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Jungle Story : एक था चिड़ा और एक चिड़ी। दोनों ही विनम्र और मृदु। दोनों ही चहकते रहते। दूसरों की दुख तकलीफ में मद्दगार होते। इसीलिए तो टुइया जंगल के सभी पक्षी उन्हें चाहते बहुत थे।
एक दिन जंगल में एक अक्खड़ हाथी आ पहुँचा। आते ही वह लगा तोड़ फोड़ करने एवं आतंक फैलाने। पूरा का पूरा जंगल उसके डर से सहमा सहमा रहने लगा।
जंगल का कोई भी जानवर उससे टक्कर नहीं लेना चाहता था और समझाने का हाथी पर कोई असर ही नहीं होता था। उसकी आतंकी गतिविधियों को देखकर अंततः चिड़ी से रहा नहीं गया।
वह बोली, अपनी ताकत किसी अच्छी जगह लगाओ भाई जी। पर तोड़फोड़ क्या अच्छी चीज है भला।
‘चुप्प’ हाथी गरजा।
इतनी सी तो है, पर बातें बड़ी बड़ी करती है, क्यों? आइंदा मेरे बीच में दखल दिया तो मुझसे बुरा कोई न होगा, हाँ।
‘परन्तु भाई जी। जंगल का कानून तो टिका ही है भाई चारे की भावना पर।
भाड़ में गया तुम्हारा भाईचारा। मुझसे ऐंठी की तो याद रखना मेरा नाम अकड़ूमल हाथी है।
परन्तु अकडू भैया...।
चिड़िया आगे अपना वाक्य पूरा करती कि अकडू आग बबूला हो गया। उसने गुस्से में टहनी हिलाकर चिड़िया के अंडे गिरा दिये। प्यारे प्यारे अंडे फूटकर बर्बाद हो गये।
अब जब भी अकडू उधर से गुजरता, पेड़ की टहनी हिलाकर चिड़ी का घोंसला तोड़ देता। घोंसले में यदि अंडे होते तो फूट जाते। चिड़ी रोती, गिड़गिड़ाती पर अकडू को कोई असर ही नहीं होता।
वह गई तो जंगल के राजा शेरसिंह के पास भी परन्तु बूढ़ा होने के कारण राजा भी कन्नी काट गये। अब राजा का यह हाल था तो और दूसरा जानवर था ही कौन जो चिड़िया की मदद के लिए सामने आता।
एक दिन चिड़ा बोला, चिड़ी तुम फिक्र मत करो। खुद की लड़ाई अब खुद को ही लड़नी पड़ेगी।
चिड़ी घबराकर बोली, नहीं नहीं, तुम कित्ते से तो हो, उस पहाड़ जैसे हाथी के सामने कैसे टिकोगे।
चिड़ा मुस्कुराया फिर बोला, युक्ति के आत्मबल से चिड़ी तुम देखना, मैं इस लड़ाई में अवश्य ही विजयी होऊँगा।
सुबह हुई थी कि वह बिगडै़ल हाथी फिर आ पहुँचा। वह चिड़िया का घोंसला तहस नहस करता उससे पहले चिड़ा गरजकर बोला, रूक जा ओ बिगडैल, अब यदि तूने फिर मेरा घोंसला गिराया तो बहुत पछतायेगा। मैं सजा दूंगा कि जिन्दगी भर याद करेगा। अच्छा। चिरकुटे चिड़े, देखूं भला तुम मेरा क्या बिगाड़ लोगें।
ऐसा कहकर ज्यों ही हाथी डाल हिलाने लगा, ठीक उसी समय चिड़े ने एक तेज उड़ान भरी। वह ठीक हवाईजहाज की तरह डैने फैलाकर उड़ा और हाथी के एक कान में घुसा।
कान में घुसकर चिड़े ने अपनी तेज चोंच से चंचु प्रहार करना आरम्भ कर दिया। अब तो हाथी तिलमिलाया, घबराया, जोर-जोर से गुर्राया, जमीन में लेटा पीटा भी, परन्तु चिड़ा था, उसकी पहुँच के बाहर ही।
चिड़े ने हाथी के कान को भीतर ही भीतर लहुलूहान कर दिया। हाथी अब चिंघाड़ने लगा।
बचाओ, बचाओ, की रट लगाने लगा।
लेकिन अब उसे बचाता कौन?
तब शीरी लोमड़ी सामने आई, उसने पहले तो हाथी को उसकी दुष्टता पर खूब लताड़ा। फिर चिड़िया से बोली।
चिड़िया बहिन, उस मुस्टंडे को खूब सजा दी तुमने। वैसे यह सजा इस दुष्ट के लिए काफी नहीं है, परन्तु अब इसे तुम ही बचा सकती हो।
नहीं, नहीं तुम मुझसे इसके लिये जरा भी दया की उम्मीद मत करो। इस दुष्ट ने बहुत सताया है मुझे।
हाँ अब तुम्ही बचा सकती हो, चिड़िया बहन। तभी हाथी घिघियातें हुये बोला।
मैंने सचमुच ही अपनी ताकत के घमंड में तुम्हें बहुत दुख दिये हैं। परन्तु आज मेरी आँखे खुल चुकी हैं।
यकीन मानो, आज से मैं अकारण किसी को भी नहीं सताऊँगा। और तो और मैं अपने पहले वाले जंगल में वापिस भी चला जाऊँगा।
हाथी के साथ जंगल के अन्य जानवरों ने भी चिड़िया से हाथी के लिये क्षमा याचना की।
चिड़िया सचमुच दयालु थी, वह पहाड़ जैसे हाथी का जमीन पर लोटपोट होते तड़पता दख नहीं सकी। उसे हाथी पर दया आ ही गई। उसने चिड़े को हाथी के कान से बाहर निकलने के लिए राजी कर ही लिया।
हाथी को सजा मिल ही चुकी थी। उसका घमंड भी चूर-चूर हो चुका था। उसने जंगल से बाहर निकलने में ही अपनी भलाई समझी।
देखो तो, अपनी युक्ति और आत्म बल के बल ही पर छोटे से चिड़े ने पहाड़ जैसे हाथी को कैसे पलक झपकते पछाड़ दिया था।
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