बाल कहानी : विचित्र जानवर

कालू नाम का एक भालू गाँव के बाहर वाले जंगल में रहता था। वह देखने में जितना काला कलूटा था। मन से उससे भी अधिक काला था। ऊपर से मीठी मीठी बातें करता था और मौका मिलते ही उन्हें चट कर देता। छोटे जानवर तो प्रायः चिकनी चुपड़ी बातों के जाल में फंस ही जाते थे।

By Lotpot
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बाल कहानी : (Hindi Kids Story) विचित्र जानवर

कालू नाम का एक भालू गाँव के बाहर वाले जंगल में रहता था। वह देखने में जितना काला कलूटा था। मन से उससे भी अधिक काला था। ऊपर से मीठी मीठी बातें करता था और मौका मिलते ही उन्हें चट कर देता। छोटे जानवर तो प्रायः चिकनी चुपड़ी बातों के जाल में फंस ही जाते थे।

उसी जंगल में मोटू और छोटू नाम के दो खरगोश भी रहते थे। देखने में वे जितने छोटे थे, अक्ल में उतने ही अधिक बुद्धिमान। उन दोनों में दोस्ती भी खूब थी। दिन भर दोनों मिलकर उछल कूद मचाते और खेलते रहते।

बातों ही बातों में कालू भालू का जिक्र आ गया।

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सच मोटू इस कालू के बच्चे ने तो छोटे जानवरों का जीना हराम कर दिया है। वह रोज ही किसी न किसी को अपने जाल में फंसा ही लेता है।

छोटू की बात सुनकर मोटू बोलने लगा, पर मेरी समझ में यह नहीं आता कि उसे जानते हुए भी हम उसकी बातों में क्यों आ जाते हैं?

तुम्हारी बात तो ठीक है मोटू, पर अपने साथियों के बचाव के लिए हमें कुछ न कुछ तो करना ही चाहिए।

लेकिन छोटू हम कर भी क्या सकते हैं?

हमें उस भालू को ऐसा सबक सिखाना चाहिए कि वह जीवन भर याद करे।

छोटू की बात पर मोटू कुछ सोचते हुए बोला, तुम कहते हो तो जरूर कुछ न कुछ करेंगे।

इसके बाद दोनों मित्र छलांगे लगाते हुए चले गये। एक पेड़ के नीचे बैठे वे सुस्ता रहे थे। तभी कालू भालू की आवाज उनके कानों में पड़ी।

उस समय छोटू ने सोचा कि यदि वे भागने की कोशिश करें तो शायद कालू भालू उन्हें दबोच लें। इसलिए वह बातें बनाते हुए बोला, अरे कालू दादा, आप यहाँ घूम रहे हो? वहाँ गुुफा में विचित्र जीव देखने नहीं गये।

विचित्र जीव! कालू ने आश्चर्य से पूछा।

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और नहीं तो क्या, आज जंगल के कोने वाली गुफा में जाने कहाँ से एक विचित्र जीव आ गया है। उसका शरीर सांप जैसा लगता है। मुँह शेर जैसा और पूंछ लंगूर जैसी। सभी जानवर उसी को देखने गये हैं।

अच्छा, तो मुझे भी वहाँ अवश्य जाना चाहिए। कालू भालू बोला।

कालू भालू वास्तव में ही उनकी बातों में आ गया था। वह उन्हें फांसने की बात भूलकर गुफा में आए विचित्र जानवर को देखने के लिए मुड़ने लगा। तभी छोटू ने आवाज लगाई, कालू दादा.... तुम्हें याद है  न कि उस विचित्र जानवर का मुँह शेर जैसा है। उसका मुँह देखकर डर मत जाना। आप ध्यान से गुफा में घुसकर उसे अच्छी तरह से देखना। बड़ा आनन्द आएगा आपको छोटू की बात सुनकर कालू अकड़ते हुए बोला। शेर का मुँह तो क्या, वह असली शेर भी हुआ तो मैं डरने वाला नहीं।

इतना कहकर कालू भालू विचित्र जानवर को देखने की उत्सुकता में गुफा की ओर चल पड़ा। उसी समय मोटू और छोटू खरगोश भी दौड़ते हुए दूसरे रास्ते से गुुफा के पास पहुँचकर छिप गए।

थोड़ी देर बाद कालू भालू गुफा के पास आया और इधर उधर झाँककर गुफा के अन्दर जाने लगा। सामने ही शेर का मुँह देखकर वह मन ही मन सोचने लगा कि वास्तव में ही वह विचित्र जानवर होगा। बिना किसी झिझक के वह अन्दर जाने लगा। कुछ ही क्षणों बाद कालू भालू गिरता पड़ता गुफा से बाहर की ओर दौड़ता आ रहा था। बेचारे के शरीर पर कई जगह गहरे घाव हो गए थे।

कहो कालू दादा, देख लिया विचित्र जानवर?

छोटू ने पूछा तो मोटू भी बोल पड़ा, अब तक तो तुम बातों में फँसाकर छोटे जानवारों को मारते थे। आज तुम खुद भी बातों के जाल में फँस ही गए।

कालू भालू की दोनों टाँगे इतनी बुरी तरह घायल हो गई थी कि अब वह ठीक से चलने लायक भी नहीं रहा था।

असल में जंगल के कोने वाली गुफा में कुछ समय पहले ही एक शेर रहने लगा था। कालू भालू को इसकी जानकारी नहीं थी उसी का लाभ उठाकर मोटू और छोटू खरगोश ने उसे यह सबक सिखाने की सोची थी।

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