भारत के वन पुरुष जादव मोलाई पायेंग

भारत के वन पुरुष, जादव "मोलाई" पायेंग का जन्म 31 अक्टूबर 1959 को असम के जोरहाट में एक स्वदेशी मिशिंग जनजाति में हुआ था। जादव पायेंग, माजुली के एक पर्यावरण कार्यकर्ता और वानिकी कार्यकर्ता हैं।

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भारत के वन पुरुष जादव मोलाई पायेंग

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भारत के वन पुरुष जादव मोलाई पायेंग:- "भारत के वन पुरुष" (फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया / Forest man of india) जादव "मोलाई" पायेंग (Jadav "Molai" Payeng) का जन्म 31 अक्टूबर 1959 को असम के जोरहाट में एक स्वदेशी मिशिंग जनजाति में हुआ था। जादव पायेंग, माजुली के एक पर्यावरण कार्यकर्ता (environmental activist) और वानिकी कार्यकर्ता (forestry worker) हैं, जिन्हें “भारत के वन पुरुष” के नाम से जाना जाता है।

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कई दशकों तक उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के रेतीले तट पर पेड़ लगाए और उनकी देखभाल की और इसे एक वन आरक्षित क्षेत्र (forest reserve) में बदल दिया। उनके नाम पर मोलाई वन (Molai forest) कहलाने वाला यह जंगल भारत के असम के जोरहाट के कोकिलामुख (Kokilamukh of Jorhat, Assam, India) के पास स्थित है और लगभग 1,360 एकड़ (550 हेक्टेयर) क्षेत्र में फैला हुआ है। 2015 में, उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। (Lotpot Personality)

"भारत के वन पुरुष" के रूप में जाने जाने वाले जादव पायेंग ने अपनी मातृभूमि को पुनर्स्थापित (restore) करने के लिए प्रतिदिन एक पेड़ लगाया और न्यूयॉर्क शहर के सेंट्रल पार्क से भी बड़ा जंगल बनाया। 16 साल की उम्र में, जादव "मोलाई" पायेंग ने भारत की ब्रह्मपुत्र नदी में दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप (world’s largest river island) माजुली पर एक दुखद (distressing) दृश्य देखा। सैकड़ों साँप भयंकर सूखे की वजह से मर गए थे।

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अपनी युवावस्था में ही पायेंग ने खुद को कार्रवाई करने के लिए मजबूर महसूस किया। 1979 में, उन्होंने बंजर मिट्टी में...

अपनी युवावस्था में ही पायेंग ने खुद को कार्रवाई करने के लिए मजबूर महसूस किया। 1979 में, उन्होंने बंजर मिट्टी (barren soil) में प्रतिदिन एक पेड़ लगाने के मिशन पर काम शुरू किया। 40 साल से ज़्यादा समय बीतने के बाद, अब उनका जंगल 1,390 एकड़ में फैला हुआ है। (Lotpot Personality)

माजुली, जो कभी नदी से होने वाली बाढ़ और कटाव के लगातार खतरे में रहता था, अब सैकड़ों प्रजातियों के लिए एक अभयारण्य (sanctuary) बन गया है। जैसे-जैसे पेड़ बढ़े, वैसे-वैसे निवासियों (inhabitants) की आबादी भी बढ़ती गई- पक्षी, हिरण, गैंडे, बाघ और यहाँ तक कि हाथियों का एक झुंड जो हर साल तीन महीने के लिए जंगल में आते हैं।

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2007 में, एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब एक फोटो जर्नलिस्ट की नज़र पायेंग के गहन प्रयासों पर पड़ी। उसके बाद एक लेख ने न केवल भारत सरकार बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। पायेंग ने अपनी असाधारण उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए। पायेंग की अद्वितीय पर्यावरण सक्रियता को मान्यता देते हुए, उनके सम्मान में जंगल का नाम "मोलाई" रखा गया। उनकी प्रेरणादायक कहानी ने सीमाओं को पार कर बच्चों की एक किताब "जादव एंड द ट्री प्लेस" को प्रेरित किया। उनकी कहानी पारिस्थितिकी (ecology) में एक मूल्यवान पाठ बन गई है, जिसे अमेरिका और उसके बाहर के स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

पेयंग के जीवन का काम एक हरे-भरे जंगल के निर्माण से कहीं आगे तक फैला हुआ है। उनके पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित (absorb) करते हैं और एक प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जोकि समग्र पारिस्थितिकी तंत्र (overall ecosystem health) के स्वास्थ्य में योगदान करते हैं, जैव विविधता (biodiversity) का समर्थन करते हैं, जल चक्रों को विनियमित करते हैं (regulating water cycles), और विभिन्न प्रजातियों के लिए आवश्यक आवास प्रदान करते हैं। उनके पुनर्वनीकरण (reforestation) प्रयास जलवायु परिवर्तन का एक ठोस और प्रभावशाली समाधान हैं। (Lotpot Personality)

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