Health Tips : बच्चों को डिप्रेशन से कैसे बचाया जाए?

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Health Tips : बच्चों को डिप्रेशन से कैसे बचाया जाए?

Health Tips : डिप्रेशन एक मानसिक अवस्था का दौर है जिसे अक्सर सिर्फ बड़ों की समस्या कहा जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। डिप्रेशन किसी भी उम्र में होने की संभावना है। आजकल डिप्रेशन की अवस्था छोटे छोटे बच्चों में भी देखा जा रहा है लेकिन चिंता की बात यह है कि जब बच्चे डिप्रेशन से गुजरते हैं तो अधिकतर मामले में किसी को पता नहीं चल पाता है।

आज से लगभग चालीस साल पहले, बच्चों में होने वाले डिप्रेशन के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं थी लेकिन आज  बच्चों के इस मानसिक अवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है। तो इसकी पहचान कैसे हो कि बच्चे डिप्रेस्ड है या नहीं? डॉक्टर्स का मानना है कि सभी बच्चों में एक जैसे लक्षण नहीं होते।

कभी कभी बच्चों के मूड स्विंग्स को घरवाले या टीचर्स उनके विकास का हिस्सा मान लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है। यूँ तो बच्चों में डिप्रेशन के ढेर सारे लक्षण है लेकिन आम तौर पर उनकी आदतों में आए अचानक बदलाव पर जरूर ध्यान देना चाहिए, जैसे अगर कोई बच्चा या बच्ची लगातार उदास, निराश और चुप चुप रहने लगे, अगर वे बहुत कम या बहुत ज्यादा खाना खाने लगे, अगर उन्हें बहुत कम या बहुत ज्यादा नींद आने लगे, अगर वे किसी भी काम या पढ़ाई में ध्यान केंद्रित ना कर सके, अगर बच्चे बिना कारण थकान, कमजोरी महसूस करने लगे और बात बात पर चिढ़ने और क्रोधित होने लगे, अगर उनका मूड लगातार बदलने लगे, पहले जिन कार्यों में वे रुचि लेते रहे हो, उसमें रुचि ना ले, उनके आत्मविश्वास में एकदम कमी आ जाए, उन्हें अक्सर पेट दर्द, सर दर्द, माइग्रेन होने लगे और हर वक्त उनके चेहरे पर परेशानी और हताशा के भाव दिखने लगे, अगर वे समाज से कटने लगे और लोगों से मिलने जुलने, बातें करने से बचने या छुपने लगे और छोटी छोटी बात पर रोने लगे तो घरवालों को अलर्ट हो जाना चाहिए।

तब  बहुत प्यार से बच्चों से उनका हाल और तबीयत के बारे में पूछना चाहिए। बच्चों में डिप्रेशन के बहुत से कारण होते हैं, जैसे उनके आसपास का महौल, उनका शारीरिक स्वास्थ्य, स्कूल कॉलेज में उनके साथ कोई दुर्व्यवहार, हिंसा, दवाब, तनाव, डर वगैरह। परिवार में किसी को अगर अवसाद रहा हो तो वो अनुवांशिक तौर पर बच्चों को भी हो सकता है। कई बार बच्चों के शरीर में कोई केमिकल में असंतुलन जैसे सेरोटोनिन में कमी भी डिप्रेशन का कारण हो सकता है। यदि बच्चों में इस प्रकार के लक्षण हो तो उसे कतई नजरअंदाज ना करें।

उन्हें कभी गुस्से और डांट कर समझाने की कोशिश ना करें। भूलकर भी उनकी तुलना किसी और से ना करें। उनके साथ प्यार, अपनापन और दोस्ती की भावना से बात करें, बच्चे या बच्ची को यह विश्वास दिलाए कि उनकी परेशानी में आप उनके साथ मजबूती से खड़े हैं और वो जरूर इस मानसिक अवस्था से उबर जाएंगे। बच्चों पर किसी बात का प्रेशर ना डालें, कोई जबर्दस्ती ना करें।

बच्चों की भावनाएं और बातों को पूरे मन और ध्यान से सुनें, उनके आत्म सम्मान पर कभी ठेस ना लगाएं। उन्हें भरपूर वक्त दें, पौष्टिक खाना खिलाएं, उनके साथ खेलिए, घूमने जाएं और उनके अच्छे गुणों की हमेशा तारीफ करें। यदि  आपको लगे कि बच्चा /बच्ची में कोई सुधार नहीं हो रहा है तो किसी अच्छे मानसिक रोक विशेषज्ञ की मदद जरूर लें।

डॉक्टर पहले बच्चे की काउंसिलिंग करेंगे, अगर बहुत जरूरी हो तो ही दवा भी देंगे जिसे नियमित रूप से बच्चे /बच्ची को लेना होगा। और ध्यान रहे, डॉक्टर के परामर्श के बिना बच्चों को कोई दवाई  नहीं लेना चाहिए और डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां अपनी मर्जी से बंद भी नहीं करना चाहिए वर्ना स्थिति गंभीर हो सकती है।

बच्चों को भी चाहिए कि अगर उनके जीवन में कोई परेशानी हो तो अपने माता पिता और टीचर से जरूर - जरूर शेयर करना चाहिए, अपनी परेशानियाँ छुपाना नहीं चाहिये।