जंगल की कहानी : रानू का जन्मदिन जंगल की कहानी : रानू का जन्मदिन :- रानू एक बहुत अच्छा हिरण था। बस एक ही बुरी आदत थी रानू की, वह अपने ऊपर कुछ जरूरत से अधिक ही भरोसा करता था। किसी भी काम को ठीक से सोचे समझे बिना उसे जल्दबाजी से कर डालता था। इसी कारण उसे कई बार नुकसान उठाना पड़ता था। By Lotpot 10 Oct 2023 | Updated On 12 Oct 2023 17:46 IST in Jungle Stories Moral Stories New Update जंगल की कहानी : रानू का जन्मदिन :- रानू एक बहुत अच्छा हिरण था। बस एक ही बुरी आदत थी रानू की, वह अपने ऊपर कुछ जरूरत से अधिक ही भरोसा करता था। किसी भी काम को ठीक से सोचे समझे बिना उसे जल्दबाजी से कर डालता था। इसी कारण उसे कई बार नुकसान उठाना पड़ता था। रानू के माता-पिता उसका जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाते थे। पूरे साल में यही एक दिन था। जिसे सबसे अधिक रानू पसंद करता था। अपने जन्मदिन से अगले दिन से ही रानू अगले जन्मदिन की तैयारी व प्रतीक्षा करना शुरू कर देता था। रानू का जन्मदिन गर्मियों में आता था। इस बार वह दुखी था क्योंकि उसकी माँ ने उसे बताया था कि वे इस बार उसका जन्मदिन हर बार की तरह नहीं मना पाएंगी। इसका कारण ये था कि रानू के पिता को गर्मियों में दफ्तर के काम से कहीं बाहर जाना था सर्दियों की छुट्टी में रानू अपनी माँ के साथ नानी के घर जा रहा था जो बहुत अधिक दूर नहीं था, बस घंटे डेढ़ घंटे का रास्ता था बीच में। रानू जितने दिन भी नानी के घर रहा रोज अपनी नानी से यही शिकायत करता रहा कि इस बार उसका जन्मदिन नहीं मनाया जाएगा। जब रानू अपने घर लौटने लगा तो नानी ने पूछा बेटेे अब कब आओगे? रानू ने उत्तर दिया- नानी अब तो स्कूल खुल रहे हैं। 3-4 महीने तो नहीं आ पाऊँगा गर्मियों में फिर आऊँगा। नानी बोली, क्यों न इस बार तुम्हारा जन्मदिन हम यहीं मना लें? मैं तुम्हारे तथा तुम्हारें दोेस्तों के लिए बढ़िया-बढ़िया खाने की चीजें बनाऊँगी तथा उपहार भी लाऊँगी। रानू तो यह सुनकर खुशी से उछल पड़ा। उसने कहा कि वह अपने जन्मदिन पर अपने दोस्तों के साथ नानी के पास आ जाएगा। और अपना जन्म दिन मनाएगा। 3-4 महीने रानू ने बड़ी कठिनाई से काटे। अन्त में उसका जन्मदिन आ ही गया। रानू ने अपने सभी दोस्तों जिनमें कुत्ता, लोमड़, खरगोश, बकरा आदि सभी शामिल थे पहले से ही न्यौता दे रहा था। रानू ने सुबह से ही अपने दोस्तों को इकट्ठा किया और नानी के घर जाने की जिद करने लगा। रानू की माँ ने कहा बेटा, मुझे थोड़ा सा घर का काम कर लेने दो फिर हम सभी एक साथ तुम्हारी नानी के घर चलेेंगे। पर रानू की वही जल्दबाजी की आदत सामने आ गई वह बोला हम लोेग चलते हैं माँ तुम काम खत्म करने के बाद में आ जाना। रानू की माँ ने समझाया, तुम अभी छोटे हो बेटे रास्ता भूल गए तो? पर रानू को तो अपने ऊपर विश्वास था वह बोला, मुझे नानी के घर का रास्ता अच्छी तरह मालूम हैं। मैंने उनके घर के पास इतनी अच्छी पहचान कर रखी है कि सीधा उस घर में घुसूंगा। रानू की माँ तथा सभी ने समझाया कि अकेले जाना उचित नहीं है पर रानू ने शान के