/lotpot/media/media_files/2025/04/29/ustad-alla-rakha-biography-and-contributions-of-the-legendary-indian-tabla-player-954175.jpg)
उस्ताद अल्ला रक्खा (Ustad Alla Rakha) (29 अप्रैल 1919 - 3 फरवरी 2000) एक भारतीय तबला वादक थे, जिन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। पंजाब घराने से जुड़े इस मास्टर ने अपनी अनोखी शैली और रवि शंकर के साथ साझेदारी से दुनिया भर में तबले की लोकप्रियता बढ़ाई। इस लेख में उनकी जीवन कहानी, संगीत यात्रा, और विरासत के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। (Ustad Alla Rakha biography, Indian classical music, tabla maestro)
प्रारंभिक जीवन: संगीत की ओर प्रेरणा (Early Life: Inspiration Towards Music)
उस्ताद अल्ला रक्खा का जन्म 29 अप्रैल 1919 को जम्मू और कश्मीर के घगवाल गाँव में हुआ था, जो आज सम्बा जिले का हिस्सा है। उनका परिवार मुस्लिम डोगरा था, और उनकी मातृभाषा डोगरी थी, हालाँकि आसपास के अधिकांश डोगरा हिंदू थे। एक किसान परिवार में जन्मे अल्ला रक्खा को बचपन से ही संगीत का शौक था, खासकर यात्रा करने वाले संगीतकारों को देखकर। उनके पिता, जो पहले सैनिक और बाद में किसान बने, संगीत को पेशा मानने के खिलाफ थे, क्योंकि डोगरा समुदाय में कला को निम्न माना जाता था। फिर भी, 12 साल की उम्र में उन्होंने घर से भागकर अपने सपनों का पीछा किया और गुरदासपुर में अपने चाचा के पास रहने लगे। (Alla Rakha early life, Dogri heritage, music inspiration)
संगीत प्रशिक्षण: गुरुओं के साथ शुरुआत (Musical Training: Beginning with Gurus)
अल्ला रक्खा ने संगीत की औपचारिक शिक्षा पंजाब घराने के मशहूर उस्ताद मियां कादिर बख्श से ली, जो उनके पहले गुरु बने। मियां कादिर, जिनके अपने बेटे नहीं थे, ने अल्ला रक्खा को गोद लिया और उन्हें पंजाब घराने का अगला प्रमुख घोषित किया। इसके अलावा, उन्होंने उस्ताद आशिक अली खान (पटियाला घराने के गायक) से शास्त्रीय गायन और राग विद्या सीखी। उनकी दिनचर्या बेहद कठिन थी—वे घंटों तक अभ्यास करते, अक्सर पसीने से भीगते हुए, जो उनकी मेहनत और समर्पण को दर्शाता है। यह कड़ी मेहनत बाद में उनकी शानदार तकनीक का आधार बनी। (Tabla training, Punjab gharana, classical music education)
पेशेवर करियर: रेडियो से बॉलीवुड तक (Professional Career: From Radio to Bollywood)
1936 में अल्ला रक्खा ने लाहौर में ऑल इंडिया रेडियो में स्टाफ कलाकार के रूप में काम शुरू किया। 1938 में उन्हें मुंबई ट्रांसफर किया गया, जहाँ उन्होंने पहला तबला एकल प्रदर्शन दिया, जिसने इस वाद्य यंत्र की पहचान बढ़ाई। 1943 में उन्होंने फिल्म संगीत की दुनिया में कदम रखा और ए.आर. कुरैशी नाम से 23 फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन और रचना की, जिसमें हिंदी और पंजाबी फिल्में शामिल हैं। हालाँकि, 1958 में फिल्म उद्योग से निराश होकर उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर ध्यान केंद्रित किया। (Alla Rakha career, All India Radio, Bollywood music)
रवि शंकर के साथ साझेदारी: विश्व मंच पर तबला (Partnership with Ravi Shankar: Tabla on Global Stage)
1950 के दशक में अल्ला रक्खा की मुलाकात रवि शंकर से हुई, और यह साझेदारी तीन दशकों तक चली। 1967 के मॉन्टेरे पॉप फेस्टिवल और 1969 के वुडस्टॉक फेस्टिवल में उनके प्रदर्शन ने पश्चिमी दर्शकों को भारतीय शास्त्रीय संगीत से परिचित कराया। उनकी "सवाल-जवाब" और "लड़ंत" शैलियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने जुगलबंदी में अली अकबर खान जैसे कलाकारों के साथ भी सहयोग किया। इसके अलावा, 1968 में बडी रिच के साथ "रिच अ ला रक्खा" एल्बम ने क्रॉस-कल्चरल फ्यूजन की शुरुआत की। (Ravi Shankar collaboration, Monterey Pop Festival, tabla global impact)
शिक्षक और संस्थान: अगली पीढ़ी के लिए योगदान (Teacher and Institute: Contribution to Next Generation)
अल्ला रक्खा एक समर्पित शिक्षक थे और 1985 में मुंबई में उस्ताद अल्ला रक्खा संगीत संस्थान की स्थापना की, जहाँ उन्होंने अपनी अनोखी शैली सिखाई। उनके तीन बेटे—जाकिर हुसैन, फजल कुरैशी, और तौफीक कुरैशी—सभी तबला वादक बने, जिसमें जाकिर ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। उनके शिष्यों में योगेश सामसी और अनुराधा पाल जैसे नाम शामिल हैं, जो उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। (Alla Rakha institute, Zakir Hussain legacy, tabla teaching)
सम्मान और मृत्यु: एक युग का अंत (Awards and Death: End of an Era)
1977 में उन्हें पद्म श्री और 1982 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 29 अप्रैल 2014 को उनके 95वें जन्मदिन पर गूगल ने डूडल बनाकर सम्मान दिया। 3 फरवरी 2000 को उनकी बेटी रजिया की मृत्यु के सदमे से दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। न्यूयॉर्क टाइम्स ने उन्हें अपनी पीढ़ी के सबसे बड़े तबला वादक कहा। (Padma Shri award, Google Doodle, Alla Rakha death)
विरासत: तबले का जादूगर (Legacy: The Tabla Wizard)
उस्ताद अल्ला रक्खा ने तबले को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई और हिंदुस्तानी संगीत को नई दिशा दी। उनके बेटे जाकिर हुसैन ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया, जबकि उनके शिष्य आज भी उनकी शैली को जीवित रखे हुए हैं। उनका जीवन संगीत, समर्पण, और नवाचार की मिसाल है। (Tabla legacy, Indian music heritage, Alla Rakha contribution)