सैम मानेकशॉ जीवनी : भारत के पहले फील्ड मार्शल की प्रेरणादायक कहानी

इस लेख में हम सैम मानेकशॉ की जीवनी, उनके सैन्य करियर, उपलब्धियों, और कुछ रोचक तथ्यों (Sam Manekshaw biography in Hindi) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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Sam Manekshaw biography in Hindi

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सैम मानेकशॉ जीवनी : भारत के पहले फील्ड मार्शल की प्रेरणादायक कहानी : सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) भारत के सबसे सम्मानित सैन्य अधिकारियों में से एक हैं, जिन्हें "सैम बहादुर" के नाम से भी जाना जाता है। वे भारत के पहले फील्ड मार्शल थे और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनकी रणनीति ने भारत को शानदार जीत दिलाई, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का उदय हुआ। सैम मानेकशॉ की जिंदगी न केवल साहस और नेतृत्व की मिसाल है, बल्कि उनके जीवन से जुड़े कई सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun facts) भी हैं, जो उनकी शख्सियत को और रोचक बनाते हैं। इस लेख में हम सैम मानेकशॉ की जीवनी, उनके सैन्य करियर, उपलब्धियों, और कुछ रोचक तथ्यों (Sam Manekshaw biography in Hindi) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

सैम मानेकशॉ का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

Sam Manekshaw biography in Hindi
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 सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम सैम होर्मुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था। उनके पिता, डॉ. होर्मुसजी मानेकशॉ, एक डॉक्टर थे, और उनकी माता का नाम हिल्ला था। सैम छह भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थे। उनके दो बड़े भाई लंदन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, और छोटे भाई जेमी बाद में भारतीय वायु सेना में एयर वाइस मार्शल बने।

सैम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में शुरू की और बाद में नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ाई की। 1929 में, 15 साल की उम्र में, उन्होंने जूनियर कैंब्रिज सर्टिफिकेट हासिल किया। 1931 में, उन्होंने सीनियर कैंब्रिज परीक्षा में डिस्टिंक्शन हासिल की। सैम शुरू में डॉक्टर बनना चाहते थे और लंदन जाकर मेडिसिन की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने उनकी उम्र कम होने का हवाला देकर मना कर दिया। इसके बाद, सैम ने अमृतसर के हिंदू सभा कॉलेज (अब हिंदू कॉलेज) में दाखिला लिया और 1932 में साइंस में थर्ड डिवीजन के साथ ग्रेजुएशन किया।
सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun fact): सैम ने अपने पिता के मना करने के बाद बगावत में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की प्रवेश परीक्षा दी। वे 1932 में IMA के पहले बैच में शामिल हुए, जिसे "द पायनियर्स" कहा जाता है।

