मकर सक्रांति को हर साल 14 जनवरी के दिन मनाया जाता है।यह त्यौहार बीते हुए खुशियों का जश्न मनाने के साथ फसल पैदावार की शुरूआत का प्रतीक है। इस त्यौहार को परिवर्तनकाल भी कहा जाता है क्यूंकि इस दिन से राते छोटी और दिन लम्बे होने लगते है। इस त्यौहार के बाद ठण्ड कम होने लगती है और दिन गर्म होने शुरू हो जाते है।
मकर सक्रांति का इतिहासः
यह त्यौहार सूर्य भगवान् को समर्पित है। इस शुभ त्यौहार को मनाने के लिए कई लोग गंगा के पवित्र पानी में स्नान करते है। मकर सक्रांति को कई नामों से बुलाया जाता है जैसे पश्चिम बंगाल में इसे पौष सांगक्रान्ति, हिमाचल प्रदेश में माघी, असम में बिहू और तमिलनाडु में पोंगल कहते है।
भारत के बहुत हिस्सों में इस समय रबी फसलों को बोया जाता है और उत्तर भारत में इस समय किसान अपने बीजों को देखने के लिए तैयार होते है जो फसल में तब्दील होकर उन्हें व्यापार देते है। इस मौसम की पहली फसल को पूजकर इसे रेवड़ी और पाॅपकाॅर्न के साथ खाया जाता है। संप्रदाय के लोग एक साथ मिलकर आग जलाकर गाने गाते और नाचते है।
हम इसे क्यों मनाते है?
मकर सक्रांति को मनाने का मुख्य मकसद पैदावार है।इस त्यौहार से पहले किसान बीज बोते है और अच्छी फसल के लिए उसे जोते है, जो आने वाले साल में उन्हें अच्छा व्यापार दे। दूसरा इस दिन से दिन लम्बे और राते छोटी होने लगती है। तीसरा यह जश्न का समय होता है और हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से बहुत शुद्ध होता है।
उदहारण के तौर पर यह उत्तर भारत का खासकर पंजाब का मुख्य त्यौहार है, जिसे लोहड़ी कहते है। इसे बहुत जोश के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी का त्यौहार पूरे जोश के साथ मनाया जाता है। पंजाब में लोहड़ी को पैदावर मौसम की वजह से मनाते है। इस त्यौहार पर लोग अपने सूरज देवता सूर्य को इज्जत देते है।
लोहड़ी बीज बीजने के अंत और खेती बाड़ी की शुरूआत के जश्न को मनाती है। लोहड़ी को पारम्परिक खाने, लोक नृत्य के साथ मनाया जाता है।