बीस दिसंबर से सत्ताइस दिसंबर तक शहीदी दिवस क्यों मनाया जाता हैं ? सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंदसिंह जी ने धर्म और आम जनता की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार की शहादत दी थी, जिसे आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत मानी जाती है और इस कारण सिख धर्म के श्रद्धावान, नानक शाही कैलंडर के अनुसार बीस दिसंबर से सत्ताइस दिसंबर तक शहीदी दिवस मनाते हैं। By Lotpot 21 Dec 2022 in Stories Interesting Facts New Update सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंदसिंह जी ने धर्म और आम जनता की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार की शहादत दी थी, जिसे आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत मानी जाती है और इस कारण सिख धर्म के श्रद्धावान, नानक शाही कैलंडर के अनुसार बीस दिसंबर से सत्ताइस दिसंबर तक शहीदी दिवस मनाते हैं। इन दिनों गुरुद्वारों और श्रद्धावान सिखों के घर में कीर्तन, लंगर और भजन रखे जाते है तथा गुरु गोबिंद सिंह जी, उनकी माता गुजरी कौर जी तथा साहबजादों के शहादत को याद करते हुए लोग पूरे सप्ताह ज़मीन पर सोते हैं। आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है शहीदी दिवस। वो दिन था बीस दिसंबर का, जब आनंदपुर साहिब के किले पर अचानक मुग़लों ने हमला कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी, मुग़लों को खदेड़ने के लिए तैयार हो गए लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहाँ से फिलहाल निकलने की राय दी। तब गुरु गोबिंद सिंह जी अपने परिवार तथा अन्य सिखों के साथ वहाँ से निकल पड़े। इक्कीस दिसंबर को जब वे सभी सरसा नदी पार कर रहे थे तो एक भयानक लहर के कारण पूरा परिवार एक दूसरे से बिछड़ गए। गुरु गोबिंद सिंह जी तथा उनके दो बड़े साहिबजादे, बाबा अजित सिंह और बाबा जुझार सिंह, चमकौर पहुँच गए। उधर दादी माँ, गुजरी जी दोनों छोटे साहबजादे, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह तथा अपने सेवक के रूप में काम कर चुके गंगू के साथ दूर चली गई । ऐसे में गंगू इन सबको अपने घर ले गया लेकिन उसने गुरु गोबिंद सिंह के दुश्मन, नवाज़ वजीर खान को यह खबर पंहुचा दी और वज़ीर खान ने माता गुजरी जी और दोनों छोटे साहबजादों को खुले आसमान के नीचे, बर्फ की तरह ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। बाईस दिसंबर को सिख और मुग़ल सेना की आपस में भिड़ंत हुई। मुग़ल सेना की तादात बहुत ज्यादा थी जबकि सिख सेना बहुत कम थे, फिर भी गुरु गोबिंद सिंह जी के निर्देश और हौसलों के साथ सिख सेना ने मुग़ल सेना का कसकर मुकाबला किया। यह युद्ध अगले दिन यानी तेईस दिसंबर को भी जारी रहा। अपने सिख सेना को शहीद होते देख, दोनों बड़े साहेबजादे, बाबा अजित सिंह और बाबा जुझार सिंह ने अपने पिता, गुरु साहिब से अनुमति लेकर मुग़ल सेना पर हमला बोल दिया और उन्हें मारते हुए खुद भी शहीद हो गए। चौबीस दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी भी मुग़ल सेना से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए लेकिन सिखों ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया और उन्हें वो जगह छोड़ने की राय दी। पच्चीस दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी, उस गांव में पहुंचे जहां उनकी एक अनुयायी, बीबी हरशरण जी रहती थी । जब बीबी हरशरण जी को सब जानकारी मिली तो वो शहीदों का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार करने के लिए चुपचाप चमकौर चली गई लेकिन मुग़लों ने उन्हें भी आग में झोंक दिया और वो भी शहीद हो गई। उधर छब्बीस दिसंबर को वज़ीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को डरा धमका कर जबरन धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन साहबजादे नहीं माने। सत्ताइस दिसंबर को फिर से एक बार वज़ीर खान ने बच्चों से धर्म बदलने के लिए जोर दिया, लेकिन तब भी वीर साहबजादे नहीं माने तो गुस्से में वज़ीर खान ने दोनों छोटे साहबजादों (बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह) को जिंदा दीवार में चिनवा दिया। इस ख़बर को सुनते ही दादी माता गुजरी ने भी प्राण त्याग दिए। धर्म और मानवता की रक्षा के लिए इससे बड़ी शहादत नहीं देखी गई है। You May Also like Read the Next Article