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यह पंजाबी त्यौहार आग के आसपास रेवड़ी और मूंगफली खाने से कई आगे है। यह त्यौहार दिवाली और होली की तरह हर साल अपनी तारिख नहीं बदलता। पंजाबी त्यौहार लोहड़ी को हर साल 13 जनवरी के दिन मनाया जाता है।
यह त्यौहार ठण्ड के कम होने का प्रतीक है लेकिन पारम्परिक बातों के अनुसार लोहड़ी रबी फसल की पैदावार से जुड़ा हुआ है। गन्ने की फसल की पैदावर के लिए जनवरी पारम्परिक समय है इसलिए लोहड़ी को पैदावर का त्यौहार भी कहते है और पंजाबी किसान लोहड़ी के अगले दिन को आर्थिक नए साल की तरह देखते है।
आग के इर्दगिर्द घूमने वाले इस त्यौहार को मनाने वाले लोग इसे गुड़ रेवड़ी, मूंगफली और पाॅपकाॅर्न के साथ खाकर भी मनाते है। पंजाब के गाँव में गज्जक, सरसों का साग और मक्की दी रोटी को लोहड़ी के दिन बनाया जाता है। इस दिन तिल चावल को खाया जाता है।
गन्ने की बोने का सही समय जनवरी से मार्च है और इसकी पैदावर दिसंबर और मार्च में होती है। लोहड़ी का दूसरा पारम्परिक खाना मूली है जिसे अक्टूबर से जनवरी के बीच पैदा किया जाता है।
इस त्यौहार पर पंजाबी महिलाएँ एक लोकगीत ‘‘सूंदर मुंदरिये हो‘‘ गाती है। यह गाना दरअसल दूल्हाभट्टी कहे जाने वाले आदमी की कहानी है, जो अकबर के समय पंजाब में रहता था। उनदिनों रोबिन हुड की तरह रहने वाला दूल्हाभट्टी अमीरों से चुराता था और बेचे जाने वाली गरीब पंजाबी लड़कियों को बचता था और फिर इनकी शादी अपने गाँव के लड़को से करवाता था और दहेज में उन्हें चुराए पैसे देता था। इन्ही लड़कियों में से दो लड़कियों के नाम सुंदरी और मुंदरी था।