Fun Facts: शुभ और सम्मान का प्रतीक है तिलक

भारतीय परंपरा के सभी धर्मकृत्यों और पारंपरिक कर्मकांडों, शिष्टाचार बरतते हुए भी माथे पर तिलक या टीका लगाना ज़रूरी है। शुभ अवसर पर ऐसा करना ख़ुशी और सम्मान का प्रतीक है।

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शुभ और सम्मान का प्रतीक है तिलक

Fun Facts शुभ और सम्मान का प्रतीक है तिलक:- भारतीय परंपरा के सभी धर्मकृत्यों और पारंपरिक कर्मकांडों, शिष्टाचार बरतते हुए भी माथे पर तिलक या टीका लगाना ज़रूरी है। शुभ अवसर पर ऐसा करना ख़ुशी और सम्मान का प्रतीक है। किसी महत्वपूर्ण कार्य पर निकलने के दौरान रोली, हल्दी, चन्दन या कुमकुम का तिलक लगाया जाता है। उपासना, पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन और देवदर्शन के समय भी तिलक लगाकर शुभकामनाएँ दी जाती हैं। एक सामान्य और औपचारिक कृत्य लगते हुए भी इसका महत्व असाधारण है। इसके दार्शनिक और वैज्ञानिक पक्षों को जानकर कोई भी हैरान हो सकता है। (Interesting Facts)

Tilak on Forehead

ललाट पर टीका या तिलक जिस स्थान पर लगाया जाता है वह आज्ञाचक्र है। शरीरशास्त्र की दृष्टि से...

ललाट पर टीका या तिलक जिस स्थान पर लगाया जाता है वह आज्ञाचक्र है। शरीरशास्त्र की दृष्टि से यह स्थान पीनियल ग्रंथि का है। प्रकाश से इस ग्रंथि का गहरा संबंध है। योग विज्ञान के अनुसार बहत्तर हज़ार नाड़ियां शरीर में यहां से वहां फैली हुई हैं। इनमें तीन प्रमुख हैं इडा, पिंगला, सुषुम्ना। ये तीनों मेरूदंड मार्ग से ऊपर कि ओर आती हुई मस्तिष्क के तीनों भागों को अलग-अलग स्पर्श करती हैं। उसके बाद वह तीनों नाड़ियां रस्सी की तरह आपस में गुंथी हुई कपाल प्रदेश में ऊपर से नीचे की ओर जाती हैं। इसके बाद आज्ञाचक्र पर पृथक हो जाती हैं। (Interesting Facts)

Saint with Tilak

सुषुम्ना आज्ञाचक्र तीसरे नेत्र के स्थान पर अपनी यात्रा समाप्त कर देती है, जबकि इडा और पिंगला दोनों नेत्रों की कर्गिकाओं को स्पर्श कर उनकी रक्तवाहिनी तंतुओं के रूप में परिवर्तित हो जाती है। इन दोनों नाड़ियों का संबंध दोनों आंखों के माध्यम से जाग्रत और स्वप्नावस्था से है। इसके विपरीत सुषुम्ना का संबंध तीसरे नेत्र के माध्यम से सुषुम्ति, तुरीय और तरीयातीत अवस्था से है। योगीजन आज्ञाचक्र में चित्त को एकाग्र कर सुषुम्ना मार्ग से इन्हीं अवस्थाओं के द्वारा अंतर्जगत से प्रवेश करते हैं। उस बिंदु पर तिलक, ‘टीका’ लगाने से मानसिक सजगता पैदा होती है, जिसे एकाग्रता की प्रारंभिक स्थिति कह सकते हैं। (Interesting Facts)

तिलक या त्रिपुंड प्रायः चन्दन का होता है। चंदन की प्रकृति शीतल होती है। शीतल चंदन जब मस्तक पर लगाया जाता है तो उसके पीछे यह भाव होता है कि चिंतन का जो केंद्रीय संसथान मस्तिष्क के रूप में खोपड़ी के अंदर विराजमान है, वह हमेशा शीतल बना रहे। उसके विचार और भाव इतने श्रेष्ठ हैं कि अपनी तरफ यह औरों को भी वह शीतलता, शांति और भाव प्रदान करता है। (Interesting Facts)

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