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चालाकी का फल: जंगल की एक प्रेरक कहानी- यह जंगल की प्रेरक कहानी चपला लोमड़ी की है, जो अपनी चालाकी से जंगल की अन्य लोमड़ियों को गुमराह करती है। पूंछ कटने के बाद उसकी शरारत से कई लोमड़ियाँ प्रभावित होती हैं, लेकिन एक बूढ़ी लोमड़ी कमला सच उजागर करती है। अंत में चपला सुधर जाती है और जंगल में शांति लौटती है।
पलक्कड़ के हरे-भरे जंगलों में कई लोमड़ियाँ अपने परिवार के साथ रहती थीं। इनमें से एक लोमड़ी, जिसका नाम था चपला, थोड़ी शरारती और चतुर मानी जाती थी। एक दिन वह जंगल में उछल-कूद कर रही थी, जब उसकी नजर एक शिकारी के छोड़े गए जाल पर पड़ी। लापरवाही में उसका बायां पैर फिसला और एक तेज धार वाली चीज से उसकी पूंछ कट गई। दर्द से चीखते हुए वह वहीं बैठ गई। अब वह जंगल की इकलौती लोमड़ी थी, जिसकी पूंछ नहीं थी।
जब रात ढली, तो बाकी लोमड़ियाँ भोजन की तलाश में निकल पड़ीं। चपला ने सोचा कि अपनी शरारत से मज़ा लिया जाए। उसने अपनी आँखें बंद कीं और जोर-जोर से चिल्लाई, "दिव्यलोक दिख रहा है!" उसकी आवाज़ सुनकर बाकी लोमड़ियाँ चौंक गईं। एक लोमड़ी, जिसका नाम था मीरा, पास आई और बोली, "चपला, सच में दिव्यलोक दिख रहा है क्या?" चपला हंसते हुए बोली, "हाँ, बहुत सुंदर है, लेकिन देखने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी।"
मीरा उत्साहित हो गई और चपला की नकल करने की कोशिश में उसी जाल पर कूद पड़ी। उसकी पूंछ भी कट गई, और दर्द से कराहते हुए वह चपला के पास लौटी। "चपला, मुझे तो कुछ नहीं दिखा!" मीरा ने शिकायत की। चपला चालाकी से मुस्कुराई और बोली, "अरे, पागल मत बनो! दिव्यलोक कहाँ होता है? मैं तो मजाक कर रही थी। लेकिन अगर तू भी मेरे साथ चिल्लाएगी, तो बाकी लोमड़ियाँ भी यही करेंगी, और हमारी शरारत चलती रहेगी!"
रात में दोनों ने आँखें बंद करके "दिव्यलोक दिख रहा है!" चिल्लाना शुरू कर दिया। पास की पांच लोमड़ियों ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया और जाल में कूदकर अपनी पूंछें काट लीं। अगली रात, ये सात लोमड़ियाँ एक साथ चिल्लाने लगीं। जंगल की दूसरी लोमड़ियाँ भी आकर्षित हुईं और सोचने लगीं कि शायद सच में कुछ खास है। धीरे-धीरे कई लोमड़ियाँ जाल में फँसीं, और उनकी पूंछें कट गईं।
एक दिन, एक बूढ़ी लोमड़ी, जिसका नाम था कमला, ने इस सबकी सच्चाई समझ ली। वह चपला के पास गई और बोली, "चपला, यह क्या हो रहा है? हम सब दुखी हैं, और तू खुश क्यों है?" चपला हँसते हुए बोली, "कमला दीदी, अब मैं अकेली नहीं हूँ! सब मेरी तरह हो गए, तो मुझे गर्व हो रहा है।" लेकिन कमला गुस्से में बोली, "यह गर्व नहीं, तेरी चालाकी का दुष्परिणाम है। हमें अपनी गलती सुधारनी चाहिए।"
कमला ने जंगल की सारी लोमड़ियों को बुलाया और सच बता दिया। लोमड़ियों ने चपला की शरारत पर नाराजगी जताई। चपला को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने माफी माँगी और कहा, "मैंने सोचा था मज़ा होगा, लेकिन सबको दर्द हुआ। अब से मैं सच्चाई से रहूँगी।" लोमड़ियों ने मिलकर जाल को हटाने की योजना बनाई और जंगल को सुरक्षित बनाया। चपला ने अपनी चालाकी को अच्छे काम में लगाया और सबके साथ दोस्ती की।
सीख
इस बेस्ट हिंदी स्टोरी से हमें यह motivational story के रूप में सीख मिलती है कि चालाकी से अस्थायी मज़ा तो मिल सकता है, लेकिन सच्चाई और भलाई ही लंबे समय तक साथ देती है। दूसरों को धोखा देना कभी सही नहीं होता।
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