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M.F. Husain Biography in Hindi- मकबूल फिदा हुसैन, जिन्हें प्यार से एम.एफ. हुसैन (M.F. Husain) के नाम से जाना जाता है, भारत के सबसे प्रतिष्ठित और विवादास्पद चित्रकारों में से एक थे। उनकी कला ने न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक अमिट छाप छोड़ी। उन्हें "भारत का पिकासो" कहा जाता है, यह उपाधि उन्हें मशहूर पत्रिका फोर्ब्स ने दी थी। आइए, एम.एफ. हुसैन के जीवन, उनकी कला यात्रा, और उनके योगदान को विस्तार से जानते हैं।
M.F. Husain का प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
मकबूल फिदा हुसैन का जन्म 17 सितंबर 1915 को महाराष्ट्र के पंढरपुर में हुआ था। उनके बचपन में ही उनकी मां का देहांत हो गया, जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली और परिवार सहित इंदौर चले गए। मां की कमी ने हुसैन के जीवन में एक खालीपन छोड़ दिया, जिसे उन्होंने रंगों और कला के माध्यम से भरने की कोशिश की। इंदौर में रहते हुए हुसैन को पेंटिंग का शौक लग गया। वह छोटी उम्र में ही रंग और ब्रश लेकर साइकिल पर निकल पड़ते थे, नदी के किनारे बैठकर प्राकृतिक दृश्यों को निहारते और उन्हें कैनवास पर उतारते। इस दौरान उनका मन पढ़ाई में भी लगता था, लेकिन कला उनकी पहली प्राथमिकता बन गई।
M.F. Husain- कला की शुरुआत और मुंबई का सफर
20 साल की उम्र में, 1935 में, हुसैन इंदौर से मुंबई चले गए। वहां उन्होंने मुंबई के प्रसिद्ध सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया और चित्रकारी का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। मुंबई में उनके करियर की शुरुआत सिनेमा होर्डिंग्स बनाने से हुई। यह काम आसान नहीं था, लेकिन इससे उन्हें आर्थिक सहारा मिला। इसके बाद उन्होंने सूरत, बड़ौदा, और अहमदाबाद जैसे शहरों में पेंटिंग की दुनिया में अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष किया।
हुसैन ने अपने जीवन में कई तरह की नौकरियां कीं। एक समय उन्होंने एक खिलौना बनाने वाली फैक्ट्री में भी काम किया, जहां वे खिलौने डिजाइन करते थे। इस नौकरी में उन्हें अन्य नौकरियों की तुलना में बेहतर पैसे मिलते थे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हुआ।
प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप और कला में क्रांति
1947 में भारत की आजादी के बाद, हुसैन ने प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप जॉइन किया, जिसकी स्थापना एफ.एन. सूजा ने की थी। यह ग्रुप उन युवा कलाकारों का संगठन था, जो तत्कालीन कला जगत में स्थापित राष्ट्रवादी परंपराओं से हटकर नई, प्रयोगधर्मी शैली को अपनाना चाहते थे। इस ग्रुप के साथ हुसैन ने अपनी कला को एक नई दिशा दी। उनकी पेंटिंग्स में भारतीय संस्कृति, परंपराओं, और आधुनिकता का अनोखा मिश्रण देखने को मिला।
हुसैन की शैली में बोल्ड रंगों और अनोखे प्रतीकों का समावेश था। उनकी पेंटिंग्स में घोड़े, नृत्य करती हुई महिलाएं, और भारतीय पौराणिक कथाओं के चरित्र अक्सर देखे गए। उनकी एक मशहूर पेंटिंग "सुनहरा संसार" ने उनके करियर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। इस पेंटिंग को बॉम्बे आर्ट सोसाइटी की प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया, जिसने उन्हें रातोंरात प्रसिद्धि दिला दी।
भारत का पिकासो: वैश्विक पहचान
हुसैन की कला ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। 1952 में उनकी पहली एकल प्रदर्शनी स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में लगाई गई। इसके बाद उनकी कला को विश्व भर में सराहा गया। 1971 में ब्राजील के साओ पाउलो आर्ट फेस्टिवल में उन्हें महान चित्रकार पाब्लो पिकासो के साथ विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें "भारत का पिकासो" की उपाधि दी, जो उनकी कला की गहराई और प्रभाव को दर्शाती है।
