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आज ATM हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। लेकिन एटीएम जैसी मशीन की कल्पना किसने की थी ? यह 1960 की बात है। प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाले जॉन शेफर्ड-बैरोन के सारे पैसे खत्म हो गए थे, वो बैंक गया लेकिन थोड़ी देरी हो जाने से बैंक बंद हो गया और वो सप्ताह का अंतिम दिन था। अपनी लेट लतीफ़ी पर शेफर्ड (Shepherd Baron ) बहुत पछताया। तब उसके मन में विचार आया कि क्या ऐसा कोई मशीन नहीं बन सकता जिसमें से कोई भी अपना धन किसी भी समय निकाल सके जैसे वेंडिंग मशीन से चाकलेट या कॉफी निकाला जा सकता है?
शेफर्ड-बैरन ने ऐसा करने के लिए एक सिस्टम तैयार किया और अपने बार्कलेज बैंक के मुख्य महाप्रबंधक से मिलकर बैंक के किनारे एक स्लॉट के माध्यम से ग्राहकों द्वारा चौबीस घन्टे पैसे निकाल पाने की सुविधा का आइडिया बताया।
बार्कलेज ने शेफर्ड-बैरोन को छह कैश डिस्पेंसर बनाने की अनुमति दी और इस तरह 27 जून, 1967 को एनफील्ड के उत्तरी लंदन के एक शाखा में पहला कैश डिस्पेंसर की स्थापना हुई।
शेफर्ड-बैरोन का जन्म 1925 में भारत के शिलांग में हुआ था। बड़े होकर उन्होंने भारतीय सेना में सेवा की और भारतीय सेना के नंबर को याद करके पिन का भी आविष्कार किया, पहले यह छः नंबरों का लंबा पिन नंबर था लेकिन पत्नी ने कहा इतना लम्बा पिन नंबर याद नहीं रखा जा सकता तब उन्होंने इसे घटाकर चार कर दिया लेकिन मशीन में डेबिट या क्रेडिट कार्ड द्वारा पैसे निकालने के लिए विभाजन सिस्टम की जरूरत थी, यह काम भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) की मदद से हो पाया, हालांकि श्रीनिवास गणित में अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया था परंतु उनकी गणितज्ञ प्रतिभा को ट्रिनिटी कॉलेज के प्रोफेसर हार्डी ने पहचान लिया और अभिभूत होकर ट्रिनिटी कॉलेज में बिना किसी शर्त के प्रवेश दे दिया जहां श्रीनिवास ने विभाजन सिस्टम पर काम किया। यानी डेबिट या क्रेडिट कार्ड मशीन में डालना और जरूरत मुताबिक राशि निकालना। यह सब रामानुजन के विभाजन सिस्टम के कारण हो पाया।
उदाहरण के लिए, 4 को पांच अलग-अलग तरीकों से विभाजित किया जा सकता है जैसे 4 को 3+1, या 2+2 या 2+1+1 या 1+1+1+1,
इस तरह एटीएम मशीन रामानुजन के विभाजन सिद्धांत के अनुसार सही पैसे निकालने की व्यवस्था करती है।