बाल कहानी : घमंडी रमेश का पश्चाताप बाल कहानी : रमेश के पिता पिछले वर्ष ही इस शहर में आये थे। वे काफी बड़ी सरकारी पद पर थे इस लिए घर में हर सुख सुविधा का होना स्वाभाविक ही था। ऊपर से रमेश घर में इकलौता बच्चा था। इससे उसके और भी मजे थे। वह मुँह से जो कुछ भी निकाल देता। उसी समय पूरा हो जाता। By Lotpot 16 Sep 2021 | Updated On 16 Sep 2021 12:55 IST in Stories Moral Stories New Update बाल कहानी : रमेश के पिता पिछले वर्ष ही इस शहर में आये थे। वे काफी बड़ी सरकारी पद पर थे इस लिए घर में हर सुख सुविधा का होना स्वाभाविक ही था। ऊपर से रमेश घर में इकलौता बच्चा था। इससे उसके और भी मजे थे। वह मुँह से जो कुछ भी निकाल देता। उसी समय पूरा हो जाता। बचपन से ही रमेश को घर में आवश्यकता से अधिक लाड़ प्यार मिला था इसलिए उसके स्वभाव में जिद्दीपन आ गया था, इससे भी बुरी बात यह थी कि किसी और लड़के को अपने बराबर नहीं समझता था। हर बात में अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा सिद्ध करने में उसे एक प्रकार का आनन्द मिलने लगा। हूँ.... मुझे क्या पड़ी है जो मैं किसी की परवाह करूँ? मेरे पास किस चीज की कमी है। जिनके पास कुछ नहीं होता उन्हें ही दूसरों से दोस्ती करने की जरूरत पड़ती है जिससे उनसे मांग तांग कर सकें। यही बात रमेश प्रायः अपने मन में सोचता और यही वह अनेक लड़कों से कहता फिरता। शुरू शुरू में तो कक्षा के अनेक लड़कों ने रमेश से मित्रता करनी चाही। बाद में उसकी घमण्डी आदत को देखते हुए सभी उसे कतराने लगे। प्रायः कोई भी उससे बात करना पसन्द नहीं करता था। यह बात रमेश भी अच्छी तरह समझता था, फिर भी उसनेे बुरी आदत नहीं छोड़ी। नरेन नाम का एक और लड़का रमेश की ही कक्षा में पढ़ता था। वह जब कभी भी रमेश के बारे में सोचता तो उसका मन दुख से भर जाता। कभी नरेन की भी यही हालत थी। पर अचानक उसके घर की हालत बिगड़ गई और उसे अपनी आदत का फल भुगतना पड़ा था यही कारण था कि वह रमेश के साथ सहानुभूति रखता था। उसने कई बार रमेश को समझाने की कोशिश की परन्तु निराशा ही हाथ लगी। वार्षिक परीक्षा आरम्भ हो गई थी। उसी रोज गणित की परीक्षा थी। सभी लड़कों ने अपनी अपनी उत्तर पुस्तिका में प्रश्न हल करने आरम्भ कर दिये थे। कुछ देर बाद रमेश की ही कक्षा के सुशील नामक लड़के की निगाह रमेश पर पड़ी। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि रमेश कुछ भी नहीं कर रहा था, तभी उसने- देखा रमेश बार बार अपने हाथ कमीज और पैंट की जेबों में डाल रहा था। कुछ सोचकर सुशील खड़ा हुआ अध्यापक महोदय को पुकारा। श्रीमान जी! मुझे लगता है, रमेश अपना पेन भूल आया है इसलिए यह प्रश्नों के उत्तर नहीं लिख पा रहा है। मेरे पास दो पेन है। अपकी आज्ञा हो तो मैं एक पेन रमेश को दे दूँ? सुशील की बात सुनकर रमेश दंग रह गया, पिछली छुट्टियों में उसने सुशील को ही खेलने के लिए अपना बैट देने से मना कर दिया था। वही आज आगे बढ़कर उसकी सहायता कर रहा था। तब तक अध्यापक महोदय सुशील से पैन लेकर रमेश के पास आ चुके थे, जैसे ही उन्होंने पैन रमेश की ओर बढ़ाया उसकी आंखों में आंसू छलकने लगे। अध्यापक महोदय भी रमेश को अच्छी तरह जानते थे। उसकी यह दशा देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। भूल हर किसी से होती है बेटा। मैं जानता हूँ कि तुम इस समय क्या सोच रहे हो, आखिर मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है। इसलिए हमें सबको बराबर मानकर सबसे प्रेमभाव रखना चाहिये। सुशील ने पेन न दिया होता तो रमेश पास नहीं हो सकता था। परीक्षा का समय समाप्त होने पर नरेन ने भी रमेश की पीठ थपथपाते हुए कहा। चलों तुम्हारी समझ में तो आया कि घमण्ड करना बुरी बात है। हर किसी को किसी न किसी समय मित्रों की सहायता लेनी पड़ सकती है। कक्षा के सभी लड़कों को यह देखकर आश्चर्य के साथ साथ खुशी भी हुई कि रमेश को उस दिन पश्चाताप हुआ, घर जाते समय वह सभी से हंस बोल रहा था। सुशील के प्रति तो वह विशेष रूप से कृतज्ञ था। और पढ़ें : बाल कहानी : जाॅनी और परी बाल कहानी : मूर्खता की सजा बाल कहानी : दूध का दूध और पानी का पानी Like us : Facebook Page #Bacchon Ki Kahani #Bal kahani #Best Hindi Stories #Lotpot Ki Kahania #Lotpot Kahania You May Also like Read the Next Article