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फोटोस्टेट मशीन किसी चित्र या लिखावट को नकल करने का तरीका है, जिसमें किसी गीली स्याही की आवश्यकता नहीं होती है, इसे हम सूखी स्याही द्वारा लिखाई का तरीका भी कह सकते हैं।
प्यारे बच्चों आप सभी ने कभी न कभी अपने बुक्स या अपने स्कूल नोट्स की फोटोस्टेट करवाई होगी, लेकिन क्या आप जानते हो कैसे एक कागज से दूसरे कागज पर इसका प्रिंट उतर जाता है। फोटोस्टेट मशीन किसी चित्र या लिखावट को नकल करने का तरीका है, जिसमें किसी गीली है, इसे हम सूखी स्याही द्वारा लिखाई का तरीका भी कह सकते हैं। फोटोस्टेट मशीन में स्थिर विद्युत प्रयोग में लाई जाती है। इसमें सेलीनियम धातु के अद्भूत गुणों को प्रयोग में लाया जाता है। सेलीनियम का यह गुण है कि जब इस धातु की सतह पर प्रकाश पड़ता है तो विद्युत धारा के लिए इसका प्रतिरोध एकदम से कम हो जाता है। इस तरह होती है।
इस तरह होती है फोटोस्टेट
किसी लिखित कागज या पुस्तक के पृष्ठ का जिसकी नकल करनी होती है, उसे कांच की प्लेट पर उल्टा करके रखते हैं।
फोटोस्टेट मशीन में लगे स्विच को दबाने से एक बल्ब से तेज प्रकाश निकलता है, जो कागज पर पड़ता है इस प्रकाश के कारण एक लेंस द्वारा कागज की लिखावट का प्रतिबिंब सेलीनियम की तह (चढ़ी हुई प्लेट) पर बनता है। लिखावट वाले स्थानों में जहां प्रकाश नहीं पड़ता, वहां विद्युत आवेश पैदा हो जाता है और जिन स्थानों पर प्रकाश पड़ता है, वहां से आवेश पृथ्वी में चला जाता है। अब प्लेट पर काले रंग की एक विशेष प्रकार की सूखी स्याही लगाते हैं। यह स्याही उन स्थानों पर चिपक जाती है। जहां पर आवेश होता है अर्थात प्रतिबिंब के लिखावट वाले स्थान पर स्याही चिपक जाती है। इस प्रकार लिखावट का स्याही चिपका हुआ उल्टा प्रतिबिंब बन जाता है। अब एक सफेद कागज को इस प्रतिबिंब बनी प्लेट के संपर्क में लाया जाता है।
इस कागज पर प्लेट के विपरीत आवेश पैदा हो जाता है, जिससे कुछ स्याही कागज की ओर आकर्षित हो जाती है। प्लेट से कागज को अलग करके हल्का सा गर्म करते हैं। इससे स्याही पिघलकर कागज पर जम जाती है और हमें पुस्तक की लिखावट या चित्र की बिल्कुल वैसी ही नकल प्राप्त हो जाती है। यही फोटोस्टेट तरीका है।
कुछ मशीनों में प्लेट के स्थान पर सेलीनियम धातु की पतली परत चढ़ा हुआ एक बेलन होता है। दूसरे प्रकार के इलेक्ट्रोस्टेटिक काॅपीज में पृष्ठ पर अंकित सामग्री या चित्र दूसरे कागज पर सीधे उतर जाते हैं। जिससे उसकी सतह आवेशित हो जाती है। इसके बाद वह कागज एक टोनर में से गुजरता है और टोनर के कण आवेशित भाग पर चिपक जाते हैं, इस प्रकार प्रतिलिपि तैयार हो जाती है।
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