रानी की वाव-पाटन इतिहास

रानी की वाव-पाटन इतिहास: गुजरात में रानी की वाव और राण-की वाव का निर्माण सोलंकी साम्राज्य के समय में किया गया था।प्राचीन मान्यताओ के अनुसार

New Update
Rani Ki Vav

रानी की वाव-पाटन इतिहास: गुजरात में रानी की वाव और राण-की वाव का निर्माण सोलंकी साम्राज्य के समय में किया गया था।

प्राचीन मान्यताओ के अनुसार इसका निर्माण सोलंकी साम्राज्य के संस्थापक मुलाराजा के बेटे भीमदेव प्रथम (सन् 1022 से 1063) की याद में 1050 सन् के समय में उनकी विधवा पत्नी उदयामती ने बनवाया था, जिसे बाद में करणदेव प्रथम ने भी पूरा किया था।

इस बावली को बाद में सरस्वती नदी ने पूरी तरह से जलव्याप्त कर दिया था और 1980 तक यह बावली पूरी तरह से पानी से ही भरी हुई थी। लेकिन फिर कुछ समय बाद जब आर्कियोलाॅजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसे खोज निकाला था, उस समय इसकी हालत काफी खस्ता थी।

आर्किटेक्चरः

प्राचीन जानकारो के अनुसार यह आकर्षक बावली तकरीबन 64 मीटर लम्बी, 27 मीटर गहरी और 20 मीटर चैड़ी हैं।

अपने समय की सबसे प्राचीन और सबसे अद्भुत निर्मितियो में इस बावली का समावेश किया गया है। लेकिन वर्तमान में इसमें बहुत पानी भरा हुआ है।

वर्तमान में हमें बावली का थोडा सा हिस्सा ही पूरी तरह से दिखाई देता है। लेकिन बावली में स्थापित एक पिल्लर हमें आज भी दिखाई देता है, जो प्राचीन समय की कलाकृतियांे का अद्भुत उदाहरण है।

भारत की सबसे प्राचीनतम और अद्भुत और सुंदर निर्मितियो और कलाकृतियों में से यह एक है।

बावली के नीचे एक छोटा द्वार भी है, जिसके भीतर 30 किलोमीटर की एक सुरंग भी है, लेकिन फिलहाल इस सुरंग को मिट्टी और पत्थरो से ढक दिया गया है।

पहले यह सुरंग बावली से निकलकर सीधी सिद्धपुर गाँव को जाकर मिलती थी। कहा जाता है की राजा इसका उपयोग गुप्त निकास द्वार के रूप में करते थे।

Rani Ki Vav

अलेंत किनारों की दीवारेः

बावड़ी में बनी बहुत सी कलाकृतिंया को मूर्तियों में ज्यादातर भगवान विष्णु से संबंधित है। भगवान विष्णु के दशावतार के रूप में ही बावली में मूर्तियों का निर्माण किया गया है, जिनमे मुख्य रूप से कल्कि, राम, कृष्ण, नरसिम्हा, वामन, वाराही और दूसरे मुख्य अवतार भी शामिल है।

इसके साथ-साथ बावली में नागकन्या और योगिनी जैसी सुंदर अप्सराओ की कलाकृतिंया भी बनायी गयी है। बावड़ी की कलाकृतिंया को अद्भुत और आकर्षित रूप में बनाया गया है।

आज से तकरीबन 50-60 साल पहले के आयुर्वेदिक पौधे आज भी हमें रानी की वाव में देखने को मिलते है, जिनका उपयोग प्राचीन समय में बहुत सी गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता था।

गुजरात में स्थापित इस वाव का महत्त्व केवल पानी जमा करने के लिए नही है बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्त्व भी है। वास्तव में गुजरात की वाव का निर्माण प्राचीन आर्किटेक्चर स्टाइल में ही किया गया है, जिसके अंदर मंदिर और एक गुप्त सुरंग भी है। जैसे-जैसे हम इसके अंदर जाते है, वैसे-वैसे इसमें पानी का प्रमाण बढ़ जाता है।

रानी को वाव में बनी सीढियाँ निचली सतह तक बनी हुई है। और इस बीच बावली की दीवारों को अलंकृत भी किया गया है और दीवारों पर विविध कलाकृतिंया भी की गयी है।

इन कलाकृतिंया में मुख्यतः विष्णु के दशावतार, ब्रह्मा, नर्तकी और मनमोहक द्ृश्यों की कलाकृतिंया शामिल है। बावली में जहाँ पानी की सतह है वहाँ पर हमें विष्णु का शेषनाग वाला अवतार देखने को मिलता है।