों को देखो। ये दीवार अब पहले जैसी नहीं रही। ठीक वैसे ही, जब तुम गुस्से में कुछ कहते हो या कर देते हो, तो वह दूसरों के दिल पर निशान छोड़ जाता है।"

रमेश ने सोचते हुए कहा, "तो क्या इसका मतलब है कि मेरा गुस्सा किसी को चोट पहुंचा सकता है?" पिता ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, "हां, बेटा। मान लो अगर तुम किसी को चोट पहुंचाने वाला हथियार चलाओ और बाद में माफी मांग लो, तो भी उसका दर्द कम नहीं होता। गुस्सा भी ऐसी ही चीज है—एक बार निकल गया, तो उसका असर हमेशा रहता है। इसलिए हमेशा शांति से सोचो और बोलो, ताकि बाद में पछतावा न हो।"

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इसके बाद रमेश ने ठान लिया कि वह अपने गुस्से को और बेहतर तरीके से संभालेगा। अगले दिन स्कूल में उसका दोस्त सुनील ने उससे पेंसिल मांगी, लेकिन रमेश ने मना कर दिया। सुनील नाराज हो गया और चला गया। रमेश को लगा कि उसे गुस्सा आ रहा है, लेकिन उसने याद किया कि पिता ने क्या कहा था। उसने सुनील को बुलाया और प्यार से कहा, "दोस्त, मुझे गुस्सा आ रहा था, लेकिन मैं शांत रहना चाहता हूं। ले, यह पेंसिल तेरे लिए।" सुनील मुस्कुराया और दोनों दोस्त फिर से खेलने लगे।

शाम को जब रमेश घर लौटा, तो उसने अपनी मां को सारी बात बताई। मां ने कहा, "बेटा, तुमने बहुत अच्छा किया। गुस्से को काबू करना असली जीत है।" रमेश ने सोचा कि वह अपने दोस्तों को भी यह सबक सिखाएगा। अगले रविवार को उसने गांव के बच्चों को बुलाया और एक छोटी सी कक्षा लगाई। उसने उन्हें कील और दीवार की कहानी सुनाई और कहा, "दोस्तों, अगर हम गुस्से पर काबू कर लें, तो हम सब एक-दूसरे को खुश रख सकते हैं।" बच्चों ने तालियां बजाईं और वादा किया कि वे भी गुस्से से बचेंगे।

रमेश का पिता यह देखकर गर्व से भर उठे। उन्होंने कहा, "बेटा, तुमने न केवल अपने गुस्से को हराया, बल्कि दूसरों को भी सिखाया। यह असली बहादुरी है।" रमेश ने मुस्कुराकर कहा, "पिताजी, आपकी वजह से ही मैं यह सब सीख पाया।" इस घटना ने रमेश के जीवन में एक नई दिशा दी, और वह गांव का एक प्रेरणास्रोत बन गया।

सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि गुस्से पर काबू पाना असली ताकत है। रमेश ने कील ठोकने के जरिए सीखा कि गुस्सा जितना कम होगा, उतना ही जीवन आसान होगा। दूसरी सीख यह है कि गुस्से में बोले गए शब्द या किए गए काम दूसरों के दिल पर गहरे निशान छोड़ सकते हैं, जो माफी से भी नहीं मिटते। इसलिए हमें शांति से सोच-समझकर फैसले लेने चाहिए। अंत में, यह कहानी सिखाती है कि अपने व्यवहार में बदलाव लाकर हम न केवल खुद को बेहतर कर सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर सकते हैं। 

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