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When Tilka Manjhi picked up against the British know this brave saga of Jharkhand
ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ पहला आदिवासी विद्रोह 🔥
जब भारत में अंग्रेजी शासन ने अपने पैर पसारने शुरू किए, तो देश के आम नागरिकों और खासकर आदिवासी समुदायों पर जुल्म बढ़ने लगे। झारखंड के वीर योद्धा तिलका मांझी ने सबसे पहले ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत की और अपने आदिवासी भाइयों को संगठित किया।
तिलका मांझी, जिन्हें जबरा पहाड़िया के नाम से भी जाना जाता था, का जन्म 11 फरवरी 1750 को सिंगारसी पहाड़ (पाकुड़) में हुआ था। जब उन्होंने देखा कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी गरीब आदिवासियों को शोषण कर रही है और उनकी जमीन हड़प रही है, तो उन्होंने 1772 में हथियार उठा लिए और अपने लोगों को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने का संकल्प लिया।
तिलका मांझी का विद्रोह और बहादुरी ⚔️
तिलका मांझी के नेतृत्व में पहाड़िया समुदाय के लोगों ने छोटा नागपुर और झारखंड के जंगलों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की। वह तीर-धनुष से लैस अपने योद्धाओं के साथ छापामार युद्ध (Guerrilla Warfare) करते थे और अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।
ब्रिटिश सरकार उनकी बढ़ती ताकत से डरने लगी थी, इसलिए उन्होंने उन पर काबू पाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। लेकिन तिलका मांझी ने आखिरी सांस तक हार नहीं मानी।
अंग्रेजों ने उन्हें कई बार पकड़ने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह अपनी चतुराई और बहादुरी से बच निकलते थे। आखिरकार 1784 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1785 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
"हंसी-हंसी, चढ़बो फांसी" – आज भी गूंजता है तिलका मांझी का बलिदान ✊
जब तिलका मांझी को फांसी दी जा रही थी, तब उन्होंने हंसते-हंसते कहा, "हंसी-हंसी, चढ़बो फांसी"। उनका यह बलिदान आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम की नींव बन गया और आगे चलकर बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू और अन्य आदिवासी योद्धाओं को प्रेरणा मिली।
आज भी झारखंड और बिहार के लोकगीतों में तिलका मांझी की गाथा गाई जाती है। उनका बलिदान भारत की आजादी की लड़ाई का एक स्वर्णिम अध्याय है।
👉 तिलका मांझी सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, बल्कि वह भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उनका नाम हमेशा इतिहास में अमर रहेगा! 💪🔥
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