गणेशोत्सव से हमें क्या सीख मिलती है यह जानिए

गणेशोत्सव हमारे भारत देश का एक बहुत बड़ा त्योहार है।  लेकिन इसकी सबसे ज्यादा धूम मचती है महाराष्ट्र में। मान्यता है कि इस उत्सव की शुरुआत

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Know what we learn from Ganeshotsav

गणेशोत्सव हमारे भारत देश का एक बहुत बड़ा त्योहार है।  लेकिन इसकी सबसे ज्यादा धूम मचती है महाराष्ट्र में। मान्यता है कि इस उत्सव की शुरुआत शिवाजी महाराज के बचपन में, उनकी माताजी जीजाबाई ने की थी, उसके बाद शिवाजी ने इसे जारी रखा परंतु जब अंग्रेजो ने भारत पर कब्ज़ा जमाया तो इस त्योहार को धूमधाम से मनाने पर रोक लगा दी गई ताकि भारतीय लोग किसी भी तरह एकसाथ मिलजुलकर ना रह पाए।

अंग्रेजों ने भोले भाले भारतीयों के बीच आपस में फूट डालकर उन्हें ऊँच नीच, जाति, धर्म और भाषा के नाम पर एक दूसरे से अलग कर दिया क्योंकि उन्हें डर था कि अगर सारे भारतीय एक दूसरे के दोस्त बन गए और एकजुट हो गए तो अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ सकते हैं।

अंग्रेजो की यह चाल, उस समय के जननायक, देशभक्त, स्वाभिमानी, भारत के सच्चे सपूत बाल गंगाधर तिलक समझ गए और उन्होंने तुरंत सारे भारतवासियों को एकजुट होकर सार्वजनिक रूप से, गली गली पंडाल सजा कर गणपति महोत्सव मनाने का आह्वान किया क्योंकि गणेशोत्सव वो उत्सव हैं जहां अमीर, गरीब, ऊंच नीच, जाति धर्म का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता l

सिर्फ भगवान गणपति को श्रद्धा से कोई भी पूज सकता है। इस तरह 1893 में मुंबई, गिरगांव के केशव जी चाल और पुणे के दगड़ू शेठ हलवाई के लोगों ने धूमधाम से गणेशोत्सव शुरू किया और इन्हीं पंडालों में सारे भारतवासियों ने एकता और एकजुटता बढ़ाकर अंग्रेजों को भारत से सचमुच खदेड़ दिया।

इससे हमें यह सीख मिलती है कि अगर हम आपस में ऊँच नीच, जाति धर्म का भेदभाव भुला कर एकजुट हो जाए तो कोई बाहरी शक्ति हमें हरा नहीं सकता। गणेशोत्सव से जुड़ी एक और प्रेरणादायक पौराणिक कथा यह है कि जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत काव्य को लिखने के लिए गणेश भगवान से मदद मांगी तो गणेश जी ने उन्हें कहा कि वे इस शर्त पर महाभारत लिखेंगे यदि महर्षि वेदव्यास बिना एक पल रुके श्लोकों का उच्चारण लगातार करते रहे। अगर वेदव्यासजी एक पल को रुक गए तो वो भी उसी पल लिखना छोड़ कर चला जाएगा।

वेदव्यास जी मान गए तथा बहुत तेज गति से महाभारत काव्य सुनाने लगे और गणपति महाराज भी तेजी से उसे लिखने लगे, लेकिन तभी गणपति जी की कलम टूट गई। तब अपना वचन और शर्त का पालन करने के लिए गणपति ने तुरंत एक झटके में अपना एक दांत तोड़ लिया और उसे कलम बनाकर लिखना जारी रखा तथा तीन वर्षों तक लगातार दोनों ने आमने सामने बैठकर महाभारत काव्य पूरा किया।

इस कथा से भी हमें यह सीख मिलती है कि पारिस्थिति चाहे कितना भी कठिन हो लेकिन हमें बिना हिम्मत हारे, बिना थके उसे सम्पूर्ण करने की कोशिश करते रहना चाहिए जैसे भगवान गणेश ने किया।
★सुलेना मजुमदार अरोरा★