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देश की वीर पुत्री कल्पना चावला को हमारा शत-शत नमन : एक भारत की वो बेटी है जो 9 महीने अंतरिक्ष में संघर्ष करने के बाद अब भारत की धरती पर लौट चुकी है. वहीँ दूसरी तरफ भारत की बहादुर बेटी कल्पना चावला है, जो अपनी वीरता का परिचय कई साल पहले ही दे चुकी है. आज हम आपको कल्पना चावला के जीवन वे तथ्य, संघर्ष और योगदान बताएंगे, जो आपको जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे.
हरियाणा के करनाल में 17 मार्च 1962 जन्मी इस वीर पुत्री ने वो कर दिखाया, जो विदेशी अंतरिक्ष यात्री शायद ही कर पाते. बचपन से ही आत्मविश्वासी रही कल्पना अपने चार भाई बहनों में सबसे छोटी थीं. लेकिन उसके हौंसलें बिल्कुल भी छोटे नहीं थे, उनकी उड़ान इतनी थी कि पूरा आसमान उसमें समा जाये और उन्होंने इसे साबित भी करके दिखाया.
इस वीर पुत्री ने अपनी पढ़ाई टैगोर बाल निकेतन स्कूल (करनाल) से की और पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बैचलर्स की डिग्री प्राप्त की. वहीँ उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलोराडो बोल्डर से एयरो स्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की. ये वहीँ साल था जब उन्होंने अपने सपने की और एक और कदम बढ़ाया और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के साथ काम करना शुरू किया. जिसके परिणामस्वरूप दिसंबर 1994 में उन्हें अंतरिक्ष यात्री के 15वें समूह में शामिल कर लिया गया. ये कल्पना के लिए अपने सपने के सच होने जैसा था.
कल्पना के कुछ कर गुजरने के जूनून को देखते हुए NASA ने 1996 में अपने पहले स्पेस मिशन के लिए उन्हें विशेषज्ञ और प्राइम रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में नियुक्त कर लिया. ये कल्पना के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन कल्पना की कल्पना यहाँ तक ही नहीं सीमित थी, उनके सपनों को अब असल के पंख लगने वाले थे.
मिशन STS-87 एक उपलब्धि
कल्पना के लिए 19 नवंबर, 1997 का दिन बहुत ख़ास था क्योंकि इस दिन कोलंबिया स्पेस शटल ने अमेरिका की कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी थी. इसमें कल्पना चावला सहित 6 क्रू मेंबर्स सवार थे. इस मिशन को STS-87 का नाम दिया गया. इस मिशन के दौरान उन्होंने स्पेस में 15 दिन और 16 घंटे बिताए. 5 दिसंबर 1997 को यह स्पेस शटल धरती पर सफलतापूर्वक वापस आ गया. इसके साथ ही वे अंतिरक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला बनीं.
मिशन STS-107
पिछले मिशन की सफलता को देखते हुए NASA ने कल्पना को दूसरे स्पेस मिशन के लिए भी सिलेक्ट कर लिया. इस मिशन को STS-107 का नाम दिया गया. 16 जनवरी, 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल ने फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी. इसमें कल्पना चावला समेत 7 अंतरिक्ष यात्री रिक हसबैंड (कमांडर), विलियम मैककूल (पायलट), माइकल एंडरसन (पेलोड कमांडर), डेविड ब्राउन (मिशन स्पेशलिस्ट), लॉरेल क्लार्क (मिशन स्पेशलिस्ट), इलन रेमन (इजराइली अंतरिक्ष यात्री) सवार थे.
पूरे 15 दिन, 22 घंटे और 20 मिनट रहने के बाद 1 फरवरी 2003 को जब यह शटल धरती के वायुमंडल की तरफ बढ़ रहा था, तभी स्पेस शटल सवार अंतरिक्ष यात्रियों को एक जोरदार झटका लगा. इस झटके के बाद उन्हें सांस लेने में दिक्क होने लगी और वे सभी बेहोश हो गये. उनके शरीर का तापमान बढ़ गया, जिससे शरीर में मौजूद खून उबलने लगा और शटल में एक जोरदार ब्लास्ट हुआ, ब्लास्ट होते ही उनकी और उनकी साथियों की दर्दनाक मौत हो गई. इसके ही साथ भारत ने एक बहादुर बेटी को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया.
इस घटना की जांच में सामने आया कि फोम का एक बड़ा टुकड़ा शटल के बाहरी टैंक से टूटकर अलग हो गया था और इसने अंतरिक्ष यान के पंख को भी तोड़ दिया था. जिससे बाहरी वायुमंडलीय की गैसें शटल के अंदर बहने लगीं. इसके चलते सेंसर खराब हो गए और ब्लास्ट हुआ.
सम्मान
कल्पना को अपने योगदान के लिए राष्ट्रीय युवा वैज्ञानिक पुरस्कार (1982) और NASA विशिष्ट सेवा पदक (2003) से सम्मानित किया गया. इसके साथ ही भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए यह घोषणा की कि ISRO मौसम संबंधी जितने भी उपग्रह स्पेस में भेजेगी, उनके नाम कल्पना सैटेलाइट होंगे. इसके अलावा NASA ने कल्पना चावला के सम्मान में एक सुपर कंप्यूटर और मंगल गृह पर एक पहाड़ी का नाम भी उनके नाम पर ही रखा है.
देश की इस महान बेटी, जिन्होंने न सिर्फ करोड़ों लोगों को अपने सपनों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया है, बल्कि नारी शक्ति की एक अनूठी मिसाल भी कायम की है, को ‘लोटपोट मैगज़ीन’ की ओर से शत-शत नमन!
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