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शिवराज पाटिल का राजनीतिक करियर: लोकतंत्र को समर्पित एक लंबी यात्रा
भारतीय राजनीति के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय का शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025 को दुखद अंत हो गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज विश्वनाथ पाटिल का 91 वर्ष की आयु में महाराष्ट्र के लातूर में उनके निजी आवास पर लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। पाटिल ने पाँच दशकों से अधिक के अपने सार्वजनिक जीवन में न केवल कांग्रेस पार्टी, बल्कि देश की संसदीय और प्रशासनिक संरचना में भी अमूल्य योगदान दिया। उनका करियर महाराष्ट्र की स्थानीय राजनीति से शुरू होकर देश के सर्वोच्च सदन
उनका जाना भारतीय राजनीति में एक अनुभवी, गंभीर और संवैधानिक मामलों की गहरी समझ रखने वाले नेता की कमी को दर्शाता है।
लातूर से दिल्ली तक का सफ़र: एक प्रभावशाली प्रोफ़ाइल
शिवराज पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को लातूर जिले के चाकुर में हुआ था। कानून की पढ़ाई करने के बाद, उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा 1967 में लातूर नगर पालिका में काम संभालने के साथ शुरू की। उनकी यह ज़मीनी शुरुआत ही आगे चलकर एक विशाल राजनीतिक करियर की नींव बनी।
स्थानीय से राष्ट्रीय नेता
1980 के दशक में, पाटिल ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा और लातूर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह थी कि उन्होंने इसी सीट से लगातार सात बार जीत दर्ज की। यह लगातार जीत उन्हें महाराष्ट्र के सबसे प्रभावशाली और अजेय नेताओं में से एक बनाती है।
संविधान और संसद के संरक्षक
शिवराज पाटिल ने अपने करियर में कई प्रतिष्ठित संवैधानिक पद संभाले।
लोकसभा अध्यक्ष (1991-1996): यह उनके करियर का सबसे गरिमापूर्ण चरण माना जाता है। 10वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने संसद के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में लोकसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू हुआ और नई लाइब्रेरी बिल्डिंग के निर्माण जैसे काम हुए, जिसने भारतीय संसद के तकनीकी और प्रशासनिक बदलाव का अहम दौर चिह्नित किया।
केंद्रीय मंत्री: उन्होंने अपने लंबे कार्यकाल में रक्षा उत्पादन, वाणिज्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा परमाणु ऊर्जा सहित कई प्रमुख मंत्रालयों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं।
गृह मंत्री (2004-2008): उन्हें मनमोहन सिंह सरकार में देश का केंद्रीय गृह मंत्री नियुक्त किया गया।
राज्यपाल (2010-2015): राजनीतिक करियर के अंतिम पड़ाव में उन्होंने पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में भी देश की सेवा की।
विवाद और 26/11 की दुखद घटना
पाटिल का लंबा और गरिमापूर्ण करियर कुछ विवादों से भी घिरा रहा, जिनमें सबसे बड़ी घटना थी 2008 का मुंबई आतंकवादी हमला (26/11)।
26/11 के हमले के समय वे देश के गृह मंत्री थे। सुरक्षा में चूक को लेकर उन्हें नैतिक जिम्मेदारी लेने की मांग का सामना करना पड़ा। हालांकि पाटिल ने हमेशा संवैधानिक मर्यादाओं और नियमों का पालन किया, तथापि इस दुखद घटना के बाद उन्हें भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इस हमले के मद्देनजर, उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह घटना उनके राजनीतिक जीवन का सबसे कठिन मोड़ साबित हुई।
इसके अतिरिक्त, 2022 में भगवद गीता और जिहाद पर दिए गए उनके विवादास्पद बयान ने भी राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक विवाद खड़ा किया था।
विरासत और अंतिम विदाई
शिवराज पाटिल ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे शीर्ष नेताओं के साथ काम किया और बाद में सोनिया गांधी का भरोसा भी जीता। उन्होंने अपने पूरे करियर में सार्वजनिक जीवन के उच्चतम मानकों, अनुशासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने गहरा दुख व्यक्त किया, जिसने राजनीति से परे उनके व्यापक सम्मान को दर्शाया।
सीख (Lesson from Life)
शिवराज पाटिल के लंबे सार्वजनिक जीवन से यह सीख मिलती है कि सत्ता और पद अस्थायी होते हैं, लेकिन अनुशासन, संवैधानिक सिद्धांतों और सार्वजनिक जीवन में वर्षों तक दी गई समर्पित सेवा की विरासत स्थायी होती है। उनका जीवन यह दिखाता है कि राजनीति में सफलता के लिए निरंतर प्रयास, संवैधानिक समझ और लंबे समय तक जनता से जुड़े रहने की आवश्यकता होती है, भले ही करियर में उतार-चढ़ाव और विवाद आएँ।
(Tags): शिवराज पाटिल, कांग्रेस नेता, पूर्व गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लातूर राजनीति, 26/11 विवाद, सार्वजनिक जीवन।
