गड्ढा खोदोगे तो गिरोगे - एक शिक्षाप्रद जंगल की कहानी
एक गहरे कुएं में गंगाधर नाम का एक मेंढ़क अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में कुल 12 सदस्य थे, और वह परिवार का मुखिया था। गंगाधर का जीवन संघर्षों से भरा था
एक गहरे कुएं में गंगाधर नाम का एक मेंढ़क अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में कुल 12 सदस्य थे, और वह परिवार का मुखिया था। गंगाधर का जीवन संघर्षों से भरा था
एक घने जंगल में सभी जानवर खुशी-खुशी रहते थे। वहां शेर, हाथी, हिरण, बंदर, और खरगोश जैसे अनेक जानवर थे। जंगल में हर साल एक बड़ा खेल प्रतियोगिता होती थी, जिसमें सभी जानवर भाग लेते थे।
पतझड़ का मौसम अपने अंतिम चरण में था। जंगल के हर कोने में हलचल थी। सभी जानवर और कीड़े-मकोड़े सर्दियों के लिए अपने भोजन का भंडारण कर रहे थे। पक्षी पत्तियों से गिरे बीज उठा रहे थे,
एक घने जंगल में, दो उल्लू एक पुराने पेड़ की मोटी डाल पर आ बैठे। दोनों उल्लू अपने-अपने शिकार को पकड़े हुए थे। पहले उल्लू के मुँह में एक फुफकारता हुआ साँप था, जो उसके सुबह के नाश्ते के लिए लाया गया था।
जंगल का एक कोना हमेशा शांत रहता था। यहां ऊँचे-ऊँचे पेड़, मीठे झरने, और पक्षियों की चहचहाहट का साम्राज्य था। इसी जंगल में एक छोटी सी चींटी रहती थी, जिसका नाम मिठू था।
जंगल में टिंकू नाम का एक शरारती खरगोश रहता था। टिंकू हमेशा अपनी शरारतों के लिए मशहूर था और नन्हे जानवरों को तंग करना उसकी आदत बन चुकी थी। एक दिन टिंकू ने मुर्गी के छोटे बच्चे को आवाज लगाई
नए साल की पहली किरण जैसे ही आसमान में टिमटिमाने लगी, गुलमोहर के पेड़ पर सोया किटू बंदर तुरंत जाग गया। उछलकर जोर से चिल्लाया, "जंगल के सभी प्राणियों की ओर से, सूरज दादा, मैं तुम्हें बधाई देता हूं।"