दिल छूती कहानी : इक फूल की तरह दिल छूती कहानी : इक फूल की तरह: सौमित्र बाबू यूँ तो सोमेन्द्र के पिता की आयु के व्यक्ति थे, फिर भी वे सोेमेन्द्र से सबसे अच्छे मित्र थे। सोमेन्द्र के ही क्यों, सौमित्र बाबू तो जैसे सभी के सच्चे मित्र थे। उनका नाम महज ‘सौमित्र’ नहीं बल्कि By Lotpot 25 Mar 2021 in Stories Moral Stories New Update दिल छूती कहानी : इक फूल की तरह: सौमित्र बाबू यूँ तो सोमेन्द्र के पिता की आयु के व्यक्ति थे, फिर भी वे सोेमेन्द्र से सबसे अच्छे मित्र थे। सोमेन्द्र के ही क्यों, सौमित्र बाबू तो जैसे सभी के सच्चे मित्र थे। उनका नाम महज ‘सौमित्र’ नहीं बल्कि ‘सब-मित्र’ यानि ‘सबका मित्र’ होना चाहिए, ऐसा सोमेन्द्र का मानना था। सबसे मीठा बोलना सबसे प्रेम रखना और सब की सहायता करना ही शायद सौमित्र बाबू के जीवन का मूल उद्देश्य था। एक अकेले प्राणी थे? हर वक्त तो अपने चाहने वालों से घिरे रहते थे वो। सौमित्र बाबू को हर सुबह कंपनी-बाग में टहलते, लोगों से हंसते-बतियाते या फिर, योगमुद्रा में शांतिचित्त बैठे देखा जा सकता था। सोमेन्द्र भी पहली बार उनसे यहीं मिला था। सोमेन्द्र एक गरीब विधवा माँ की एक ही संतान था और उस ममतायमी माँ का बस एक ही सपना था, कि उसका लाडला लिख-पढ़ ले, जीवन में कुछ अच्छा कर ले। दुखिया माँ के लिए अपना ये सपना सच करना तो जैसे रेगिस्तान में गुलिस्तान सजाने के समान था। लेकिन, माँ की ममता थी कि अपनी जीवन-बगिया के इस बिरवे (सोमेन्द्र) को एक रोज पुष्पित-पल्लवित होता देखने की अटूट आस संजोए बैठी थी। किन्तु क्या सचमुच कभी दुखियारी माँ की उम्मीदों का यह फूल खिल भी पाएगा? चैदह वर्षीय किशोर सोमेन्द्र प्रायः स्वयं से प्रश्न पूछ बैठता। इस सुबह भी, कंपनी-बाग की गुलाब की क्यारियों के करीब खड़ा सोमेन्द्र यही सब-कुछ सोच रहा था। फूलों से उसे भी बड़ा प्यार था। पर जो फूल कल तक खिलकर खिलखिला रहे थे, वे ही आज इस कदर उजड़े-उजड़े और बिखरे हुए से क्यों पड़े थे? आखिर, उन फूलों का अस्त्तिव इतना क्षण-भंगुर क्यों था? क्या उसकी माँ की आशाओं का अन्त भी ऐसा ही होना था? सोमेन्द्र का फूल-सा चेहरा मानो मायूसी के मारे मुरझा उठा था। लेकिन ठीक तभी किसी का प्रेम वात्सल्य हाथ आहिस्ता से उसके कन्धे पर आ टिका। सामने सौमित्र बाबू खड़े मुस्करा रहे थे। इतने मायूस क्यों हो मित्र? उनका प्रेमप्रधा स्वंर सरसराया, क्या जीवन की इस क्षणभंगुरता को देखकर? देखो, जिन्दगी ‘लम्बी’ हो, यह कोई जरूरी नहीं है। हाँ, जिन्दगी ‘बड़ी’ जरूर होनी चाहिए। जजजज- जी, मैं कुछ समझा नहीं। सोमेन्द्र का स्वर असमंजय भरा था। मैं तुम्हें समझाता हूँ। सौमित्र बाबू की मुस्कराहट अब और भी गहरी और पवित्र हो उठी थी, मित्र, इन फूलों से ही क्यों नहीं सीखते तुम? ये जब तलक जीते हैं, सबको खुशियाँ बाँटते हैं। जानते हो, जीवन जीने के उद्देश्य से। मनुष्य का जीने का उद्देश्य जितना बड़ा होता है, जिन्दगी आप से आप उतनी बड़ी बन जाती है। सबकी खुशी की खाति जी जाने वाला पल भर भी जिन्दगी सदियों से बड़ी होती है। और फिर, गुजरते हुए समय के साथ सोमेन्द्र ने स्वतः जान लिया कि सचमुच सौमित्र बाबू की जिन्दगी भी एक फूल की तरह परोपकारी है। टाटा की टिस्को कम्पनी में कार्यरत सौमित्र बाबू न मालूम कितने ही असहायों के सहायक और हमदर्द थे। सोमेन्द्र की दयनीय दशा जानने के बाद उन्होंने उसकी भी पढ़ाई-लिखाई का सारा खर्च स्वयं उठाने का संकल्प ले लिया था। लेकिन, नियति को शायद और ही मंजूर था। एक रात, अचानक तूफानी कहर से सारा शहर सिहर उठा। तेज आंधी और ओलावृष्टि ने सब कुछ तबाह-ओ-तंग कर के रख दिया। कई दिनों बाद, सोमेन्द्र जब कंपनी-बाग में पहुँचा, तो चारों ओर पेड़ों की टूटी टहनियाँ, पत्तों के अम्बार और फूलों की पंखुडियाँ बेतरतीब बिखरी पड़ी थीं। हाँ, सौमित्र बाबू वहाँ कहीं नहीं थे। सोमेन्द्र ने अपनी डबडबाई आँखों से पुनः उस अखबार की ओर देखा, जिसके मुखपुष्ट पर छपी सौमित्र बाबू की तस्वीर उनके चिरपरिचित अंदाज में मुस्करा रही थी। नीचे लिखा था, समाज सेवी सौमित्र बाबू अब नहीं रहे।, एक क्रूर हृदयघात ने उस कोमल हृदयी को हर दर्द से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया, जो सदा दूसरो के दुख दर्द से कराहाता था। 26 तारीख की तुफानी रात को चमन का एक नायाब फूल (सौमित्र बाबू) अंततः अपनी शाख से टूट गया। शायद, सैमित्र बाबू अपनी जिन्दगी जी चुके थे, लंबी नहीं, मगर एक बड़ी जिन्दगी। आज से सोमेन्द्र का संकल्प है वह भी एक ऐसी ही जिन्दगी जीएगा, परोपकारी फूल की तरह सब की खुशियों की खातिर जी जाने वाली एक परमार्थी जिन्दगी। और पढ़ें : Child Story : जाॅनी और परी Child Story : मूर्खता की सजा Child Story : दूध का दूध और पानी का पानी Like us : Facebook Page #Hindi Story #Lotpot Magazine #Lotpot #Bal kahani #Lotpot Hindi Stories #लोटपोट की कहानी You May Also like Read the Next Article