हुसैन की पेंटिंग्स में भारतीयता और आधुनिकता का संगम देखने को मिलता था। उनकी कुछ मशहूर कृतियों में "मदर टेरेसा सीरीज", "भारत माता", और "महाभारत सीरीज" शामिल हैं। उन्होंने अपनी कला के जरिए भारतीय इतिहास, संस्कृति, और सामाजिक मुद्दों को दर्शाने की कोशिश की।
पुरस्कार और सम्मान
हुसैन को उनकी कला के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1955 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। इसके बाद 1973 में उन्हें पद्म भूषण और 1991 में पद्म विभूषण पुरस्कार मिला। उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सराहा गया। वह पहले भारतीय कलाकार थे, जिन्हें लंदन के रॉयल अकादमी ऑफ आर्ट्स में मानद सदस्यता दी गई।
विवाद और आलोचनाएं
हुसैन की जिंदगी और कला विवादों से भी घिरी रही। उनकी कुछ पेंटिंग्स, खासकर भारतीय देवी-देवताओं को लेकर बनाई गई कृतियों, को लेकर कई संगठनों ने आपत्ति जताई। 1990 के दशक में उनकी पेंटिंग्स को लेकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा, जिसके बाद उनके खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज हुए। इन विवादों के चलते हुसैन को 2006 में भारत छोड़ना पड़ा। वह पहले दुबई और फिर लंदन चले गए, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी साल बिताए।
M.F. Husain का निजी जीवन और रुचियां
हुसैन का व्यक्तित्व जितना रंगीन था, उतनी ही उनकी जिंदगी भी। वह हमेशा नंगे पांव रहते थे, जो उनकी सादगी और अनोखे अंदाज को दर्शाता था। उन्हें फिल्में बनाने का भी शौक था। उन्होंने "थ्रू द आईज ऑफ ए पेंटर" (1967), "गज गामिनी" (2000), और "मींनाक्षी: अ टेल ऑफ थ्री सिटीज" (2004) जैसी फिल्में बनाईं। उनकी फिल्म "थ्रू द आईज ऑफ ए पेंटर" को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बेयर अवॉर्ड मिला।
हुसैन को बॉलीवुड अभिनेत्री माधुरी दीक्षित की सुंदरता ने बहुत प्रभावित किया था। उन्होंने माधुरी को अपनी कई पेंटिंग्स में चित्रित किया और उनकी खूबसूरती को "गज गामिनी" फिल्म के जरिए पर्दे पर भी उतारा।
M.F. Husain का निधन और विरासत
9 जून 2011 को लंदन में 95 साल की उम्र में एम.एफ. हुसैन का निधन हो गया। उनके निधन से कला जगत में एक बड़ा खालीपन आ गया। लेकिन उनकी कला आज भी जीवित है। उनकी पेंटिंग्स को नीलामी में करोड़ों रुपये में खरीदा जाता है। उनकी एक पेंटिंग "वॉयस ऑफ क्रिएशन" 2014 में क्रिस्टीज नीलामी में 2.5 मिलियन डॉलर में बिकी, जो उस समय भारतीय कला के लिए एक रिकॉर्ड था।
एम.एफ. हुसैन की प्रमुख कृतियां
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सुनहरा संसार: उनकी पहली चर्चित पेंटिंग, जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई।
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मदर टेरेसा सीरीज: मदर टेरेसा की सादगी और सेवा भाव को दर्शाने वाली कृतियां।
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भारत माता: भारत की सांस्कृतिक विविधता को चित्रित करने वाली पेंटिंग।
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महाभारत और रामायण सीरीज: भारतीय पौराणिक कथाओं पर आधारित चित्र।
एम.एफ. हुसैन न केवल एक चित्रकार थे, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी जिंदगी प्रेरणा, संघर्ष, और रचनात्मकता की कहानी है। पंढरपुर से लेकर मुंबई और फिर वैश्विक मंच तक का उनका सफर हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है, जो अपने सपनों को साकार करना चाहता है।
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