सैम मानेकशॉ का सैन्य करियर

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सैम मानेकशॉ ने 1 अक्टूबर 1932 को भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में दाखिला लिया। वे 15 कैडेट्स में से एक थे, जिन्हें ओपन प्रतियोगिता के जरिए चुना गया था। 4 फरवरी 1934 को उनकी कमीशनिंग हुई, और उन्हें सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया। उस समय प्रथा थी कि नए भारतीय अधिकारियों को पहले ब्रिटिश रेजिमेंट में भेजा जाता था। सैम को पहले लाहौर में 2nd बटालियन, रॉयल स्कॉट्स में नियुक्त किया गया, और बाद में वे बर्मा में 4th बटालियन, 12th फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट (जिसे 54th सिख्स भी कहा जाता था) में शामिल हुए।
द्वितीय विश्व युद्ध में साहस: 1942 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सैम ने बर्मा अभियान में हिस्सा लिया। सिटांग ब्रिज की लड़ाई में, सैम ने अपनी कंपनी को जीत दिलाई, लेकिन इस दौरान वे बुरी तरह घायल हो गए। उनके पेट, फेफड़ों, और लीवर में सात गोलियां लगीं, और उनकी आंतों का एक हिस्सा भी निकालना पड़ा। उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि सर्जन ने उन्हें बचाने से मना कर दिया था। लेकिन उनके सिख ऑर्डरली, शेर सिंह, ने उन्हें बचाया और सर्जन को ऑपरेशन के लिए मनाया। इस साहस के लिए सैम को मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया। मेजर जनरल डेविड कोवान ने खुद अपना मिलिट्री क्रॉस रिबन सैम के सीने पर लगाया और कहा, "मृत व्यक्ति को मिलिट्री क्रॉस नहीं दिया जा सकता।"
स्वतंत्रता के बाद का करियर: 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद, सैम की यूनिट, 12th फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट, पाकिस्तान सेना का हिस्सा बन गई। सैम को 8th गोरखा राइफल्स में स्थानांतरित किया गया। 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, उन्होंने कश्मीर में भारतीय सेना को हवाई मार्ग से भेजने का सुझाव दिया, जिसने कश्मीर को पाकिस्तानी कब्जे से बचाने में मदद की।
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1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध: सैम मानेकशॉ को 8 जून 1969 को भारतीय सेना का आठवां सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1971 में, भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनकी रणनीति ने भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई। इस युद्ध में सैम ने मुक्ति बाहिनी (बंगाली राष्ट्रवादियों की स्थानीय मिलिशिया) को प्रशिक्षण और हथियार दिए। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, लेकिन सैम की रणनीति के सामने पाकिस्तानी सेना हार गई। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया, और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। इस जीत के लिए सैम को "सैम बहादुर" की उपाधि दी गई।
सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun fact): 1971 के युद्ध से पहले, जब इंदिरा गांधी ने सैम से पूछा कि क्या सेना तैयार है, तो सैम ने जवाब दिया, "मैं हमेशा तैयार हूँ, स्वीटी!" यह जवाब उनकी पारसी पृष्ठभूमि और इंदिरा गांधी के पारसी कनेक्शन (उनके पति फिरोज गांधी पारसी थे) को दर्शाता है।

सैम मानेकशॉ की उपलब्धियां और सम्मान

सैम मानेकशॉ का सैन्य करियर चार दशकों तक चला, जिसमें उन्होंने पांच युद्धों में हिस्सा लिया—द्वितीय विश्व युद्ध, 1947 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, और 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम। उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें कई सम्मान मिले:
  • मिलिट्री क्रॉस (1942): द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा अभियान के दौरान साहस के लिए।
  • पद्म भूषण (1968): नागालैंड और मिजोरम में विद्रोह को कुचलने के लिए।
  • पद्म विभूषण (1972): 1971 के युद्ध में उनकी शानदार रणनीति के लिए।
  • फील्ड मार्शल (1973): सैम भारत के पहले फील्ड मार्शल बने, जो भारतीय सेना का सर्वोच्च रैंक है।
सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun fact): सैम को 8th गोरखा राइफल्स के सैनिकों ने "सैम बहादुर" की उपाधि दी, हालांकि उन्होंने कभी भी गोरखा राइफल्स के साथ सीधे तौर पर सेवा नहीं की। यह उपाधि उनके साहस और नेतृत्व के प्रति सम्मान का प्रतीक थी।

सैम मानेकशॉ की शख्सियत और नेतृत्व

सैम मानेकशॉ अपनी बेबाकी, हास्य, और सैनिकों के प्रति करुणा के लिए जाने जाते थे। वे कई भाषाओं में पारंगत थे, जैसे पंजाबी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, गुजराती, और पश्तो। वे सिख सैनिकों से अक्सर पंजाबी में बात करते थे, जिससे सैनिकों के बीच उनकी लोकप्रियता और बढ़ी।
सैम का नेतृत्व सैनिकों के लिए प्रेरणादायक था। उन्होंने एक बार कहा, "अगर कोई कहता है कि उसे मरने से डर नहीं लगता, तो या तो वह झूठ बोल रहा है या वह गोरखा है।" यह उद्धरण उनकी गोरखा सैनिकों के प्रति प्रशंसा को दर्शाता है। सैम ने सेना में आरक्षण की नीति का भी विरोध किया, क्योंकि उनका मानना था कि इससे सेना की योग्यता प्रभावित होगी।
सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun fact): जब सैनिकों की वर्दी भत्ते में कटौती की बात हुई, तो सैम ने पे कमीशन के सामने कहा, "अगर मैं धोती-कुर्ता पहनकर आऊं, तो क्या मेरे आदेशों का पालन होगा?" इस सवाल ने बहस को खत्म कर दिया।

