/lotpot/media/media_files/2025/12/16/vijay-diwas-1971-indo-pak-war-history-significance-facts-2025-12-16-13-50-39.jpg)
इतिहास के पन्नों में दर्ज वो 13 दिन, जिसने दुनिया का भूगोल बदल दिया
युद्ध अक्सर सीमाओं पर लड़े जाते हैं, लेकिन कुछ युद्ध ऐसे होते हैं जो सीधे 'नक्शे' (Map) पर लड़े जाते हैं। आज 16 दिसंबर है—वही तारीख, जब 1971 में भारतीय सेना के अदम्य साहस ने केवल 13 दिनों के भीतर न सिर्फ पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था, बल्कि दुनिया के मानचित्र पर एक नए देश 'बांग्लादेश' को जन्म दिया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण (Surrender) था। जरा सोचिए उस मंजर के बारे में—ढाका का रेसकोर्स मैदान, भारतीय सेना के मेजर जनरल जे.एफ.आर. जैकब की घड़ी की टिक-टिक और सामने खड़े पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी, जिनकी आंखों में हार का खौफ साफ दिखाई दे रहा था। आज जब हम 2025 में इस दिवस को मना रहे हैं, तो यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय कूटनीति और सैन्य शक्ति का वह स्वर्ण अध्याय है जिसे हर युवा को जानना चाहिए।
सैम बहादुर का 'धैर्य' और इंदिरा गांधी का 'फैसला'
इस युद्ध की कहानी अप्रैल 1971 में ही शुरू हो सकती थी, लेकिन तत्कालीन सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने रुकने का फैसला किया। यह उनका मास्टरस्ट्रोक था। उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से साफ कहा था कि बरसात में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) नदियों का जाल बन जाता है। हमें सर्दियों का इंतजार करना होगा।
यही वह रणनीतिक धैर्य (Strategic Patience) था जिसने युद्ध का पासा पलट दिया। जब दिसंबर में युद्ध शुरू हुआ, तो भारतीय सेना ने तीन तरफ से बिजली की गति (Blitzkrieg Strategy) से हमला बोला। उधर मुक्ति वाहिनी का सहयोग और इधर भारतीय वायुसेना का आसमान पर कब्जा—पाकिस्तानी सेना को संभलने का मौका ही नहीं मिला।
जब INS विक्रांत ने समंदर में आग लगा दी थी
अक्सर हम थल सेना की बात करते हैं, लेकिन 1971 का युद्ध भारतीय नौसेना (Indian Navy) के पराक्रम का भी गवाह है। पाकिस्तान को लगा था कि अमेरिका का सातवां बेड़ा (7th Fleet) उसकी मदद को आएगा, लेकिन उससे पहले ही भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह को आग के गोले में बदल दिया था। ऑपरेशन ट्राइडेंट और ऑपरेशन पाइथन ने पाकिस्तान की नौसैनिक कमर तोड़ दी थी। यह बताता है कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सही को-ऑर्डिनेशन से जीते जाते हैं।
93,000 सैनिकों का सरेंडर: एक मनोवैज्ञानिक जीत
दुनिया के सैन्य इतिहास में ऐसा कम ही होता है जब 93,000 प्रशिक्षित सैनिक हथियार डाल दें। वह तस्वीर आज भी हर भारतीय के दिल में बसी है—जब पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने अपने रिवॉल्वर से गोलियां निकालकर भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को सौंपी थीं।
यह जीत सिर्फ जमीन के टुकड़े की नहीं थी; यह उस विचारधारा की हार थी जो धर्म के नाम पर अत्याचार कर रही थी। भारत ने साबित कर दिया था कि वह मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए सरहदें लांघने का साहस रखता है।
तथ्यों के आईने में विजय दिवस (Wikipedia Inspired)
विजय दिवस से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यात्मक पहलू हैं जो इसे और भी खास बनाते हैं:
तारीख: यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ और 16 दिसंबर 1971 को समाप्त हुआ।
परिणाम: पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ और 'बांग्लादेश' बना।
महत्वपूर्ण दस्तावेज: 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर' (Instrument of Surrender) पर ढाका में दोपहर 4:31 बजे हस्ताक्षर किए गए थे।
नायक: इस युद्ध में लांस नायक अल्बर्ट एक्का, फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों और सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल जैसे वीरों को उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
इस युद्ध के विस्तृत घटनाक्रम और तकनीकी जानकारी के लिए आप विकिपीडिया का यह पेज देख सकते हैं:
Wikipedia: Vijay Diwas
2025 में विजय दिवस के मायने
आज, 54 साल बाद, विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि भारत न कभी डरा है, न कभी झुका है। 1971 का युद्ध हमें सिखाता है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति (Political Will) और सैन्य कौशल (Military Prowess) एक साथ मिल जाएं, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।
आज की भू-राजनीतिक (Geopolitical) परिस्थितियों में, जब पड़ोसी मुल्कों से चुनौतियां बरकरार हैं, विजय दिवस की यह लौ हमें आश्वस्त करती है कि हमारी सुरक्षा अभेद्य हाथों में है। आइए, आज उन वीरों को नमन करें जिन्होंने अपने 'आज' को हमारे 'कल' के लिए कुर्बान कर दिया।
जय हिंद! विजय दिवस अमर रहे!
