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महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और देशभक्त वीर विनायक दामोदर सावरकर (Damodar Savarkar) उस क्रांतिकारी का नाम है जिनकी बुलन्द आवाज़ के आगे अंग्रेज सरकार तो क्या, भारत के भ्रष्ट राजनीतिक नेता भी थर थर कांपते थे। इस महान क्रांतिकारी का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र, नासिक के पास भागुर गांव में हुआ। उनके पिता थे दामोदर पंत सावरकर और माता राधा बाई ।
जब वे सिर्फ नौ वर्ष के थे, उनकी माता जी की मृत्यु हैजा से हो गई। सात वर्ष बाद ही प्लेग महामारी से पिता की भी मृत्यु हो गई। बड़े भाई गणेश ने परिवार का बोझ तो उठा लिया लेकिन पूरे परिवार के लिए जीवन कठिनाइयों से भरी रही जिसका गहरा असर बालक विनायक पर पड़ा। वे छोटी उम्र में ही बेहद समझदार हो गए और उन्होंने पढ़ाई और कविताओं में मन लगाया।
पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में ही विनायक अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे और अपने मित्रों के साथ मिलकर क्रांति का बिगुल बजा दिया। ऐसे में वीर सावरकर वो प्रथम भारतीय थे जिन्हें दस रुपये के दंड के साथ कॉलेज से निष्कासित किया गया था। वीर सावरकर वो एकमात्र देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड (सातवें) के राज्याभिषेक उत्सव को वहिष्कार करने के लिए अपनी आवाज़ उठाई। उन्होंने जगह जगह पोस्टर लगा कर भारतवासियों से, इस ग़ुलामी के उत्सव में भाग ना लेने की अपील की। जब नासिक में महारानी विक्टोरिया के लिए शोक प्रस्ताव रखा गया तो वीर सावरकर वो प्रथम क्रान्तिकारी थे जिन्होंने उसका जमकर विरोध किया।
वीर सावरकर वो प्रथम क्रांतिकारी भी थे जिन्होंने 7 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन आंदोलन के विरोध में विदेशी निर्मित कपड़ों की सबसे पहली खेप को जलाया था। अंग्रेजों की आँखों में आँखे डालकर हुंकार भरने की हिम्मत रखने के कारण उन्हें वीर पुकारा जाने लगा। इंग्लैंड में लॉ की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने अपने भारतीय दोस्तों के साथ मिलकर, अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए ' फ्री इंडिया सोसाइटी' का गठन किया था। 13 मई 1910 को उन्हें लन्दन में गिरफ्तार करके भारत भेजा गया, उन्होंने भागने की कोशिश की लेकिन गिरफ्तार कर लिए गए और अंडमान जेल में सख्त कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। 7 अप्रैल 1911 को उन्हें काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेज दिया गया, जहां उन्हें घन्टों नारियल और सरसों का तेल निकालना और जंगल काटना पड़ता था।
यहाँ वे 21 मई 1921 तक बंदी रहे। वीर सावरकर वो एकमात्र बैरिस्टर थे जिन्होंने ग्रैजुएशन पास करने के बाद ब्रिटिश राजा के प्रति वफादार होने की शपथ लेने से इंकार कर दिया और इस कारण उन्हें बैरिस्टर की उपाधि नहीं दी गई। सावरकर वो प्रथम लेखक थे जिनकी लिखी किताब '1857, स्वतंत्रता का पहला युद्ध' प्रकाशित होने से पहले ही बैन हो गई थी। 26 फ़रवरी 1966 जो 83 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
वीर विनायक दामोदर दास सावरकर, यानी वी डी सावरकर एक धुरंधर स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही एक कुशल राजनीतिक, वकील, समाज सुधारक, कवि, चिंतक और हिन्दुत्व के दर्शन के सूत्रधार थे।
सुलेना मजुमदार अरोरा