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तेनालीराम की समझदारी
तेनालीराम की समझदारी: विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में आठ दिग्गज कवि थे, जिन्हें 'अष्टदिग्गज' कहा जाता था। इनमें सबसे अनोखे और चतुर थे—तेनालीराम। तेनालीराम सिर्फ अपनी कविता के लिए नहीं, बल्कि अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और हास्य के लिए जाने जाते थे। अक्सर दरबारी उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते, लेकिन हर बार तेनालीराम की समझदारी उन्हें भारी पड़ती थी। आज की कहानी एक ऐसी ही दिलचस्प घटना की है, जब तेनालीराम ने बिना कुछ किए ही दुनिया की "सबसे महान पेंटिंग" बना डाली।
तेनालीराम की समझदारी और अदृश्य पेंटिंग (मुख्य कहानी)
विजयनगर का दरबार आज सजा हुआ था। एक विदेशी चित्रकार दरबार में आया था। उसने अपनी बनाई हुई कुछ पेंटिंग्स महाराजा को दिखाईं। पेंटिंग्स इतनी सजीव थीं कि राजा मुग्ध हो गए। राजा ने खुश होकर चित्रकार को स्वर्ण मुद्राओं से नवाजा।
सभी दरबारी वाह-वाह कर रहे थे, लेकिन तेनालीराम चुपचाप कोने में खड़े मुस्कुरा रहे थे। राजा ने पूछा, "क्यों तेनाली? तुम्हें यह कलाकारी पसंद नहीं आई क्या?"
तेनालीराम ने बड़ी मासूमियत से कहा, "महाराज, पेंटिंग तो अच्छी है, लेकिन इसमें एक कमी है। चित्रकार ने केवल सामने का हिस्सा दिखाया है। पीछे का हिस्सा तो गायब है। असली चित्रकार तो वह है जो वह भी दिखा दे जो आँखों से ओझल है।"
राजा की चुनौती और तेनाली का दांव
चित्रकार को बुरा लगा। उसने चुनौती देते हुए कहा, "अगर तुम इतने ही बड़े पारखी हो, तो तुम खुद एक पेंटिंग क्यों नहीं बनाते?"
राजा कृष्णदेव राय को भी मजाक सूझा। उन्होंने कहा, "ठीक है तेनाली! मैं तुम्हें एक महीने का समय और सभी जरूरी सामान देता हूँ। अगर तुमने इस कलाकार से बेहतर पेंटिंग नहीं बनाई, तो तुम्हें दरबार से निकाल दिया जाएगा।"
तेनालीराम ने चुनौती स्वीकार कर ली। उन्होंने कहा, "महाराज, मुझे केवल एक सफेद कैनवस, कुछ रंग और एक महीने की छुट्टी चाहिए। एक महीने बाद मैं आपको वह पेंटिंग दिखाऊंगा जो आज तक किसी ने नहीं देखी होगी।"
एक महीने का आराम और दरबारियों की खुशी
पूरे एक महीने तक तेनालीराम दरबार नहीं आए। वे अपने घर पर मजे से सो रहे थे, लजीज खाना खा रहे थे और अपने बच्चों के साथ खेल रहे थे। उधर दरबार में चर्चा शुरू हो गई, "इस बार तो तेनालीराम गए! उन्होंने एक बार भी ब्रश नहीं उठाया।" दरबारी खुश थे कि अब तेनालीराम का बोरिया-बिस्तर बंध जाएगा।
दरबार में 'महान' पेंटिंग की प्रदर्शनी
एक महीना बीत गया। तेनालीराम एक बड़ा सा सफेद कैनवस लेकर दरबार में हाजिर हुए। कैनवस एक मखमली कपड़े से ढका हुआ था। दरबार खचाखच भरा था। सबकी निगाहें उस कपड़े पर टिकी थीं।
महाराज ने उत्सुकता से कहा, "तेनाली, अपनी कलाकारी दिखाओ!"
तेनालीराम ने शान से कपड़ा हटाया। दरबार में सन्नाटा छा गया। वह कैनवस पूरी तरह सफेद (Empty) था! उस पर बस नीचे के कोने में एक छोटी सी हरी घास की लकीर खिंची हुई थी।
तेनालीराम का मजेदार तर्क (Logic)
राजा का चेहरा लाल हो गया। उन्होंने गुस्से में कहा, "तेनाली! यह क्या मजाक है? यह कैनवस तो खाली है। इसमें पेंटिंग कहाँ है?"
तेनालीराम ने बड़ी शांति से हाथ जोड़े और कहा, "महाराज, ध्यान से देखिये। यह एक हरे-भरे मैदान की पेंटिंग है, जहाँ एक बहुत ही सुंदर और ताकतवर गाय घास चर रही थी।"
राजा चिल्लाए, "लेकिन घास तो सिर्फ कोने में है, और गाय कहाँ है?"
तेनालीराम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "महाराज, वही तो असली कलाकारी है! गाय सारी घास चर गई और अब वह अपने घर चली गई है। चूँकि वह घर जा चुकी है, इसलिए वह चित्र में दिखाई नहीं दे रही। आपने ही तो कहा था कि असली कलाकार वह है जो वह भी दिखा दे जो आँखों के सामने न हो।"
दरबार में ठहाका गूँज उठा। राजा का गुस्सा गायब हो गया और वे हंसते-हंसते लोटपोट हो गए। उन्होंने माना कि तेनालीराम की कल्पना शक्ति और तर्क का कोई मुकाबला नहीं है।
तेनालीराम या तेनाली रामलिंगम 16वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध कवि और विद्वान थे। उनके किस्से आज भी लोककथाओं के रूप में प्रचलित हैं।
अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें:
तेनालीराम - विकिपीडिया
कहानी से सीख (Moral of the Story)
"बुद्धि का सही उपयोग किसी भी कठिन परिस्थिति या हार को जीत में बदल सकता है। हाजिरजवाबी और कल्पनाशीलता जीवन को आसान और खुशहाल
तेनालीराम की समझदारी हमें सिखाती है कि हर समस्या का समाधान केवल बल या मेहनत में नहीं, बल्कि शांत दिमाग और चतुराई में छिपा होता है। बच्चों को हमेशा अपनी सोच को 'आउट ऑफ द बॉक्स' (Out of the box) रखना चाहिए, ठीक तेनालीराम की तरह!
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