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स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक कहानी: शिकागो में आत्मविश्वास का सबक- एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा (1893) में भाग लेने गए थे, जहाँ उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करना था। इस आयोजन में दुनिया भर से आए विद्वानों और धर्मगुरुओं के सामने बोलने का मौका मिला। लेकिन शुरुआत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आयोजकों ने उन्हें बोलने के लिए केवल दो मिनट का समय दिया और साथ ही यह भी कहा कि वे अपने भाषण में विवादास्पद बातें न करें, क्योंकि भीड़ में अलग-अलग धर्मों के लोग थे।
स्वामी विवेकानंद उस समय केवल 30 साल के थे और उनके पास न तो कोई बड़ा मंच था और न ही कोई शानदार परिचय। कई लोग उनके कपड़ों और साधारण व्यक्तित्व को देखकर उन्हें हल्के में ले रहे थे। लेकिन स्वामी जी ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों" कहकर की, जो सुनने वालों के दिलों को छू गया। यह संबोधन इतना प्रभावशाली था कि पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उनके आत्मविश्वास और सरलता ने सभी का ध्यान खींचा।
इसके बाद उन्होंने भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की महानता के बारे में बात की, जिसमें उन्होंने कहा कि सभी धर्म सत्य के अलग-अलग रास्ते हैं। उनका यह भाषण इतना प्रेरणादायक था कि उन्हें खड़े होकर पांच मिनट तक तालियाँ मिलीं। इस घटना ने न केवल स्वामी विवेकानंद को विश्व प्रसिद्धि दिलाई, बल्कि भारत की गरिमा को भी बढ़ाया।
सीख
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच के साथ किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने दिखाया कि सही मकसद और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ हम दुनिया को अपनी बात कह सकते हैं, भले ही हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।