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शहीद भगत सिंह की असली लड़ाई तब शुरू हुई जब साइमन कमीशन के खिलाफ आवाज उठाते हुए विरोध के दौरान हिंसा में लगी चोटों के कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई थी।
आर एस एस का जरूरी सदस्य होने के नाते भगत सिंह ने कसम खाई थी की वह लाजपत राय की मौत का बदला लेंगे और उन्होंने जेम्स ऐ स्काॅट पर अटैक की योजना बनायीं। स्काॅट, ने लाला लाजपत राय, राजगुरु, सुखदेव और चंद्रशेखर आजाद पर लाठी चार्ज का आदेश दिया था
हालाँकि पहचान की गलती लगने के कारण उन्होंने स्काॅट की जगह जाॅन पी सेंडर्स को मार दिया।
इसके बाद पुलिस ने इस ग्रुप को पकड़ने के लिए जोर शोर से कोशिश की। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर सेंट्रल असेंबली चैम्बर में पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट के खिलाफ दो कच्चे बम गिराये।
बमों को कम तीव्रता वाले बारूद से बनाया गया था ताकि चैम्बर में किसी की मौत न हो लेकिन इन बमों ने कई लोगों को घायल जरूर किया था।
तब भगत सिंह ने कागज पर ये लिखा ...
भगत सिंह आसानी से बच सकते थे लेकिन उन्होने और दत्त ने वहां रहकर इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और कुछ कागज फेंके जिस पर लिखा था कि आप एक इंसान को तो मार सकते हो लेकिन उसके ख्याल को नहीं मार सकते । इन दोनों को पकड़कर दिल्ली की जेल में डाला गया।
सुखदेव को तब गिरफ्तार किया गया जब पुलिस ने आर एस एस द्वारा लाहौर और सहारनपुर में बनायीं गयी बम की फैक्ट्री को ढूंढा।
हालाँकि भगत सिंह को असेंबली में बम फेकने के लिए दोषी माना गया था लेकिन पुलिस ने सुखदेव और राजगुरु पर सेंडर्स को मारने के इल्जाम में गिरफ्तार किया जिसे लाहौर कांस्पेरसी केस भी कहा जाता है और जिसके लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी थी।
इन्हे 24 मार्च को फांसी लगनी थी लेकिन तीनो कैदियों को एक दिन एक घंटे पहले यानी 23 मार्च शाम 7.23 बजे फांसी दे दी गयी।
इनके शरीर को सतलुज नदी के किनारे दफन किया गया।
शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की पुण्यतिथि के दिन हम इन तीनों शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते है जिन्होंने हमारे देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी।
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