जीवन का पाठ: राजा और साधु की मोटिवेशनल कहानी

जीवन का पाठ: राजा और साधु की प्रेरक कथा- यह कथा राजा विक्रमादित्य और महर्षि दयानंद की है, जहाँ एक टूटे गमले ने नौकर गोविंद की जान को खतरे में डाला। महर्षि की चतुराई ने न केवल गोविंद को बचाया

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जीवन का पाठ: राजा और साधु की प्रेरक कथा- यह कथा राजा विक्रमादित्य और महर्षि दयानंद की है, जहाँ एक टूटे गमले ने नौकर गोविंद की जान को खतरे में डाला। महर्षि की चतुराई ने न केवल गोविंद को बचाया, बल्कि राजा को जीवन की नश्वरता का पाठ भी सिखाया। यह कहानी मेहनत और दया का संदेश देती है।

शुरुआत: फूलों का शौकीन राजा

एक समय की बात है, एक समृद्ध राज्य में राजा विक्रमादित्य का राज था। उन्हें फूलों का गहरा शौक था। अपने महल के बगीचे में उन्होंने 25 खूबसूरत गमले सजवाए थे, जिनमें सुंदर और सुगंधित फूल खिलते थे। हर सुबह वह अपने शयनकक्ष को इन फूलों से सजवाते और उनकी खुशबू में खो जाते। बगीचे की देखभाल के लिए उन्होंने एक विश्वासपात्र नौकर, गोविंद, को नियुक्त किया था। गोविंद दिन-रात मेहनत से गमलों को पानी देता और उनकी देखभाल करता था।

एक दिन, जब गोविंद गमलों को साफ कर रहा था, तो अचानक उसका हाथ फिसला और एक गमला नीचे गिरकर टूट गया। यह खबर राजा तक पहुँची, और वे क्रोध से लाल हो गए। उन्होंने तुरंत हुक्म सुनाया, “यह नौकर ने मेरे प्यारे गमले को तोड़ा है, इसलिए दो महीने बाद इसे फाँसी दे दी जाएगी!” दरबार में मंत्री महोदय ने राजा को समझाने की कोशिश की, “महाराज, यह तो एक छोटी सी गलती है। इतनी सख्त सजा उचित नहीं।” लेकिन राजा ने सिर हिलाकर मना कर दिया और कहा, “नहीं, नियम तो नियम है!”

नगर में घोषणा और साधु का आगमन

राजा ने पूरे नगर में ढोल पीटकर ऐलान करवाया, “जो कोई मेरे टूटे गमले को वैसा ही ठीक कर देगा, उसे ढेर सारा सोना और सम्मान दिया जाएगा!” खबर सुनकर कई कारीगर और जादूगर अपने-अपने तरीके आजमाने आए, लेकिन कोई भी गमले को जोड़ नहीं सका। दिन बीतते गए, और उम्मीदें धूमिल होती गईं।

एक दिन, एक साधु, जिनका नाम था महर्षि दयानंद, उस नगर में पहुँचे। उनकी ख्याति दूर-दूर तक थी, और गमले की बात उनके कानों तक पहुँची। वे राजदरबार में गए और बोले, “महाराज, मैं आपके गमले को जोड़ने का वचन देता हूँ, लेकिन पहले मुझे कुछ कहना है।” राजा ने उत्सुकता से पूछा, “क्या कहना चाहते हैं, महर्षि?” साधु ने शांत स्वर में कहा, “यह मिट्टी का गमला और आपकी देह, दोनों ही नश्वर हैं। ये फूलते-फलते हैं, फिर सूख जाते हैं। गमला टूटना स्वाभाविक है, लेकिन प्राणियों को सजा देना उचित नहीं।”

राजा ने तपाक से कहा, “नहीं, यह मेरा नियम है। गमला जोड़ा जाए, वरना सजा होगी!” महर्षि ने सिर झुकाया और कहा, “ठीक है, जैसा आप कहें।” राजा ने उन्हें बगीचे में ले जाया, जहाँ टूटा गमला पड़ा था।

साधु की चतुराई और राजा का सबक

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बगीचे में पहुँचकर महर्षि ने एक लकड़ी का डंडा उठाया। राजा सोचने लगे, “शायद यह कोई जादुई तरीका है।” लेकिन अगले ही पल महर्षि ने डंडे से एक-एक करके सभी 25 गमलों को तोड़ दिया। राजा का मुँह खुला का खुला रह गया। वे चीखे, “ये क्या किया आपने, महर्षि? मेरे कीमती गमले!” महर्षि ने शांत रहते हुए जवाब दिया, “महाराज, मैंने आपकी और अपने नियम को बचाया। एक गमले के टूटने पर एक नौकर को फाँसी, तो 25 गमलों के टूटने पर 25 लोगों को सजा! मैंने इन्हें तोड़कर 24 और लोगों की जान बचा ली। अब गोविंद की सजा माफ करें।”

राजा कुछ देर सोच में पड़ा रहा। फिर उसकी आँखों में समझ की चमक आई। वह महर्षि के पैरों पर गिरकर बोला, “क्षमा करें, महर्षि। आपने मुझे सही राह दिखाई। मैंने गलत निर्णय लिया था।” महर्षि ने उसे उठाया और कहा, “राजा, जीवन क्षणभंगुर है। नियम बनाओ, लेकिन दया के साथ।” राजा ने तुरंत गोविंद को बुलवाया और उसकी फाँसी का हुक्म रद्द कर दिया। गोविंद ने राहत की सांस ली और महर्षि का आभार माना।

नया बदलाव और सबक

इस घटना के बाद राजा विक्रमादित्य का व्यवहार बदल गया। उन्होंने अपने दरबार में एक नया नियम बनाया कि हर सजा से पहले उसके परिणामों पर विचार होगा। गोविंद को बगीचे का प्रबंधक बना दिया गया, और वह और मेहनत से काम करने लगा। एक दिन राजा ने गोविंद से कहा, “अब से हर गमला टूटे, तो उसे नया लगाना। पुराने को याद रखना, लेकिन नए से सीखना।” गोविंद मुस्कुराया और बोला, “जी हजूर, आपकी बात सही है।”

महर्षि दयानंद ने नगर में कुछ दिन रुककर लोगों को जीवन के सच्चे मंत्र सिखाए। बच्चे उनके पास आते और पूछते, “बाबा, गमले क्यों टूटे?” महर्षि हंसते हुए कहते, “बच्चों, ये टूटना प्रकृति का नियम है। जो टूटता है, वही नया बनाता है।” इस घटना ने पूरे राज्य में एक नई सोच जगा दी।

सीख

कोई भी निर्णय लेने से पहले उसके परिणामों पर गहराई से विचार करना चाहिए। दया और समझदारी से लिए गए फैसले ही समाज और व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाते हैं।

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