रोचक बातें: कमीज यानी शर्ट पहनते वक्त आपने उसके काॅलर में लगे दो बटन्स और उसके पीछे दिए गए एक लूप को तो नोटिस किया ही होगा पर ये क्यों दिए जाते हैं? ये आपको भी नहीं पता होगा। जानिए इसके पीछे जुड़े दिलचस्प कारण।
पहले के समय में लोगों के पास हैंगर्स, अलमारी या वार्डरोब जैसी कोई चीज नहीं होती थीं। शर्ट में लगे ये छोटे से लूप शर्ट को हुक पर टांगने के काम आते थे और कपड़ों पर बल भी नहीं पड़ते थे। शर्ट में लगे लूप की शुरूआत नाविकों ने की थी। वे उन्हें कपड़े बदलते समय जहाज में बने हुए कील पर टांग देते थे।
धीरे-धीरे यह फैशन जहाजों से आम लोगों के बीच छाने लग गया। इसकी शुरूआत अमेरिका में बनी ‘आॅक्सफोर्ड बटन डाऊन शर्ट’ से 1960 में हुई, अन्य ब्रांड्स भी इस रूझान का पालन करने लग गए। बाद में यह फैशन अमेरिका में लोकप्रिय लीग (अमेरिका की 8 यूनिवर्सिटीज की स्पोट्र्स टीम में मिलकर बनी लीग) में भी काफी हिट हो गया।
वार्डरोब और हैंगर्स के आने के बाद शर्ट में लगे ये लूप महज एक डिजाइन बनकर ही रह गए हैं।
काॅलर में लगे दो बटन
इन दो छोटे बटनों को ‘बटन डाऊन काॅलर’ कहा जाता है। इस फैशन की शुरूआत पोलो (घोडे़ पर बैठकर खेले जाने वाले खेल) खिलाड़ियों द्वारा की गई थी। वे चाहते थे कि उनकी शर्ट का काॅलर घुड़सवारी करते वक्त चेहरे से दूर रहे इसलिए उन्होंने ‘बटन डाऊन काॅलर’ वाली शर्ट्स पहनना शुरू कर दिया। काॅलर ने नीचे लगे बटन काॅलर के फ्लैप को खिलाड़ियों के चेहरे से दूर रखने में मदद करती थी। आज यह ट्रैंड आम लोगों में भी खासा लोकप्रिय है। अगर आप टाई पहन रहे हैं तो काॅलर में लगी बटन्स आपकी टाई को जगह पर रखने में भी मदद करती हैं।
अन्य रोचक तथ्य
दुनिया में सबसे पुराना संरक्षित वस्त्र 300 ईसा पूर्व की एक लिनन की कमीज है जो मिश्र के मकबरे में पाई गई थी।
च वाॅशिंग मशीन का आविष्कार होने तक उनमें अलग करने योग्य काॅलर तथा कफ होते थे ताकि धुलाई की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अलग करके धोया जा सके। बाकी की मुख्य कमीज को धुलाई से पहले कम से कम एक हफ्ते या उससे अधिक वक्त पक पहना जाता था।
अठारहवीं शताब्दी में कुछ देशों में यदि किसी व्यक्ति की कमीज दिखाई दे रही होती जिसे उसने कोट या जैकेट से ढका नहीं होता तो उसे अभद्र समझा जाता और जेल की सजा से दंडित किया जाता था।
ऐतिहासिक रूप से ‘व्हाइट काॅलर’ तथा ‘ब्ल्यू काॅलर’ कर्मियों को उनकी कमीज के कपड़े के रंग से अलग किया जाता था जो उन्हें पहनना जरूरी होता था। उस वक्त कमीज का रंग पहनने वाले की सामाजिक तथा कार्य स्थिति का संकेत होता था। आमतौर पर ‘व्हाइट काॅलर’ वाले कार्यालयों में काम करने वाले पेशेवर होते थे जबकि ‘ब्ल्यू काॅलर’ वाले ऐसे काम करते थे जिसमें शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती थी।
आज के आधुनिक दौर में कमीज के रंग सामाजिक विभाजन या किसी की स्थिति के संकेत नहीं हैं परंतु फिर भी यह तथ्य भी कम दिलचस्प नहीं हैं कि आज भी सफेद और नीला कमीजों में पसंद किए जाने वाले सबसे लोकप्रिय रंग हैं।