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बूढ़े संत का अनमोल सबक: एक प्रेरक कहानी- यह कहानी राजा रणवीर और एक बूढ़े संत की है, जिन्होंने राजा को सच्चे जीवन का अर्थ सिखाया। वृद्ध ने बताया कि भौतिक सुखों से बढ़कर सेवा और भक्ति है, जिसने राजा को बदल दिया। धर्मशाला बनाकर उसने अपने राज्य को नई दिशा दी।
शुरुआत: राजा की जिज्ञासा
एक समय की बात है, एक राज्य में राजा रणवीर शासन करता था। उसे नई-नई बातें सीखने का जुनून था। एक दिन उसने प्रजा के बीच घूमने का फैसला किया और साधारण वेश में निकल पड़ा। रास्ते में उसे एक वृद्ध व्यक्ति दिखा, जिसके बाल सफेद थे, फिर भी वह चुस्त-दुरुस्त लग रहा था। राजा के मन में सवाल उठा, “यह बूढ़ा इतनी उम्र में इतना ताकतवर कैसे है?” उत्सुक होकर वह वृद्ध के पास गया और बोला, “बाबा, आपकी उम्र क्या है?” वृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, मेरी उम्र 4 साल है।” राजा चौंक गया और सोचा, “क्या यह मेरा मजाक उड़ा रहा है?” उसने फिर पूछा, “बाबा, सच बताइए!” वृद्ध ने फिर वही जवाब दिया, “4 साल।” राजा का गुस्सा बढ़ने लगा, लेकिन उसके गुरु की सलाह याद आई, “क्रोध में ज्ञान नहीं मिलता।” उसने खुद को संभाला और शांति से बोला, “बाबा, आप 80 साल के लगते हैं, फिर यह उम्र क्यों?”
वृद्ध की गहरी बात
वृद्ध ने गंभीरता से जवाब दिया, “राजा साहब, आपका अंदाजा ठीक है। मेरी शारीरिक उम्र 80 साल है, लेकिन असली जीवन मैंने 4 साल पहले शुरू किया। पहले के 76 साल मैंने धन जमा करने और सुख-सुविधाओं में गंवा दिए। मैं स्वार्थ में डूबा था, जो पशु भी कर सकता है। 4 साल पहले मुझे एक संत का उपदेश मिला—भगवान की भक्ति और गरीबों की सेवा ही सच्चा जीवन है। तभी से मैं यही कर रहा हूँ।” राजा ने पूछा, “फिर इतनी शक्ति कैसे?” वृद्ध बोला, “सेवा और भक्ति ने मुझे नया जीवन दिया।”
राजा का परिवर्तन
राजा की आँखें खुल गईं। उसने कहा, “बाबा, आपने मेरा नजरिया बदल दिया!” वृद्ध ने सलाह दी, “राजा जी, अपने राज्य में दान और धर्म का रास्ता अपनाएं।” राजा ने तुरंत योजना बनाई—उसने महल में एक धर्मशाला बनवाई, जहाँ गरीबों को भोजन और दवाइयाँ मिलने लगीं। एक दिन उसकी बेटी ने पूछा, “पिताजी, यह सब क्यों?” राजा ने मुस्कुराकर कहा, “बेटी, सच्ची खुशी देने में है, लेने में नहीं।” धीरे-धीरे राज्य में खुशहाली फैल गई।
सीख
जीवन में सच्ची शक्ति और खुशी भक्ति और दूसरों की मदद से आती है। स्वार्थ छोड़कर सेवा का रास्ता अपनाना ही असली जीत है।
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