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शुरुआत: एक साधारण लड़की का असाधारण सफर
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से ताल्लुक रखने वाली पूजा पाल ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी मुश्किल है। मिट्टी की दीवारों और छप्पर से बने घर में पली-बढ़ी पूजा ने अपने दृढ़ संकल्प और मेहनत से जापान तक का रास्ता तय कर लिया। यह कहानी केवल पूजा की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारता और सपनों को साकार करने की कोशिश करता है।
पूजा पाल का जीवन
बाराबंकी के सिरौलीगौसपुर तहसील के अगेहरा गाँव में रहने वाली पूजा पाल का घर कच्चा है, जहाँ बारिश के दिनों में छत से पानी रिसता था। फिर भी उनकी सोच इस सीमित दुनिया से परे थी। उनके पिता पुत्तीलाल रोज़ मजदूरी करते हैं, जबकि माँ सुनीला देवी एक सरकारी स्कूल में खाना बनाती हैं। पाँच भाई-बहनों के बीच जिंदगी गुज़ारने वाली पूजा की आर्थिक हालत कमजोर रही, लेकिन उसने न तो गरीबी को और न ही घर की अंधेरी रातों को अपने रास्ते में बाधा बनने दिया। वह पढ़ाई में तेज़ थी और घर के कामों—चारा काटने, पशुओं की देखभाल और अन्य जिम्मेदारियों—के साथ अपनी शिक्षा को जारी रखा।
डस्ट फ्री थ्रेशर मशीन का आविष्कार
पूजा के जीवन में तब नया मोड़ आया, जब उसने आठवीं कक्षा में एक अनोखा विज्ञान मॉडल तैयार किया, जो किसानों के लिए वरदान बन सकता था और पर्यावरण को भी लाभ पहुँचाता था। उसने देखा कि थ्रेशर मशीन से उठने वाली धूल लोगों के लिए परेशानी का कारण है। इसे हल करने के लिए उसने टीन और पंखे का इस्तेमाल कर एक मॉडल बनाया, जिसमें धूल एक थैले में जमा हो जाती थी।
मॉडल की सफलता
यह मॉडल न सिर्फ पर्यावरण के लिए सुरक्षित था, बल्कि किसानों के लिए भी उपयोगी साबित हुआ। इसे बनाने में पूजा ने करीब 3000 रुपये खर्च किए, जो उसके परिवार के लिए बड़ी रकम थी। फिर भी, 2020 में जब यह मॉडल जिला, मंडल और राज्यस्तरीय प्रदर्शनी में चुना गया, और राष्ट्रीय विज्ञान मेले में जगह बनाई, तो उसकी मेहनत रंग लाई।
जापान की यात्रा
2024 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने उनके मॉडल को राष्ट्रीय मेले में शामिल किया। उनकी प्रतिभा देखकर भारत सरकार ने जून 2025 में पूजा को शैक्षिक भ्रमण के लिए जापान भेजा, जहाँ उसने अपनी काबिलियत से सभी को प्रभावित किया।