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बाल कहानी : मुनीम और नौकर; करोड़ीमल लखनऊ के माने हुए सेठ थे। उद्धार व दानी होने के कारण सभी उनकी प्रशंसा करते थे। सेठ जी के यहाँ रामू नाम का एक नौकर और एक मुनीम काम करते थे। रामू एक मूर्ख किस्म का व्यक्ति था। जिसे सेठ जी बात बात पर झिड़क देते थे। इसके विपरित मुनीम को वे बड़े प्यार से रखते थे। मुनीम काफी बुद्धिमान था और सेठ जी को व्यापार में पूरा सहयोग देता था।
एक दिन की बात है रामू सुबह सुबह सेठ जी को चाय देने गया। उस समय सेठ जी काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे। चाय पीने के बाद उन्होंने रामू से पाँव दबाने के लिए कहा। सेठ जी को प्रसन्न देखकर रामू ने बातों बातों में सेठ जी से पूछा, ‘‘मालिक, आप मुनीम को सात सौ रुपये वेतन देते हैं और मुझे केवल दो सौ रूपये।’’
‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’ सेठ जी ने रामू की बात काटते हुए आश्चर्य से पूछा।
रामू ने हकलाते हुए कहा, ‘‘मालिक, आप मुझे कम वेतन देते हैं, जबकि मैं दिन रात काम करता रहता हूँ। और उस मुनीम को जो कुछ ही देर कलम घिसकर चला जाता है, आप ज्यादा वेतन देते हैं। आप मुझे भी उसके बराबर वेतन क्यों नहीं देते?’’
रामू की बात सुनकर सेठ करोड़ीमल का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया। किसी तरह अपनी हँसी को रोककर वे बोले, ‘‘मैं तुम दोनों को उचित वेतन देता हूँ। मुझे मुनीम द्वारा काफी मुनाफा होता है।’’
‘‘मालिक साहब, मैं भी किसी बात में मुनीम से कम नहीं हूँ।’’ रामू ने कहा।
‘‘अवसर आने पर देखा जायेगा।’’ सेठ जी ने रामू को यह कहकर टाल दिया।
एक दिन एक बैलगाडी वाला सेठ जी के पास आया सेठ जी के पास उस समय रामू बैठा हुआ था। सेठ ने रामू को मुनीम और नौकर में अंतर बताने का यही समय उचित समझा। वे रामू से बोले, ‘‘जाओ रामू बैलगाड़ी देख आओ।’’
रामू बैलगाड़ी देखकर आ गया और सेठ करोड़ी मल से बोला, ‘‘मालिक, मैं बैलगाड़ी देख आया, उसमें तो गेहँू भरी हुई है।’’
‘‘अच्छा तू जाकर मुनीम को यहाँ भेज दे।’’ सेठ जी ने रामू से कहा और अपने काम में व्यस्त हो गए।
कुछ ही देर में नौकर मुनीम को लेकर सेठ जी के पास आ गया। मुनीम को देखते ही सेठ जी उससे बोले, ‘‘मुनीम जी, तुम जाकर उस बैलगाड़ी को देखकर आओ।’’
मुनीम सीधा गाड़ीवान के पास पहुँचा और उससे पूछा, ‘‘इस गाड़ी में क्या है?’’
मुनीम की बात सुनकर गाड़ीवान बोला, ‘‘गेहूँ है साहब, बेचने के लिए मंडी में लाया हूँ।‘‘
मुनीम ने गेहँू का भाव कर के गेहँू खरीद लिया और उस गेहूँ को एक अन्य सेठ को बेचकर तीन सौ रुपये लाभ कमा लिया।
तीन सौ रुपये हाथ में लेकर मुनीम सेठ जी के पास आया। उस समय रामू सेठ जी के पाँव दबा रहा था। मुनीम सेठ जी से बोला, ‘‘मालिक, मैं बैलगाड़ी देख आया, उसमें गेहूँ था। मैंने सेठ हीरामल से उसका सौदा कर दिया। यह लो तीन सौ रुपये बने हैं।’’
मुनीम से तीन सौ रुपये लेकर सेठ जी रामू से बोले, ‘‘रामू देखो मुनीम और नौकर में यही अंतर है। मैंने तुम दोनों को ही बैलगाड़ी देखने के लिए भेजा था। तुम खाली हाथ वापस लौट आए। लेकिन मुनीम जी तीन सौ रुपये लेकर आए।’’ कहो,
अब तुम मुनीम और अपने वेतन के बारे में क्या कहते हो?‘‘
बेचारा रामू क्या बोलता। अब उसकी समझ में मुनीम और नौकर का अंतर संमझ आ गया था। और यह भी कि पढ़ाई भी बहुत जरूरी है।