सचिन तेंदुलकर से हमें क्या सीखने को मिला?

कहा जाता है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके पास प्रतिभा और अवसर दोनों होते है, लेकिन कई बार ऐसा भी देखा गया है कि प्रतिभा और अवसर के बावजूद कई लोग असफ़ल होकर गुमनामी का जीवन जीने लगते है लेकिन कुछ लोग सफ़लता का परचम लहराते है।

By Lotpot
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What can we learn from Sachin Tendulkar?

कहा जाता है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके पास प्रतिभा और अवसर दोनों होते है, लेकिन कई बार ऐसा भी देखा गया है कि प्रतिभा और अवसर के बावजूद कई लोग असफ़ल होकर गुमनामी का जीवन जीने लगते है लेकिन कुछ लोग सफ़लता का परचम लहराते है। कुछ ऐसा ही हुआ मुंबई के मशहूर मैदान शिवाजी पार्क में खेल रहे तीन दोस्तों के साथ, जिनमें से एक का नाम है अनिल गुरव, दूसरे का नाम विनोद कांबली और तीसरे का नाम सचिन तेंदुलकर।

सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था इसलिए एक दिन उनके बड़े भाई अजीत उन्हें शिवाजी पार्क ले गए जहां महान क्रिकेट कोच रमाकांत आचरेकर बच्चों को क्रिकेट सिखाते थे। यहीं सचिन की मुलाकात क्रिकेटर अनिल गुरव और विनोद कांबली से हुई।

What can we learn from Sachin Tendulkar?

अनिल गुरव बहुत अच्छा क्रिकेट खेलते थे और कोच रमाकांत आचरेकर को अनिल से बहुत उम्मीदें थीं। वे नौसिखिए सचिन और विनोद से कहते थे कि वे अनिल गुरव के स्ट्रोक प्ले को ध्यान से देखे और सीखे। अनिल गुरव उन दिनों इतना बढ़िया खेलते थे कि उनकी तुलना वीवीयन रिचर्ड से होती थी और उन्हें मुंबई का विव रिचर्ड कहा जाता था।

वे ससानिअन क्रिकेट क्लब में सचिन के कप्तान भी थे। सचिन उनसे इतने प्रभावित थे कि वे उनका बैट माँगना चाहते थे। बताया जाता है कि सचिन ने अपनी यह इच्छा रमेश परब ( जो बाद में वानखेड़े स्टेडियम के इंटरनेशनल स्कोरर बने) से कही और रमेश ने अनिल को सचिन की इच्छा के बारे में बताया। अनिल ने तुरंत इस शर्त पर अपना बैट सचिन को दे दिया कि वे इस बैट से बहुत बड़ा स्कोर बनाए। और वाकई सचिन ने उस बैट से शतक बनाया। अनिल गुरव को सचिन 'सर' कहते थे। अनिल गुरव की तरह विनोद कांबली भी एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी थे।

उनकी प्रतिभा सचिन और अनिल गुरव से कम नहीं थी । उन्होंने अपने प्रथम चार टेस्ट्स में दो डबल सेंचुरी मारा था और साथ ही कई अभूतपूर्व नॉक्स भी खेले थे, लेकिन इतने अच्छे खिलाड़ी का भविष्य उज्जवल ना हो पाया। विनोद के करियर का सूरज चमकने से पहले ही बुझ गया। जबकि सचिन इन तीन खिलाडियों के बीच में से उठकर विश्व प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर के रूप में आसमान छूने लगे। तो क्या कमी रह गई अनिल गुरव और विनोद कांबली के प्रयासों में? दोनों प्रतिभाशाली थे और उन्हें अवसर भी मिला था।

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दरअसल अनिल गुरव और विनोद कांबली का अपने करियर पर से ध्यान और फोकस छूट गया था । सफलता हासिल करने के लिए जो डेडिकेशन, मेहनत और डिसिप्लिन चाहिए, उसपर उन्होंने काम नहीं किया। अनिल गुरव को अपने परिवार से भी कोई सपोर्ट नहीं मिला उल्टा कई तरह के पारिवारिक समस्याओं और गलत माहौल में वे ऐसे फँसे कि उनकी दुनिया बदल गई, क्रिकेट से उनका ध्यान हट गया और देखते देखते उनका करियर बर्बाद हो गया और सारे सपने बिखर गए। आज वे नालासोपारा में एक 200 स्क्वायर फुट की चाली में गुमनाम जीवन जी रहे हैं। विनोद कांबली का भी अपने करियर पर से फोकस हट गया था और वे अन्य विषयों को लेकर व्यस्त हो गए थे ।

उधर सचिन का अपने करियर की तरफ हमेशा ध्यान रहा, उन्होंने अपने फॉर्म को मेंटेन किया और मेहनत तथा डिसिप्लिन से क्रिकेट खेलते रहे, उन्हें अपने परिवार का भी सपोर्ट मिलता रहा। सचिन से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में हमें जो कुछ भी करना है, उसे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए।