अब पछताए होत क्या: आलसी बंदर की कहानी

नमस्ते, प्यारे दोस्तों! क्या आपने कभी सोचा है कि समय का सही उपयोग करना कितना ज़रूरी है? अक्सर हम आलस या घमंड में कुछ काम टाल देते हैं और जब मुश्किल आती है, तो पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता।

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समय रहते जो काम न करे, बाद में पछताए होत क्या

नमस्ते, प्यारे दोस्तों! क्या आपने कभी सोचा है कि समय का सही उपयोग करना कितना ज़रूरी है? अक्सर हम आलस या घमंड में कुछ काम टाल देते हैं और जब मुश्किल आती है, तो पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता। आज की हमारी कहानी एक ऐसे ही बंदर की है, जो अपनी लापरवाही के कारण मुसीबत में पड़ गया। यह कहानी हमें सिखाती है कि मौका रहते ही सही काम कर लेना चाहिए, क्योंकि बाद में पछताने का कोई फ़ायदा नहीं होता। यह कहानी सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि एक बहुत ही ज़रूरी सीख देने के लिए है, जो आपके जीवन में भी बहुत काम आएगी। तो आइए, चलते हैं एक ऐसे जंगल में जहाँ एक आलसी बंदर ने एक ऐसी गलती कर दी, जिसका पछतावा उसे जीवन भर रहा।

जंगल का सूखा और एक ज़रूरी बैठक

एक घने जंगल में सभी जानवर बहुत शांति और खुशहाली से रहते थे। नदी में पानी कलकल बहता था, पेड़ों पर मीठे फल लदे रहते थे और चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली थी। जानवरों में एकता थी और वे सब मिलजुल कर रहते थे। इसी जंगल में एक बंदर रहता था, जिसका नाम था चंचल। वह बहुत शरारती और आलसी था। उसे दूसरों के साथ मिलकर काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। वह हमेशा यही सोचता था कि दूसरे मेहनत करें और वह बिना मेहनत के ही मौज-मस्ती करे।

एक साल, मौसम में बदलाव आया। गर्मी इतनी ज़्यादा पड़ी कि नदी का पानी सूखने लगा, तालाब खाली हो गए और पेड़ों के पत्ते भी पीले पड़ गए। जंगल में पानी की कमी होने लगी। सभी जानवर बहुत परेशान हो गए।

जंगल के राजा, शेर ने सभी जानवरों की एक बैठक बुलाई। बैठक में हाथी, हिरण, खरगोश, भालू और सभी पक्षी मौजूद थे। वहाँ एक बूढ़ा और समझदार कछुआ भी था, जिसका नाम धीरु था। वह अपनी बुद्धिमानी के लिए जाना जाता था।

राजा शेर ने गंभीर स्वर में कहा, “साथियों, हमारे जंगल पर बहुत बड़ा संकट आया है। पानी के सभी स्रोत सूख रहे हैं। अगर हम सब मिलकर इसका कोई समाधान नहीं निकालेंगे, तो हमारा जंगल ख़त्म हो जाएगा।”

तब बूढ़ा कछुआ धीरु धीरे-धीरे आगे आया और बोला, “महाराज, मैंने सोचा है कि अगर हम सब मिलकर जंगल के बीच में एक बहुत गहरा कुआँ खोदें, तो हम धरती के भीतर से पानी निकाल सकते हैं। यह बहुत मुश्किल काम होगा, लेकिन अगर हम सब साथ मिलकर काम करें, तो यह ज़रूर पूरा होगा।”

सभी जानवर इस विचार से सहमत हो गए। उन्होंने अगले दिन से ही कुआँ खोदने का काम शुरू करने का फैसला किया।

चंचल का घमंड और आलस

अगले दिन, सभी जानवर कुआँ खोदने के लिए इकट्ठा हुए। हाथी अपनी ताकत से बड़े-बड़े पत्थर हटा रहे थे, हिरण मिट्टी को खुरच रहे थे, और खरगोश उस मिट्टी को बाहर निकाल रहे थे। सभी मिलकर एक-दूसरे का साथ दे रहे थे।

तभी, चंचल बंदर एक पेड़ पर बैठा यह सब देख रहा था। उसे लगा कि ये सब पागल हैं जो इतनी मेहनत कर रहे हैं। उसने सोचा, “मैं क्यों इतनी मेहनत करूँ? मुझे तो जब प्यास लगेगी, मैं एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदकर कहीं न कहीं से पानी ढूंढ ही लूँगा।”

सभी जानवरों ने चंचल से मदद मांगी। “चंचल भाई, तुम भी हमारे साथ आओ! यह हम सब के भविष्य का सवाल है।”

चंचल ने हंसते हुए कहा, “तुम सब जाओ, मैं इतना कमज़ोर नहीं कि तुम लोगों के पीछे-पीछे चलूँ। मैं तो अपनी आज़ादी से घूमूँगा और पानी ढूंढ लूँगा।”

जानवर उदास होकर अपने काम में लग गए। चंचल ने उनकी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और मस्ती करता रहा।

बढ़ता हुआ संकट और चंचल की मुसीबत

कुछ दिनों बाद, जंगल की हालत और भी ख़राब हो गई। आसमान में बादल नहीं दिखे और सूरज की तपिश बढ़ती गई। जो छोटी-मोटी नदियाँ और तालाब बचे थे, वे भी पूरी तरह से सूख गए।

लेकिन, जानवरों ने हार नहीं मानी। दिन-रात की कड़ी मेहनत के बाद, उन्होंने एक गहरा कुआँ खोद दिया। धीरे-धीरे कुएँ में ताज़ा और साफ़ पानी भर गया। सभी जानवर खुशी से झूम उठे। उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और कुएँ के पानी से अपनी प्यास बुझाई। अब उनके पास पीने के लिए भरपूर पानी था।

दूसरी तरफ़, चंचल की हालत ख़राब हो चुकी थी। उसे बहुत तेज़ प्यास लगी थी, लेकिन उसे कहीं भी पानी नहीं मिला। वह हर जगह भागा, हर पेड़ पर चढ़ा, लेकिन सब बेकार। जंगल का एक-एक कोना सूख चुका था। उसकी प्यास इतनी बढ़ गई थी कि उसे चक्कर आने लगे।

हताश होकर वह उसी जगह पर पहुँचा जहाँ जानवर कुआँ खोद रहे थे। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि सभी जानवर उस नए कुएँ से पानी पी रहे हैं और आनंद ले रहे हैं।

जब समय निकल गया और पछतावा बचा

चंचल ने बाकी जानवरों को देखा और शर्मिंदगी महसूस की। वह उनके पास गया और गिड़गिड़ाकर बोला, “मेरे प्यारे दोस्तों, मुझे माफ़ कर दो! मैंने बहुत बड़ी गलती की। मुझे भी पानी दे दो, मेरी जान जा रही है।”

सभी जानवर शांत थे। तभी बूढ़ा कछुआ धीरु बोला, “चंचल, जब हम सब एक साथ काम कर रहे थे, तब तुम कहाँ थे? हमने तुमसे मदद मांगी, लेकिन तुमने हमारा मज़ाक उड़ाया। तुमने सोचा कि तुम अकेले ही सब कुछ कर सकते हो। हम सब ने मिलकर मेहनत की है, और यह पानी उसी मेहनत का फल है।”

चंचल की आँखों में आँसू आ गए। वह समझ गया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। वह जानता था कि अब पछताने का कोई फ़ायदा नहीं है।

बूढ़े कछुए ने कहा, “अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।”

इस वाक्य का मतलब है कि जब मौका हाथ से निकल जाए, तो पछताने का कोई फ़ायदा नहीं होता। चंचल को उसकी गलती का एहसास हो गया। उसने जानवरों से माफ़ी मांगी और उनसे वादा किया कि अब से वह हमेशा सबके साथ मिलकर काम करेगा। जानवरों ने उसकी ईमानदारी को देखकर उसे थोड़ा पानी दिया, लेकिन यह पानी उसे हमेशा उस सीख की याद दिलाता रहेगा।

कहानी की सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी भी अपने काम को टालना नहीं चाहिए। आलस और घमंड हमें हमेशा मुश्किल में डालते हैं। जब सभी लोग मिलकर काम करते हैं, तो बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है। समय रहते अगर हम अपने फ़र्ज़ को समझें और सही कदम उठाएँ, तो हमें कभी पछताना नहीं पड़ेगा। एकता, मेहनत और दूरदर्शिता ही सफलता की कुंजी है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

Q1. बंदर का नाम क्या था और वह कैसा था?A. बंदर का नाम चंचल था और वह बहुत शरारती और आलसी था।

Q2. जंगल के जानवरों ने मिलकर क्या काम किया?A. उन्होंने मिलकर जंगल में एक गहरा कुआँ खोदा।

Q3. बूढ़े कछुए ने क्या कहा?A. उसने चंचल से कहा, "अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।"

Q4. कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?A. हमें समय पर काम करना चाहिए और आलस से बचना चाहिए।

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