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विजयनगर के दरबार में तेनालीराम अपनी बुद्धि और हाज़िरजवाबी के लिए जाने जाते थे. लेकिन उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे किसी भी समस्या को पहले समझते थे, फिर हल निकालते थे. तेनालीराम का घोड़ा ऐसी ही एक कहानी है, जो बच्चों को यह सिखाती है कि हर समस्या के पीछे कोई कारण होता है. अगर कारण समझ लिया जाए, तो समाधान अपने आप सामने आ जाता है.
कहानी: तेनालीराम का घोड़ा
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के अस्तबल में एक बेहद सुंदर और ताकतवर घोड़ा था. उसकी चाल तेज़ थी और उसकी आंखों में चमक. लेकिन उसके स्वभाव से पूरा महल परेशान था.
घोड़ा किसी को अपने पास नहीं आने देता था. जैसे ही कोई सिपाही या सेवक उसे चारा देने जाता, वह ज़ोर से हिनहिनाता, ज़मीन पर पैर पटकता और कभी-कभी पिछले पैर उठाकर डराने लगता. कई बार तो सेवक डर के मारे चारा वहीं छोड़कर भाग जाते.
राजा ने सोचा कि शायद घोड़े को सख़्ती की ज़रूरत है. उन्होंने एक अनुभवी घुड़सवार को बुलाया. घुड़सवार ने घोड़े को काबू में करने की कोशिश की, लेकिन घोड़ा और उग्र हो गया. फिर दूसरे और तीसरे लोग भी आए, पर नतीजा वही रहा.
आख़िर राजा ने गुस्से में कहा,
“अगर यह घोड़ा ऐसे ही रहा, तो इसे बेच देना पड़ेगा. राज्य को परेशानी देने वाला जानवर हमारे किसी काम का नहीं.”
दरबार में सन्नाटा छा गया. तभी तेनालीराम आगे बढ़े और बोले,
“महाराज, क्या मुझे एक अवसर मिलेगा?”
राजा ने थोड़ा संदेह के साथ कहा,
“तेनाली, यह कोई मज़ाक नहीं है. यह घोड़ा बहुत ख़तरनाक है.”
तेनालीराम मुस्कुराए,
“महाराज, खतरा घोड़े में नहीं, उसके डर में है.”
तेनालीराम की योजना
अगले दिन तेनालीराम अस्तबल पहुंचे. न उनके हाथ में चाबुक था, न रस्सी, न कोई हथियार. सेवकों ने उन्हें टोका,
“तेनाली जी, पास मत जाइए. यह घोड़ा मार सकता है.”
तेनालीराम ने शांति से कहा,
“अगर मैं डरूंगा, तो घोड़ा भी डरेगा.”
वे घोड़े से थोड़ी दूरी पर खड़े हो गए. उन्होंने न तो उसे घूरा, न कोई तेज़ आवाज़ निकाली. बस सामान्य स्वर में बोले,
“तुम बहुत मजबूत हो. लेकिन हर मजबूत को शांति की ज़रूरत होती है.”
घोड़ा कुछ देर उन्हें देखता रहा. उसे आदत थी कि लोग या तो डरते हैं या गुस्सा करते हैं. यह आदमी दोनों में से कुछ भी नहीं कर रहा था.
तेनालीराम ने चारा ज़मीन पर रखा और खुद दो कदम पीछे हट गए. घोड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ा, चारा सूंघा और खाने लगा. यह पहली बार था जब उसने बिना हिनहिनाए खाना खाया.
धीरे-धीरे बदला व्यवहार
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तेनालीराम हर दिन उसी समय आते. कभी चारा थोड़ा पास रखते, कभी खुद थोड़ी देर वहीं खड़े रहते. अगर घोड़ा बेचैन होता, तो तेनालीराम पीछे हट जाते.
कुछ दिनों बाद घोड़े ने समझ लिया कि यह आदमी उससे कुछ छीनने नहीं आया. वह सुरक्षित महसूस करने लगा. अब वह तेनालीराम को देखकर शांत रहता.
एक दिन तेनालीराम ने धीरे से उसका सिर थपथपाया. घोड़ा शांत खड़ा रहा.
अगले दिन राजा स्वयं अस्तबल आए. उन्होंने देखा कि वही घोड़ा, जो सबको डराता था, तेनालीराम के पास बिल्कुल शांत खड़ा है.
राजा आश्चर्य से बोले,
“तेनाली, यह चमत्कार कैसे हुआ?”
तेनालीराम का उत्तर
तेनालीराम ने विनम्रता से कहा,
“महाराज, यह चमत्कार नहीं है. यह समझ का परिणाम है. यह घोड़ा पहले डराया गया, इसलिए उसने डराना सीख लिया. जब उसे भरोसा मिला, तो उसका व्यवहार बदल गया.”
राजा मुस्कुराए और बोले,
“तेनाली, तुमने आज हमें सिर्फ घोड़ा नहीं, इंसानों को समझने का तरीका भी सिखा दिया.”
कहानी में छिपा तर्क
हर गुस्से के पीछे डर छुपा होता है
ज़ोर-ज़बरदस्ती समस्या बढ़ा सकती है
धैर्य और समझ से व्यवहार बदला जा सकता है
विश्वास समय लेकर बनता है
बच्चों के लिए क्यों ज़रूरी है यह कहानी
यह कहानी डर को समझना सिखाती है
धैर्य रखने का महत्व बताती है
बिना हिंसा के समाधान दिखाती है
सोचने और समझने की आदत डालती है
सीख (Moral of the Story)
किसी को बदलने के लिए डराना नहीं, समझना ज़रूरी होता है. धैर्य और सही सोच से सबसे कठिन समस्या भी हल हो सकती है.
तेनालीराम के बारे में
तेनालीराम, जिनका वास्तविक नाम Tenali Ramakrishna था, विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध कवि और बुद्धिजीवी थे. उनकी कहानियां आज भी तर्क, हास्य और जीवन की गहरी सीख देती हैं.
