जंगल की कहानी : गिलहरी की सीख

जंगल की कहानी (Jungle Story): गिलहरी की सीख :- चंदन वन में मैना रहती थी। वह बहुत ही मेहनती थी। छोटे से जमीन के टुकड़े पर वह गेहंू उगाती और फिर पूरे सारा साल आराम से खाती। उसे आराम से गेहूं खाते देख उसका पड़ोसी कौआ रात-दिन दुखी होता।

By Lotpot
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Story of the Jungle Lessons of the Squirrel

जंगल की कहानी (Jungle Story): गिलहरी की सीख :- चंदन वन में मैना रहती थी। वह बहुत ही मेहनती थी। छोटे से जमीन के टुकड़े पर वह गेहंू उगाती और फिर पूरे सारा साल आराम से खाती। उसे आराम से गेहूं खाते देख उसका पड़ोसी कौआ रात-दिन दुखी होता। एक दिन मौका देखकर कौआ उससे बोला, मैं भी तुम्हारे साथ मिल कर खेती करूंगा। फसल हम आधी-आधी बांट लेंगे।

Story of the Jungle  Lessons of the Squirrel

ठीक है एक से दो भले। मैना तैयार हो गई। कौआ बड़ा आलसी और मक्कार था। इसलिए मैना की सहेली गिलहरी ने उसे इस साझे की खेती करने से मना किया। पर मैना अब कौए को जबान दे चुकी थी। एक दिन खूब वर्षा हुई। मैना कौए के पास जाकर बोली, कौए भाई, जमीन गीली हो गई है।, चलो खुदाई करें।

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कौए की इस समय काम करने की तनिक भी इच्छा न थी। वह बोला, मैना बहन, कल से मेरे पांव में मोच आई हुई है। तुम अकेली खुदाई कर लो। पांव ठीक होने पर मैं भी आ जाऊँगा।
भोली-भोली मैना उसकी बातों में आ गई और उसने अकेले ही सारा खेत खोद डाला। अगले दिन वह कौए को बीज बोने के लिए कहने गई तो कौए ने फिर बहाना किया, अभी मेरा पांव पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है। तुम बीज बो लो। ठीक होने पर मैं आ जाऊँगा।

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बेचारी मैना ने अकेले ही सारे खेत में बीज बोए। कुछ दिनों में गेहंू के छोटे-छोटे पौधे भी उग आए। बीच-बीच में घास भी थी। मैना कौए के पास गई और बोली, चलो खेत में घास उखाड़ों। हाय मैना कल से मुझे तेज बुखार हैं। मुझसे तो आँख भी नहीं खोली जा रही। कौआ झूठ-मूठ कराहा। मैना ने अकेले ही सारे खेत की घास उखाड़ डाली। कुछ दिनों बाद पौधे और बड़े हो गए और उनमें गेहंू की बाालियाँ झूलने लगी। मैना सारा दिन खेत की रखवाली करती, जबकि कौआ अपने घोंसले में बैठा आराम करता रहता। फसल अब पक गई थी। मैना फिर कौए के पास आई और बोली, कौए भाई, चलो फसल काट लें, वर्ना किसी भी दिन बारिश आ सकती हैं।

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लेकिन मुझे तो बहुत जुकाम है। तुम काम करो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ। मैंना ने सारी फसल काटी और गेहूं की बालियों को पौधे से अलग किया। फिर, डंडे से कूट-कूट उसके दाने निकालें। गेहंू के दाने वह एक ओर और भूसा दूसरी ओर रखती जा रही थी। एक ओर भूसे का बड़ा सा ढे़र लग गया था और दूसरी ओर दानों का छोटा सा ढ़ेर अब वह कौए के घर गई और बोली, कौए भाई, गेहंू तैयार हैं। चलो बाँट लो। हाँ हाँ चलो, आज मेरी तबियत बिल्कुल ठीक है। और खुशी से उछलता हुआ कौआ मैना के साथ चल पड़ा। दूर से उसने दो ढे़र देखे, एक छोटा और एक बड़ा। वह चिल्लाया, बड़ा ढेर मेरा, क्योंकि मैं बड़ा हूँ। लेकिन.... ‘लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। बड़ा ढे़र मैं ही लंूगा। मैना की बात काट का कौआ बोला। ‘‘कौआ ठीक कहता है। पेड़ पर बैठी चतुर गिलहरी तपाक से बोली, यह बड़ा है इसलिए बड़ा ढे़र इसी का है।

गिल्लो मौसी, तुम हमारी गवाह रहना। बड़ा ढ़ेर मेरा है। और फुदकता हुआ कौआ बड़े ढे़र के पास पहुँच गया। वहाँ भूसे का ढे़र देख कर वह चैंक गया और बोला, यह ढे़र मैं नहीं लूंगा, यह तो सिर्फ भूसे का ढ़ेर है। अब तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा, मैं गवाह हूँ। गिलहरी बोली।

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लेकिन मेरे हिस्से में तो भूसा ही आया। कौआ रूआंसा होकर बोला। काम तो तुमने भूसे लायक भी नहीं किया था। गिलहरी बोली, मैं पेड़ पर बैठी सब देखती थी। मैना सारा दिन काम करती थी। और तुम आराम से अपने घर में सोये रहते थे। जिसने जैसा बोया, वैसा की काटा। मैना को अपनी मेहनत का फल मिल गया और तुम्हें अपनी मक्कारी का अब तुम अपनी जुबान से मुकर नहीं सकते। अफसोस सिर धुनता हुआ कौआ वहाँ से रफूचक्कर हो गया।

 

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