जलकुंभी के बुरादे से साफ होगा दूषित रंगीन पानी

गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की वनस्पति विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. स्मृति मल्ल ने एक बेहद उपयोगी और पर्यावरण हितैषी शोध में सफलता प्राप्त की है।

By Lotpot
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 जलकुंभी के बुरादे
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गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की वनस्पति विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. स्मृति मल्ल ने एक बेहद उपयोगी और पर्यावरण हितैषी शोध में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने अपने अध्ययन में सिद्ध किया है कि जलकुंभी के बुरादे से कागज़, चमड़ा, ऊन जैसे उद्योगों से निकलने वाले मेथिलीन ब्लू युक्त दूषित रंगीन पानी को बेहद कम खर्च में साफ किया जा सकता है।

🔹 शोध की पृष्ठभूमि:

डॉ. स्मृति को यह विचार गोरखपुर की रामगढ़ ताल में फैली जलकुंभी देखकर आया। उन्होंने सोचा कि यह अनुपयोगी खरपतवार यदि किसी उपयोग में आ जाए, तो प्रदूषण और जलकुंभी दोनों की समस्या का समाधान हो सकता है। इस पर प्रयोग करते हुए उन्होंने जलकुंभी को सुखाया, घरेलू मिक्सी में उसका बुरादा बनाया और उसे प्रयोगशाला में 100 मिलीलीटर मेथिलीन ब्लू युक्त पानी में मिलाया।

🔹 शोध की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • लगभग 10 मिलीग्राम जलकुंभी बुरादे से 100 मिलीलीटर रंगीन पानी 24 घंटे में पूरी तरह रंगहीन हो गया।

  • एक वर्ष तक यह प्रयोग 12 बार दोहराया गया, और हर बार परिणाम समान रहे।

  • जलकुंभी आसानी से उपलब्ध होने वाली वनस्पति है, इसलिए इसका बुरादा तैयार करना भी सस्ता और सरल है।

  • शुद्ध पानी को फिल्टर करने के बाद घरेलू कार्यों में भी प्रयोग किया जा सकता है।

🔹 शोध को मान्यता:

भारत सरकार के Intellectual Property Right India पोर्टल तथा Department for Promotion of Industry and Internal Trade (DPIIT) द्वारा इस शोध को प्रकाशित किया गया है। यह प्रमाणित करता है कि यह शोध राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त और औद्योगिक समाधान के लिए उपयुक्त है।

🔹 उद्योग और पर्यावरण के लिए उपयोगी:

क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक राम मिलन वर्मा के अनुसार, यह शोध छोटे और मझोले उद्योगों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इससे रंगीन अपशिष्ट जल का निस्तारण सुलभ होगा और जल स्रोतों को प्रदूषित होने से रोका जा सकेगा।

🔹 कुलपति का वक्तव्य:

प्रो. पूनम टंडन, कुलपति, दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर ने कहा,

"डा. मल्ल का यह शोध तीन तरह से उपयोगी है—जल प्रदूषण नियंत्रण, जलकुंभी के प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण। ऐसे शोध समाज और पर्यावरण के हित में उपयोगी कड़ी हैं।"


📌 महत्वपूर्ण बिंदु संक्षेप में:

  • शोधकर्ता: डॉ. स्मृति मल्ल, असिस्टेंट प्रोफेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग, DDU गोरखपुर

  • विधि: जलकुंभी का बुरादा, 10 मिलीग्राम प्रति 100 मि.ली. पानी

  • परिणाम: 24 घंटे में मेथिलीन ब्लू युक्त पानी साफ

  • उद्देश्य: औद्योगिक प्रदूषण निवारण और पर्यावरण संरक्षण

  • मान्यता: DPIIT एवं IPR India द्वारा स्वीकृत शोध


📸 फोटो विवरण:

  1. जलकुंभी का पत्ता

  2. मेथिलीन ब्लू युक्त रंगीन और शुद्ध किया गया पानी

  3. शोधकर्ता डॉ. स्मृति मल्ल

  4. कुलपति प्रो. पूनम टंडन

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