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समृधि मेहरा, जिन्हें हाल ही में शो ‘छोरियां चली गांव’ में देखा गया था, ने लोटपोट कॉमिक्स के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में अपने बचपन से जुड़ी सबसे प्यारी यादें शेयर कीं.
सवाल
हम सभी की बचपन से जुड़ी कुछ न कुछ यादें ज़रूर होती है, आप की भी अपनी कुछ न कुछ यादें और शरारतें रही होंगी, आपके फैन्स ज़रूर यह जानना चाहते होंगे कि बचपन में आप कितनी शरारती और नटखट थी. इसके अलावा आपने क्या-क्या शरारतें कीं और आपको खाने में क्या पसंद है? इस बारे में हमसे कुछ शेयर करें.
मुझे मोटू पतलू कार्टून बहुत पसंद है.वैसे लोग मुझे और मेरी बहन को भी ‘मोटू-पतलू’ बुलाया करते थे — क्योंकि हम दोनों बेहद शरारती थे.लेकिन हमारे बीच जितनी शरारत थी, उतना ही प्यार भी था. मैं तो आज भी मोटू-पतलू को ‘Chinki Minki’ से कंपेयर करती हूँ, क्योंकि हम दोनों की तरह वो भी हर वक्त मस्ती में रहते हैं.बहनों के बीच ऐसा ही रिश्ता होता है — झगड़ा भी, नोकझोंक भीऔर प्यार भी.
बचपन में अगर कोई हमें एक टॉफी भी देता था, तो हम कहते, “मेरी बहन को भी दो!”और अगर मेरी बहन को कोई डांटता या थप्पड़ मारता , तो मैं तुरंत बोल पड़ती, “ मुझे भी मारो” यही हमारी दुनिया थी.
अब खाने की बात करें तो, बचपन में हमारे घर में राजमा चावल और कढ़ी चावल की हमेशा डिमांड रहती थी.मैं और चिंकी, दोनों मम्मी से रोज़ कहते “मम्मी, आज राजमा चावल बना दोया फिर कढ़ी चावल बना दो. ”मम्मी बड़े प्यार से खाना बनातीं और प्लेट में लाकर देतीं. लेकिन होता कुछ यूँ — प्लेट चिंकी को मिलती, और कुछ देर बाद वो रसोई में जाकर कहती, “मम्मी, आपने तो मुझे कुछ दिया ही नहीं! मम्मी हैरान होकर कहतीं —“अरे, अभी तो तुम्हें ही दिया था!”और चिंकी शरारत से मुस्कराते हुए कहती “नहीं मम्मी, आपने मिंकी को दिया था!”ऐसे ही मस्ती और मासूमियत में हमारा बचपन बीता.
अब बड़ी हो गई हूँ, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं, लेकिन दिल के किसी कोने में वो ‘मोटू-पतलू वाला बचपना’ आज भी ज़िंदा है. मैं चाहती हूँ कि वो मासूमियत, वो हँसी, वो शरारत — कभी खत्म न हो, क्योंकि सच तो ये है —कुछ रिश्ते उम्र के साथ नहीं बदलते, बस और गहरे हो जाते हैं.
