स्कूल की कहानी : ईर्ष्या का फल स्कूल की कहानी - ईर्ष्या का फल :- गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल फिर से खुल गये थे। राम जो कि अपनी कक्षा में हमेशा सर्व प्रथम आता था। हर साल की तरह इस बार भी सर्व प्रथम आकर अगली कक्षा में चला गया था। जैसा कि हर साल अक्सर होता है, और हर साल कक्षा में नये लड़के आते हैं कुछ छोड़ कर चले जाते हैं। By Lotpot 11 Sep 2023 in Stories Moral Stories New Update स्कूल की कहानी - ईर्ष्या का फल :- गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल फिर से खुल गये थे। राम जो कि अपनी कक्षा में हमेशा सर्व प्रथम आता था। हर साल की तरह इस बार भी सर्व प्रथम आकर अगली कक्षा में चला गया था। जैसा कि हर साल अक्सर होता है, और हर साल कक्षा में नये लड़के आते हैं कुछ छोड़ कर चले जाते हैं। इस बार दिनेश नाम का एक नया लड़का कक्षा में आया था। दिनेश स्वभाव से एक घमंडी और ईष्र्यालू था। हालांकि वह भी पढ़ने में काफी तेज था। समय धीरे-धीरे बीतने लगा। छमाही परीक्षायें हुई। इन परोक्षाओं को साधारण लड़के अधिक गंभीरता से नहीं लेते थे। लेकिन कुछ अन्य मेघावी लड़के इसमें पूरी तैयारी के साथ बैठते थे। राम कक्षा में प्रथम आया और दिनेश द्वितीय आया। दिनेश से यह र्बदाशत नहीं हुआ। वह सोचने लगा कि यदि मैं प्रथम आ जाऊं तो मेरा नाम होगा। कि एक नये विद्यार्थी ने आकर स्कूल के पुराने लड़कों को पछाड़ दिया जबकि राम भी नहीं चाहता था। कि वह किसी नये लड़के पर अधिक ध्यान न देकर हमेशा की तरह अपनी पढ़ाई में जुटकर वार्षिक परीक्षा की तैयारी करने लगा। दिनेश सोचता कि सिर्फ पढ़कर वह चाहे तो राम से बाजी नहीं मार पायेगा। इसलिये उसने राम से अपनी घनिष्टता बढ़ानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे उन दोनों में किताब-कापियों का लेन-देन शुरू हो गया। राम हमेशा, जैसा कि अब तक करता आया था। वह कुछ नोट्स और अन्य प्रकार की सामग्री किताबों में से उतारता था और परीक्षा के समय संक्षिप्त रूप से उनका अध्ययन करता था। इससे इसे काफी सहायता मिलती थी। लेकिन यह सब सामग्रियाँ अधूरी रहती थी और बिना किताबों को पूर्णरूप से पढ़े इनका उपयोग करना अलाभकर था। दिनेश को जब पता चला राम ऐसे नोट्स तैयार नहीं किये है तो उसने उस दिन राम से वह सामग्री माँग ली। परीक्षायें बहुत नजदीक थी इसलिये राम दिनेश को देते हुये बोला, ’मुझे जल्दी से लौटा देना। बिना किताब पढे़ इनका महत्व नहीं है।’ दिनेश ने सोचा कि राम उसे बहका रहा है। कई दिन बीत गये। दिनेश ने नोट्स तैयार नहीं किये और न ही राम को लौटाये। राम के बार- बार माँगने पर वह बहाना बना देता था और एक दिन कबूला कि वह नोट्स और अन्य सामग्री कहीं खो गये है। राम को इससे बड़ा दुःख हुआ लेकिन वह इस बात को भूलकर अच्छी तरह किताब-कापियों का अध्ययन करने लगा। वार्षिक परीक्षा अपने समय पर हुई और राम हमेशा की तरह अपनी कक्षा में सर्वप्रथम आया। जबकि दिनेश इस बार अनुतीर्ण हो गया। अपना-अपना रिजल्ट लेकर कुछ लड़के खुशी से कुछ निराश होकर कक्षा से बाहर निकलने लगे। स्कूल से बाहर जब राम निकला तो दिनेश भी उसके साथ हो लिया। राम ने कहा, ‘दिनेश! तुम्हरे फेल होन पर आश्चर्य हुआ।’ दिनेश से यह सब बर्दाशत नहीं हो सका। वहा रूआँसे स्वर में बोला-’मुझे अपने पापों का फल मिल गया है। मैं अपने स्वार्थ में अन्धा हो गया था। मैंने सोच था। कि मुख्या रूप से तुम उन्हीं नोट्स के आधार पर रहते हो। इसलिए मैंने जानबूझकर कहा था कि वे कहीं खो गये हैं। मैं उन्ही को पढ़ता था और किताब-कापियां पढ़नी छोड़ दी थी। राम को यह सब जानकर दुःख हुआ। लेकिन दिनेश ने अपने सच्चे दिल से अपना झूठ स्वीकार कर लिया था इसलिये वह उसे आवश्वासन देने लगा। अगले वर्ष दिनेश ने मेहनत कर के पढ़ाई की और क्लास में फर्स्ट आया । You May Also like Read the Next Article