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वर्ली कला महाराष्ट्र की खूबसूरत लोक कला है, जिसे पारम्परिक तौर पर कबायली महिलाओं ने शुरू किया था। इस कला को सबसे पहले सत्तर के दशक में खोजा गया था और इसका नाम वर्ली कला रखा गया था। कबायली लोग अपने विचारों को अलग अलग ढंग की चित्रकला से दर्शाते थे और यह चित्र वह अपने घरों की दीवारों पर बनाते थे। आम लोगों तक बात पहुंचाने का यह जरिया था, जिन्हे लिखे हुए शब्दों का कोई ज्ञान नहीं होता था।
वर्ली चित्रकला को ज्यादातर महिलायें ही करती थी। इस चित्रकला की सबसे खास बात यह है की यह कोई धार्मिक किरदार या किसी देवी देवता की मूर्ति को नहीं दर्शाती थी, यह केवल सामाजिक जिन्दगी को दर्शाती थी। मनुष्य की जानवरों के साथ चित्र और उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी को इन चित्रकला में ढीले और लयबद्ध रूप में बनाया जाता था। इन चित्रकला में मनुष्य काम करते हुए जैसे शिकार, नृत्य, खेती करते हुए दिखाए जाते थे। शादी और दूसरी महत्वपूर्ण चीजों से बनी चित्रकला को पवित्र माना जाता था। वर्ली चित्रकला को मिट्टी की दीवारों पर सफेद पेंट से बनाया जाता था। यह चित्रकला साधारण मिट्टी के ऊपर एक ही रंग सफेद से की जाती थी और कभी कभी इसमें लाल या पीले रंग की बिंदुये बनायीं जाती थी। सफेद रंग को चावल पीसकर बनाया जाता था।
वर्ली चित्रकला में माॅडर्न ट्रेंड
वर्ली कलाकार सीधी लाइन का इस्तेमाल बहुत कम करते थे। लाइन के बजाये वह बिंदु या फिर छोटी रेखा डाॅटर थे लेकिन अब माॅडर्न समय में कलाकारों ने सीधी लाइन बनाना शुरू कर दिया है। कई लोगों ने पांरम्परिक थीम के अलावा माॅडर्न चीजे जैसे साईकिल, कार, बिल्डिंग, कंप्यूटर, रेल को भी बनाना शुरू कर दिया है।
अब कलाकार इस कला को कागज और कपड़ों पर भी लेकर आ रहे है। कागज पर बनी वर्ली पेंटिंग काफी चर्चित हो रही है और भारत और विदेशों में यह खूब बिक रही है। कबायली लोगों के लिए अभी भी यह परंपरा पुराने समय से जुड़ी है लेकिन नए आईडिया को वह अपनाने लगे है।