साथ कहा, तुम सभी मुझे मूर्ख समझते हो क्या? देखना मैं कैसे सही जगह पर पहुँचता हूँ। रानू की माँ ने खुशी के दिन अपने बेटे का दिल दुखाना नहीं चाहा और उसे जाने की स्वीकृति दे दी। नए-नए कपड़े पहन कर कूदता फांदता रानू बड़ी शान के साथ आगे-आगे चल रहा था और उसके बाकी साथी उसके पीछे-पीछे आ रहे थे। कई घंटे बाद भी जब रानू को अपनी नानी का घर नहीं मिला तो वह घबरा गया। परन्तु वह अपने दोस्तों के सामने ये जाहिर करना नहीं चाहता था कि वह रास्ता भूल गया है इसलिए वह आगे-आगे चलता गया और यह नाटक करता रहा कि घर का रास्ता जानता है। घंटे भर बाद रानू की माँ ने घर का काम निबटाया और अपनी माँ के घर पहुँची। वहाँ बच्चों को न पाकर रानू की माँ घबरा गई। उन्हें तो मेरे से एक घंटा पहले यहाँ पहुँच जाना चाहिए था। उसने अपनी माँ से कहा। पर तुमने बच्चों को अकेले आने ही क्यों दिया? नानी ने चिंता करते हुए कहा। मैंने तो बहुत मना किया पर वो किसी की सुने तब न! रानू की माँ ने उत्तर दिया। फिर वे दोनों बच्चों को खोजने निकल पड़ीं। उधर काफी देर हो जाने पर रानू के दोस्तों को शक होने लगा कि रानू रास्ता भूल गया हैं। अन्त में रानू को भी ये बात स्वीकार करनी पड़ी। संयोग से उन्हें एक बूढ़ी भेड़ मिल गई तो वह भी रानू की नानी की सहेली थी उसने रानू को रास्ता बताया। रास्ते में ही बच्चों को रानू की माँ तथा नानी भी मिल गई। रानू को अपने मित्रों के सामने शर्मिन्दगी तो उठानी पड़ी ही जन्मदिन का मजा भी किरकिरा हो गया। सब केे मूड खराब हो चुके थे तथा खाना भी ठंडा हो चुका था। रानू की माँ ने पूछा, तुम्हें तो घर की पहचान थी न फिर कहाँ गई तुम्हारी वो पहचान जो तुम घर से इतना आगे निकल आए। तब रानू ने बताया कि नानी के घर के पास टुंड (ठूँठा) जैसा पेड़ था उस पर एक भी पत्ता नहीं था वहीं मैंने निशानी बनाई हुई थी वहीं पेड़ न पाकर मैं आगे बढ़ता चला गया। नानी ने रानू को समझाया बेटे, जब तुम सर्दियों में यहाँ आए थे तब पतझड़ का मौसम था। उस समय पेड़ अपने पुराने पत्ते गिरा देते हैं। बहुत से पेड़ कुछ पत्ते ही गिराते हैं। तथा कुछ पेड़ सारे ही पत्ते गिरा देते हैं। ऐसा ही हमारे घर के साथ वाले पेड़ ने भी किया था। बाद में बंसत आने पर फिर से नए-नए पत्ते निकल आते हैं तथा गर्मियों का पेड़ फिर से हरा भरा हो जाता हैं। तुम्हें आज वह पेड़ इसीलिए नहीं मिला क्योंकि उस पर नए पत्ते आ चुके हैं। रानू की माँ ने कहा देखा तुमने बड़ों की बात न सुनने व जल्दबाजी करने का नतीजा। अपने ऊपर भरोसा करना अच्छी बात हैं पर जरूरत से अधिक कोई भी काम करना ठीक नहीं होता। यदि आज तुम्हें वे भेड़ न मिलती तो न जाने तुम सबका क्या होता। रानू ने तय किया कि वह अब हर काम सोच समझ कर तथा बड़ों की आज्ञा ले कर ही किया करेगा। और पढ़ें : Child Story : जाॅनी और परी Child Story : मूर्खता की सजा Child Story : दूध का दूध और पानी का पानी Like us : Facebook Page #Bacchon Ki Kahani #Best Hindi Kahani #Jungle Story #Bal kahani #जंगल की कहानी You May Also like Read the Next Article