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बुझते चिराग (Hindi Kids Story) : सावन का महीना था, पूर्णिमा से दो दिन पहले ही रीटा राखियाँ लेकर अपने गाँव चली गई। शंभू भईया गाँव में ही रहते थे। डाॅक्टरी पढ़कर लौटे थे तो शहर में नौकरी लगी थी पर वह गए नहीं। उनका कहना था कि पढ़ लिखकर सभी युवक यदि गाँव छोड़कर शहर में बस जायेंगे तो गाँव का उत्थान कैसे होगा।
गाँव में ही शंभू भईया की डाॅक्टरी खूब चलती थी। दिनभर डिस्पेंसरी में रोगियों की भीड़ लगी रहती थी। ग्रामीण उन्हें देवता मानते थे। खूब सवेरे भईया नहा-धोकर डिस्पेंसरी में आ जाते थे। थकी होने के कारण रीटा गहरी नींद में सोयी थी। अचानक किसी के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूट गई। रीटा चैंक कर उठी और उसने मंगल काका से पूछना चाहा कि इतनी सुबह सवेरे कौन रोता है। लेकिन मंगल काका कहीं दिखे नहीं तो रीटा खुद उठकर डिस्पेंसरी तक गई। उसने देखा कि मास्टर गणेश दत्त रो रहे थे, वे रीटा के अध्यापक थे। रीटा और उसका भाई दोनों गणेश जी के छात्र थे।
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उन दिनों रीटा के परिवार की परिस्थिति आज जैसी अच्छी नहीं थी। उसके पिताजी लगातार बीमार चल रहे थे। एक दिन पिता जी की बीमारी के कारण रीटा का भाई अपना पाठ तैयार न कर पाया था। गणेश दत्त का बेटा सोम दत्त भी उनके साथ उसी वर्ग में पढ़ता था। वह पढ़ने लिखने में तो एकदम कमज़ोर था किंतु चुगली करने में खूब तेज़। उसने गणेश दत्त जी से चुगली कर दी कि- ‘शंभू तो दिनभर बेर तोड़ रहा था।
बस उन्होंने तड़ातड़ रीटा के भाई के ऊपर कई थप्पड़ चला दिए। शंभू का मुख एकदम लाल हो गया था। यह देखकर रीटा रो पड़ी। शंभू ने मास्टर जी को सच्ची बात बताई पर उन्होंने उनकी बात का विश्वास नहीं किया और गालियाँ दे डालीं।
घर आकर शंभू खूब रोया। पिताजी ने उसे बहुत समझाया--‘बेटे! अपना मन छोटा न करो। दुगने परिश्रम से पढ़ो तो एक दिन बड़े आदमी बन जाओगे।’ कुछ ही वर्षों में उनके घर चमत्कारी परिवर्तन हुआ। शंभू के डाॅक्टर बनते ही घर की परिस्थिति सुधर गई। रीटा गणेश दत्त को लगभग भूल गई थी, पर आज इतने समय बाद उन्हें देखकर उसे सब याद आ गया। रीटा को लगता था कि शायद शंभू अभी भी उस अपमान को न भूल पाया था।
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गणेश दत्त लगातार रोते जा रहे थे। वह गिड़गिराते हुए शंभू के पास आए और बोले- ‘मेरा इकलौता बेटा सोम बहुत बीमार है। तुम जल्दी चलो बेटा, उसकी माँ रो रोकर आधी हो रही है।’ शंभू ने बोला- ‘अभी मुझे फुर्सत नहीं पंडित जी किसी और को बुला लाईये।’ गणेश जी ने कहाँ, ‘इतनी जल्दी किसे बुलाऊँ, शहर तो यहाँ से आठ मील दूर है तुम्हीं चलो बेटा, चलो मेरे सोम को बचा दो।’ शंभू ने जवाब दिया, ‘मैं भगवान नहीं हूँ पंडित जी।’
गणेश दत्त बुरी तरह घबरा गए। रीटा भीतर से निकल कर डिस्पेंसरी से गणेश दत्त जी के सामने आई। रीटा को देखकर वो गिड़गिड़ाये तो शंभू रीटा को देखकर सोचने लगे। वे निर्णय नहीं ले पा रहा था कि वे वहाँ पर जायें या नहीं।
शंभू का डाॅक्टर मन कह रहा था जाओ अपना फर्ज़ पूरा करो, पर साथ ही उसका मन उस अपमान को भूल नहीं पा रहा था। शंभू को नम्र देख गणेश दत्त फिर गिड़गिड़ाये- ‘चलो बेटा, कल पूर्णिमा है, बिटिया भी राखी बाँधने आने वाली है।’ अब शंभू और न रूक पाया और वो झटपट बैग संभालकर गणेश दत्त जी के साथ चल पड़ा।
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सारा घर गम में डूबा था। गणेश दत्त जी की पत्नी बिलख रही थी। पूरा परिवार भगवान से दुआएँ मांग रहा था। सोम दत्त को निमोनिया हो गया था। शंभू ने दवा दी और कुछ देर उपचार में लगा रहा। दवा काम आ गई और सोम दत्त की तबियत सुधर गई। गणेश दत्त शंभू से मिलने दूसरे दिन आया तो साथ में उनकी लड़की गौरी भी आई। वे शंभू को देखते ही बोले- ‘बेटा! तुम तो देवता हो...मेरे घर के बुझते चिराग को बचा लिया मैं अपने किये के लिए तुमसे क्षमा मांगता हूँ।’ शंभू बोला, ‘नहीं गुरूजी....क्षमा तो मुझे मांगनी चाहिए जो बड़ों की बातों की पकड़ करने लगा। आपकी मार-फटकार तो मेरे लिए आर्शीवाद था।’ गणेश दत्त ये बात सुनकर चकित रह गए। उन्होंने मुस्करा कर गौरी से कहा बाँधो बेटी अपने शंभू भईया को राखी।
गौरी आगे बढ़ी और एक राखी उसने रीटा के भाई शंभू की कलाई पर बाँध दी। शंभू ने रीटा से चुहल किया- ‘अब तो मैं जो भी चीज़ लाऊँ उनमें से गौरी आधा हिस्सा लेगी।’
आपने तो बहुत बड़ी चीज़ मुझे दे दी है भईया, गौरी बोली।
क्या?
मेरे घर में इकलौते चिराग को बुझाने से बचा लिया है। सभी इस बात पर मुस्करा पड़े।