सैम मानेकशॉ का निजी जीवन और मृत्यु

सैम मानेकशॉ ने 1939 में सिल्लू बोड़े से शादी की, जिनसे उन्हें दो बेटियां हुईं। वे अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे और अक्सर उनके साथ समय बिताना पसंद करते थे। सैम को अपनी पारसी टोपी पहनने का शौक था, जो उनकी पहचान बन गई। वे अपनी मूंछों और व्हिस्की के शौकीन थे, जो उनकी ब्रिटिश सेना की पृष्ठभूमि को दर्शाता था।
27 जून 2008 को, सैम मानेकशॉ का निधन तमिलनाडु के वेलिंगटन में निमोनिया के कारण हुआ। वे 94 साल के थे। उनके निधन पर कई लोगों ने दुख जताया, क्योंकि उनके अंतिम संस्कार में कोई बड़ा सरकारी प्रतिनिधि मौजूद नहीं था, और न ही राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। हालांकि, बांग्लादेश ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया, क्योंकि उन्होंने 1971 के युद्ध में बांग्लादेश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

सैम मानेकशॉ की विरासत

सैम मानेकशॉ की विरासत आज भी जीवित है। 16 दिसंबर 2008 को, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सैम मानेकशॉ की फील्ड मार्शल वर्दी में एक डाक टिकट जारी किया। उनकी मूर्तियां कई जगहों पर स्थापित की गई हैं, जैसे पुणे कैंटोनमेंट और अहमदाबाद में उनके नाम पर एक फ्लाईओवर। 2023 में, बॉलीवुड फिल्म "सैम बहादुर" रिलीज हुई, जिसमें विक्की कौशल ने सैम मानेकशॉ की भूमिका निभाई। यह फिल्म उनकी जिंदगी और 1971 (1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध ) के युद्ध पर आधारित थी।
सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun fact): सैम मानेकशॉ को लेखक सलमान रुश्दी ने अपनी किताब "मिडनाइट्स चिल्ड्रन" में "सैम एंड द टाइगर" चैप्टर में उल्लेख किया, जो 1981 में बुकर पुरस्कार जीत चुकी है।

सैम मानेकशॉ से प्रेरणा

सैम मानेकशॉ की जिंदगी हमें सिखाती है कि साहस, बुद्धिमानी, और हास्य के साथ किसी भी मुश्किल का सामना किया जा सकता है। वे एक ऐसे नेता थे, जो अपने सैनिकों के लिए हमेशा खड़े रहे और देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। उनकी कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा के साथ निभाना चाहिए।
सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun fact): 1971 के युद्ध के बाद हरियाणा सरकार ने सैम को 25 एकड़ जमीन दी थी। लेकिन सैम ने यह जमीन अपने ड्राइवर के नाम कर दी, जिसने उनकी रिटायरमेंट के दिन अपनी नौकरी छोड़ दी थी। यह उनकी उदारता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

सैम मानेकशॉ भारत के एक सच्चे नायक हैं, जिन्होंने अपनी बुद्धिमानी, साहस, और नेतृत्व से देश का नाम रोशन किया। 1971 के युद्ध में उनकी रणनीति ने न केवल भारत को जीत दिलाई, बल्कि एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण भी किया। उनके जीवन से जुड़े सैम मानेकशॉ मज़ेदार तथ्य (Sam Manekshaw fun facts) हमें उनकी शख्सियत के अलग-अलग पहलुओं से रूबरू कराते हैं। सैम मानेकशॉ की कहानी (Sam Manekshaw biography in Hindi) हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।