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जब हिम्मत और लगन साथ हो
प्यारे बच्चों, क्या आपने कभी किसी छोटी सी
आज हम एक ऐसी ही अद्भुत और प्रेरणादायक कहानी पढ़ेंगे, जिसका नाम है "नन्ही चींटी की बड़ी छलांग: कभी हार न मानने का जज्बा"। यह कहानी हमें एक छोटी सी चींटी 'चुनमुन' के बारे में बताएगी, जो अपनी हिम्मत और दृढ़ संकल्प से एक ऐसी बाधा को पार करती है, जिसे देखकर बड़े-बड़े जानवर भी हार मान लेते। यह कहानी हमें सिखाएगी कि आकार नहीं, बल्कि हमारा इरादा और हमारी कोशिशें ही हमें सफलता दिलाती हैं।
चुनमुन: एक छोटी सी चींटी का बड़ा सपना
एक हरे-भरे जंगल में, जहाँ पेड़ों के नीचे और पत्थरों के बीच एक बड़ी सी चींटियों की कॉलोनी थी, वहाँ चुनमुन नाम की एक छोटी सी चींटी रहती थी। चुनमुन दिखने में तो बहुत छोटी थी, लेकिन उसके सपने बड़े थे। वह हमेशा कुछ नया करना चाहती थी, कुछ ऐसा जो किसी और चींटी ने न किया हो।
चुनमुन को हर दिन बाकी चींटियों के साथ भोजन इकट्ठा करने जाना पड़ता था। रास्ते में एक गहरी और चौड़ी नाली पड़ती थी, जिसे पार करना हर चींटी के लिए एक चुनौती थी। नाली के एक तरफ स्वादिष्ट मीठा फल पड़ा होता था, और दूसरी तरफ चींटियों का घर।
हर दिन, चींटियाँ उस नाली के किनारे पहुँचकर डर जाती थीं। वे एक लंबी कतार बनातीं और बड़ी मुश्किल से एक-एक करके नाली में गिरे सूखे पत्तों या टहनियों पर चलकर उसे पार करती थीं। कभी-कभी तो कोई चींटी फिसलकर पानी में गिर जाती थी।
चुनमुन को यह देखकर बहुत बुरा लगता था। वह सोचती थी, 'अगर कोई सीधा रास्ता हो, तो कितना अच्छा हो।'
एक दिन, चुनमुन ने देखा कि नाली के ठीक बीच में एक छोटा सा
हार नहीं मानूंगी: चुनमुन का दृढ़ संकल्प
चुनमुन ने अपनी साथी चींटियों से कहा, "देखो, अगर हम उस पत्थर तक पहुँच जाएं, तो हम नाली को आसानी से पार कर सकते हैं।"
दूसरी चींटियों ने उसका मज़ाक उड़ाया। "अरे चुनमुन, तुम पागल हो गई हो क्या? वह पत्थर कितना दूर है और तुम कितनी छोटी हो? तुम वहाँ तक कैसे पहुँचोगी? और अगर गिर गईं, तो?"
चींटियों की रानी, 'रानी मेहनती', ने भी कहा, "चुनमुन, यह बहुत जोखिम भरा है। हमें वही पुराना और सुरक्षित रास्ता अपनाना चाहिए।"
लेकिन चुनमुन के मन में कभी हार न मानने का जज्बा था। उसने फैसला कर लिया था कि वह उस पत्थर तक पहुँचकर ही रहेगी। वह जानती थी कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
अगले दिन, जब बाकी चींटियाँ पुराने रास्ते से जा रही थीं, चुनमुन ने अकेले ही अपनी यात्रा शुरू की। वह नाली के किनारे पहुँची और पत्थर की ओर देखा। वह बहुत दूर लग रहा था।
चुनमुन ने पहली बार छलांग लगाई। वह गिरी, लेकिन फिर खड़ी हो गई। उसने फिर कोशिश की, और फिर गिरी। उसके पैर थकने लगे, लेकिन उसने हार नहीं मानी। "मुझे उस पत्थर तक पहुँचना ही है," वह मन ही मन बोली।
लगातार कोशिश और बड़ी छलांग
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चुनमुन ने बार-बार कोशिश की। वह छोटी-छोटी छलाँगें लगाती, थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ती। कभी वह एक घास के तिनके को पकड़ती, कभी एक छोटी कंकड़ को सहारा बनाती। वह थक जाती थी, लेकिन आराम करके फिर से अपनी कोशिश में लग जाती।
कई बार वह फिसलकर नीचे गिरने वाली होती, लेकिन किसी तरह खुद को संभाल लेती। उसकी आँखों में एक ही लक्ष्य था: वह पत्थर।
उसकी इस लगन और हिम्मत को देखकर कुछ दूसरी चींटियाँ भी हैरान थीं। वे दूर से चुनमुन को देख रही थीं।
घंटों की मेहनत के बाद, चुनमुन आखिर उस पत्थर तक पहुँच ही गई। वह खुशी से चिल्लाई, "मैं पहुँच गई!"
अब पत्थर से दूसरी तरफ की दूरी बहुत कम थी। चुनमुन ने अपनी सारी ताकत बटोरी और एक बड़ी छलांग लगाई। इस बार, वह नाली के दूसरी तरफ पहुँच गई!
चुनमुन की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने अपने घर की ओर दौड़ लगाई। जब वह वापस अपनी कॉलोनी में पहुँची और अपनी उपलब्धि के बारे में बताया, तो सभी चींटियाँ हैरान रह गईं।
रानी मेहनती ने चुनमुन को गले लगाया और कहा, "चुनमुन, तुमने हमें सिखाया है कि आकार मायने नहीं रखता। तुम्हारा कभी हार न मानने का जज्बा और दृढ़ संकल्प सबसे बड़ा है।"
उस दिन से, चींटियों ने चुनमुन के दिखाए रास्ते का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। उन्होंने मिलकर एक छोटी सी रस्सी बनाई जो नाली के उस पत्थर तक पहुँचती थी, जिससे अब सभी चींटियाँ सुरक्षित और जल्दी नदी पार कर पाती थीं। चुनमुन ने अपनी हिम्मत से अपनी कॉलोनी के लिए एक नया और बेहतर रास्ता बनाया था।
सीख (Moral of the Story)
यह कहानी हमें सिखाती है कि आकार या ताकत नहीं, बल्कि हमारा दृढ़ संकल्प और 'कभी हार न मानने का जज्बा' ही हमें सफलता दिलाता है। कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर हम लगातार कोशिश करते रहें और हिम्मत न हारें, तो हम बड़ी से बड़ी छलांग लगा सकते हैं और अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। याद रखो बच्चों, हर छोटी कोशिश मायने रखती है, और हार न मानना ही सबसे बड़ी जीत है!
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